वहीं उनका सत्कार करके विदा कर देते हैं। सब कहते हैं कि इन बाबाओं ने ही मीरा जैसी सुन्दर, सुशील कन्या का सत्यानाश किया है।’
‘म्हूँ आप रे पगाँ पडू भाई!’– मीरा रो पड़ी। ‘भगवान् आपरो भलो करेला।’– आगे वह बोल नहीं पायी। ‘आप पधारो जीजा! मैं लेकर आता हूँ, किन्तु किसी को ज्ञात न हो।कहते हैं कि विवाह के अवसर पर साधु-दर्शन अशुभ होता है।’ आह, कैसा अज्ञान! सुख का मार्ग सुझानेवाले, हरि-नाम की अलख जगाने वाले अशुभ हैं और शुभ कौन हैं-ये विषयों की कीचड़ में मुख घुसाये रहने वाले?”
‘जीजा! मैंने सुना है कि आप जीमण नहीं आरोगतीं, वस्त्राभूषण धारण नहीं करतीं। ऐसे में अगर मैं साधु बाबा को ले आऊँ और आप गाने-रोने लग गई तो सबके सब मुझ पर बरस पड़ेंगे।’
‘नहीं भाई! अभी जाकर मैं वस्त्राभूषण पहन लेती हूँ। गिरधरलाल का प्रसाद रखा है। संत को जीमा कर मैं भी खा लूँगी और आप जो कहें, मैं करने को तैयार हूँ।’
‘और कुछ नहीं जीजा ! विवाह के सारे टोटके सहज कर लीजियेगा। कोई हठ न करियेगा, अन्यथा आप जानती हैं कि विवाह न होनेपर सिसौदियों की तलवारें म्यान से बाहर हो जायँगी और चूड़ियाँ तो फिर मेड़तियों ने भी नहीं पहनी हैं। चित्तौड़ के सामने मेड़ता कितनी देर सलामत रहेगा, यह आप सोच लीजियेगा। मैं अपने मन से कुछ नहीं कह रहा हूँ जीजा ! ये बातें राजकुल के प्रत्येक स्त्री-पुरुष के हृदय में फाँस की भाँति गड़ रही हैं। आपकी विदाई होने पर ही सब सुख की साँस लेंगे।’
‘बहन-बेटी इतनी भारी होती है भाई?’
‘जबतक संबंध नहीं होता, विशेष भार नहीं लगता। संबंध हो जाने पर वह दत्ता होती है और अपने पास रहती है थाती के रूप में। आने वाले उसे लिये बिना भला क्यों जायँगे और न मिलने पर वे अपने अपमान का बदला लेने में कैसे कसर रखेंगे?’
‘यदि उनके सामने उस धरोहर की अर्थी उठे तो? तब तो कुछ न करेंगे?’
‘जीजा!’ जयमल केवल सम्बोधन बोलकर रह गये। फिर कहा- ‘मैं नहीं जाता किसी बाबा को लेने।’
‘ले आओ भाई! मैं वचन देती हूँ कि ऐसा कुछ न करूँगी, जिससे मेरी मातृभूमिपर संकट आये अथवा परिजनों का मुख मलिन हो। आप सबकी प्रसन्नता पर मीरा न्यौछावर है। बस, अब तो पधारो आप।’
गिरधरदासजी ने जब श्यामकुँज में प्रवेश किया तो वहाँ का दृश्य देख वे चित्रवत् रह गये। चार वर्ष की मीरा अब पन्द्रह वर्ष की होने वाली थी। सुन्दर वस्त्राभूषणों से सज्जित उसका रूप खिल उठा था। सुन्दर साड़ी के अन्दर घन कृष्ण केशों की मोटी नागिन-सी चोटी लटक रही थी। होठों पर मुस्कान और प्रेममद से छके नयनों में विलक्षण तेज था। श्यामकुँज देवांगना जैसे उसके रूप से प्रभासित था। गिरधरदास उसे देखकर श्रीठाकुरजी के दर्शन करना भूल गये।
संत को प्रणाम करने के लिए मीरा आगे बढ़ी। उसके नूपुरों की झंकार ने उन्हें सावधान किया। वर रूप में सजे गिरधर गोपाल के दर्शन करके उन्हें लगा कि वे वृंदावन के किसी निभृत एकांत निकुंज में आ खड़े हुए है। उन्हें देखकर एकाएक श्यामसुन्दर ने मूर्ति का रूप धारण कर लिया और लली अचकचाकर वैसे ही खड़ी रह गयी हो। उनकी आँखों में आँसू भर आये। श्यामकुँज का वैभव और उस दिव्यांगना प्रेम पुजारिन को देखकर उन्होंने ठाकुरजी से कहा—’इस रमते साधु के पास सूखे टिक्कड़ और प्रेमहीन हृदय की सेवा ही तो मिलती थी तुम्हें। अब यहाँ देखकर जी सुखी हुआ। किन्तु लालजी! इस लाड़, दुलार और प्रेम वैभव में इस दास को भुला मत देना।’
उन्होंने मीरा से कहा-‘प्रभु के आदेश से अब मैं द्वारिका जा रहा हूँ बेटी! यदि कभी द्वारिका आओगी तो भेंट होगी अन्यथा….। लालजी के दर्शन की अभिलाषा थी, सो पूरी हो गयी।’ उन्होंने उठते हुए वस्त्र-खंड से आँसू पोंछे।
‘गिरधर गोपाल की बड़ी कृपा है महाराज! आशीर्वाद दीजिये कि सदा ऐसी ही कृपा बनाये रखें। ये मुझे मिलें या न मिलें, मैं इनसे मिली रहूँ। आप बिराजें महाराज! प्रसाद आरोग कर पधारें!’ उसने केसर से प्रसाद लाने के लिये कहा और स्वयं तानपूरा लेकर गाने लगी-
साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।
थें छो म्हारा गुण रा सागर औगण म्हारा मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै म्हाँरो मन न पतीजै मुखड़ा रा सबद सुणाज्यो जी
म्हें तो दासी जनम जनम की म्हारे आँगण रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बेड़ो पार लगाज्यो जी।
पद की मधुरता और प्रेम भरे भावों से गिरधरदासजी तन्मय हो गये। कुछ देर बाद आँखें खोलकर सजल नेत्रों से मीरा की ओर देखा। उसके सिर पर हाथ रखकर अन्तस्थल से मौन आशीर्वाद दिया। केसर द्वारा लाया गया प्रसाद ग्रहणकर एक बार पुनः ठाकुरजी के दर्शन किये। प्रणाम करके वे बाहर निकल गये। मीरा ने झुककर उनके चरणों में मस्तक रखा तो दो बूँद अश्रु संत के नेत्रों से निकल उसके मस्तक पर टपक पड़े।
‘अहा, संतों के दर्शन-सत्संग से कितनी शांति-सुख मिलता है? यह इन लोगों को कैसे समझाऊँ? वे कहते हैं कि हम भी तो प्रवचन सुनते ही हैं। हमें तो रोना-गाना-हँसना कुछ भी नहीं आता। अरे, कभी खाली होकर बैठें, तब तो भीतर कुछ जाय? बड़ी कृपा की प्रभु! जो संत दर्शन कराये। और जो हो, सो हो, पर अपने प्रियजनों-निजजनों-संतों-प्रेमियों के बीच निवास दो, उनके अनुभव, उनके मुख से झरती तुम्हारे रूप-गुणों की चर्चा प्राणों में जोर हिलोर उठा देती है।जगत के ताप से तपे मन-प्राण शीतल हो जाते है। मैं तो तुम्हारी हूँ तुम जो चाहो, वही हो, वही हो! मैंने तो अपनी चाह तुम्हारे चरणों मे रख दी है।’
वैवाहिक गठबन्धन…..
अक्षय तृतीया का प्रभात। प्रातः काल मीरा पलंग पर से सोकर उठी तो दासियाँ चकित रह गयीं। उन्होंने दौड़कर झालीजी और राणावतजी को सूचना दी। उन्होंने आकर देखा कि मीरा विवाह के साज से सजी है। बाँहों में खाँचों समेत दाँत का चंदरबायी का चूड़ला है। (विवाह के समय वर के यहाँ से वधू को पहनाने के लिये हाथी दाँत की चूड़ियाँ आती हैं, जिसपर सोने के पानी से चित्रकारी की जाती है। इसे चन्दरबायी का काम कहा जाता है।
क्रमशः
There they are felicitated and sent off. Everyone says that these babas have destroyed a beautiful, gentle girl like Meera.’ ‘Mhun aap re pagaan padu bhai!’- Meera cried. ‘God bless you bitter gourd.’ – She could not speak further. ‘You come brother-in-law! I will bring it, but no one should know. It is said that seeing a saint on the occasion of marriage is inauspicious.’ Ah, what ignorance! Those who suggest the path of happiness, those who awaken the name of Hari, are inauspicious and who are auspicious – those who keep their faces in the mire of objects?”
‘brother in law! I have heard that you don’t get healthy, don’t wear clothes. In such a situation, if I bring Sadhu Baba and you start crying and singing, everyone will blame me.’ ‘No, bro! Now I go and wear my clothes. Prasad of Girdharlal is kept. I will also eat after serving the saint and I am ready to do whatever you say.’ ‘Nothing else brother-in-law! Will make all the tricks of marriage easy. No one will be stubborn, otherwise you know that if there is no marriage, the swords of the Sisaudis will be out of their scabbards and the bangles are not even worn by the Medtis. Think for how long Merta will remain safe in front of Chittor. I am not saying anything from my mind brother! These things are like a noose in the heart of every man and woman of Rajkul. Everyone will breathe a sigh of happiness only after your departure.
‘Sister-daughter are so heavy brother?’
‘Unless there is a relationship, there is no special weight. When there is a relationship, she becomes Datta and stays with him in the form of Thati. Why would the visitors go without taking it and if they do not get it, how would they leave any stone unturned to avenge their insult?’ ‘If the bier of that heritage is raised in front of them? Then won’t you do anything?’ ‘brother in law!’ Jaimal was left speaking only the address. Then said- ‘I do not go to take any Baba.’ ‘Bring it brother! I promise that I will not do anything that will cause danger to my motherland or discredit the faces of my family members. Mira is dedicated to your happiness. Just come now.’
When Girdhardasji entered Shyamkunj, he was mesmerized to see the scene there. Four year old Meera was about to turn fifteen now. Adorned with beautiful clothes, her form blossomed. A thick snake-like braid of Ghan Krishna hair was hanging inside the beautiful sari. There was a wonderful brightness in the smile on the lips and in the eyes full of love. Shyamkunj was illuminated by her appearance like Devangana. Seeing him, Girdhardas forgot to visit Shri Thakurji.
Meera went ahead to bow down to the saint. The tinkling of her pearls alerted them. On seeing Girdhar Gopal dressed as a bridegroom, he felt that he had come to a sheltered solitude in Vrindavan. Seeing them, Shyamsundar suddenly assumed the form of an idol and Lalli remained standing in awe. Tears welled up in his eyes. Seeing the splendor of Shyamkunj and that Divyang Prem Pujarin, he said to Thakurji – ‘You used to get the service of dry Tikkad and loveless heart from this Ramte Sadhu. Happy to see you here now. But Lalji! Do not forget this slave in this pampering, caress and love splendor. He said to Meera – ‘By the order of the Lord, now I am going to Dwarka, daughter! If ever Dwarka comes, then there will be a meeting, otherwise…. I had a desire to see Lalji, so it was fulfilled.’ He got up and wiped the tears with a piece of cloth. Girdhar Gopal’s great grace is Maharaj! Bless me to always keep such grace. Whether I meet him or not, I should meet him. You sit down Maharaj! Please come after getting the prasad cured!’ She asked Kesar to bring Prasad and herself started singing with Tanpura.
Saanwara Mhari Preet Nibhajyo Ji. There is the ocean of my virtues, and my heart is filled with joy. People don’t believe my mind, tell me the words of the face I am the servant for life that my courtyard enjoys grandmother. Lord of Mira, Girdhar Nagar, cross the ship.
Girdhardasji became engrossed in the sweetness of the post and the love-filled expressions. After some time he opened his eyes and looked at Meera with beautiful eyes. By placing his hand on his head, he gave silent blessings from the end. After receiving the Prasad brought by Kesar, once again visited Thakurji. They went out after saluting. When Meera bowed down and placed her head at his feet, two drops of tears came out of the saint’s eyes and dripped on his head. ‘Aha, how much peace and happiness do you get from the darshan-satsang of saints? How do I explain this to these people? They say that we too listen to sermons. We don’t know how to cry, sing or laugh. Arey, sometimes sit empty, then at least something will go inside? Lord of great grace! The saint who gives darshan. And whatever may happen, so be it, but give abode among your near and dear ones-saints-lovers, their experiences, the discussion of your beauty and qualities falling from their mouths makes the soul tremble. They become cool. I am yours, whatever you want, be that, be that! I have placed my desire at your feet.’
Matrimonial Alliance….
Morning of Akshaya Tritiya. When Meera woke up from the bed in the morning, the maids were astonished. He ran and informed Jhaliji and Ranavatji. He came and saw Meera decked up in wedding attire. There is Chanderbai’s Chudla of teeth with grooves in the arms. (At the time of marriage, ivory bangles come from the groom’s place to be worn by the bride, which are painted with gold water. This is called Chandarbai’s work. respectively