महाराणा ने पहले तो समझा कि नखरे कर रहा है, किंतु जब गर्दन ढल गई तो उनके मुख से निकला- ‘अरे, यह क्या? सचमुच मर गया।’ उन्होंने प्रहरी से वैद्यजी को उठा ले जाने के लिए उसके घर समाचार भेजा।
उदयकुँवर बाईसा में आमूल परिवर्तन……..
उदयकुँवर बाईसा महाराणा के विक्रमादित्य के पीछे खड़ी थीं।सब कुछ उनकी आँखों के सामने बीता। जिस कटोरे भरे जहर से मेड़तणीजी का रोयाँ भी न काँपा, उसी कटोरे की पेंदी में बची दो बूँदो से वैद्यजी मर गये। मीरा की भक्ति का प्रताप और राणाजी की कुबुद्धि दोनों ही उदयकुँवर बाईसा के सामने आ गईं।’इस बेचारे को क्यों मारा?’- उन्होंने मन में सोचा- ‘किसी कुत्ते या बिल्ली को पिलाकर क्यों नहीं देख लिया। मैंने बहुत बुरा किया इस मतिहीन का साथ देती रही।’ उन्होनें धीरे-धीरे अपने महल की ओर पद बढ़ाये । वहाँ पहुँच कर दासी से कहा,-‘तू कहीं ऐसी जगह जाकर खड़ी हो जा, जहाँ कोई तुझे देख न सके। जब वैद्यजी की लाश उनके घर वाले लेकर जाने लगें तो उन्हें कहना कि वैद्यजी को मेड़तणीजी सा के महल में ले जाओ, वह इन्हें जीवित कर देंगी।’ वह स्वयं भी मीरा के महल की ओर चली।
‘भाभी म्हाँरा, मुझे क्षमा करिये, मैंने आपको बहुत दु:ख दिया है।’- उन्होंने जाते ही मीरा की गोद में सिर रख दिया।
‘यह न कहिये बाईसा ! दु:ख-सुख तो मनुष्य को अपने प्रारब्ध से प्राप्त होता है। मुझे तो कोई दु:ख नहीं हुआ। प्रभु के स्मरण से समय बचे तो दूसरी अलाबला समीप आ पाये।” मीरा ने ननद के सिर और पीठ पर हाथ फेरा।
‘मुझे भी तो कुछ बताईये, जिससे जन्म सुधरे।’- उदयकुँवर बाईसा आँसू ढ़रकाती हुई बोली।
‘मेरे पास क्या है बाईसा, बस भगवान का नाम है, सो आप भी लीजिए। प्रभु पर विश्वास रखिये और सभी को भगवान का रूप, कारीगरी या चाकर मानिये और तो मैं कुछ नहीं जानती। ये संत महात्मा जो कहते हैं, उसे सुनिए और गुनिये।’
‘मैं कुछ नहीं जानती भाभी म्हाँरा।आप मेरी हैं और मैं आपकी बालक हूँ।बालक तो पेट में रहते समय भीलात मारते हैं।मेरे अपराध क्षमा करके मुझे अपना लें।’
मीरा ने ननद बाईसा का मुख ऊपक किया-‘बाईसा किसी का अपराध मुझे दिखाई ही नहीं दिया तो क्षमा कैसी?आप भगवान के पद पकड़िये, वही सर्वसमर्थ है।’
‘मैंने भगवान को नहीं देखा कभी। मैं तो आपको जानती हूँ बस।’- उदयकुँवर बाईसा पुन: रोने लगीं।
‘जब आपकी सगाई हुई, पीठी चढ़ी, तब आपने जवाँईसा को देखा था क्या?’
‘ऊँ हूँ,’- उदयकुँवर बाईसा ने माथा हिलाकर अस्वीकृति व्यक्त करते हुये आश्चर्य से भौजाई की ओर देखा- ‘यह कैसी बात?’
‘बिना देखे ही आपको उनपर विश्वास और प्रेम था न?’
‘आप भी भाभी म्हाँरा कैसी बातें करने लगी हैं, मैं तो…..’
‘वही निवेदन कर रही हूँ बाईसा’- मीरा ने बात काटते हुए कहा, ‘जैसे बिना देखे ही बींद पर विश्वास-प्रेम होता है, उसी तरह विश्वास करने पर भगवान भी मिलते ही हैं।’
‘किन्तु बींद को तो बहुत से लोगों ने देखा होता है।वे आकर बातें करते है। इसी से बींद पर विश्वास होता हैं पर भगवान को किसने देखा है?’
‘यदि मैं कहूँ कि मैंने देखा है तो?’
‘यदि मैं कहूँ कि मैनें देखा है तो?’
‘आप…… आप…. ने देखा है भगवान को? कैसे हैं वे?’
‘हाँ मैंने ही क्या, बहुतों ने देखा है उन्हें। अन्तर केवल इतना है कि कोई-कोई ही उन्हें पहचानते हैं, सब नहीं पहचानते।’
वैद्यजी को जीवन दान…..
उदयकुँवर बाईसा बात करते हुये भाभा म्हाँरा की गोद के अपने से आँसुओं भिगो रही थीं। तभी लोगों के रोने चिल्लाने की आवाज कान में पड़ी।चीख पुकार से मेड़तणी कुँराणी सा का ध्यान बटाँ और वे बोल पड़ी- ‘अरे ये कौन चिल्ला रहे हैं? गोमती देख तो?’
‘कुछ नहीं भाभी म्हाँरा ! आपको विष से न मरते देखकर श्री जी ने समझा कि वैद्यजी ने दगा किया है। उन्होंने उस प्याले में बची विष की दो बूँदे वैद्यजी को पिला दीं। वे मर गये हैं।उनका शव लेकर घर के लोग जा रहे होंगे।’
‘वैद्यजी को महाराणा जी ने जहर पिला दिया। उनका शव लेकर घरवाले आपके पास अर्ज करने आये हैं।’- गोमती ने आकर निवेदन किया।
‘हे मेरे प्रभु ! यह क्या हुआ? मेरे कारण ब्राह्मण की मृत्यु? कितने लोगों का अवलम्ब टूटा? इससे तो मेरी ही मृत्यु श्रेयस्कर थी।’
मीरा सोच ही रही थी कि वैद्यजी के घरवाले उनका शव लेकर आ पहुँचे। वैद्य जी की माँ आते ही मीरा के चरणों में गिर पड़ीं – ‘हे अन्नदाता ! हम अनाथों को सनाथ कीजिए। हमें कौन कमा कर खिलायेगा ? महाराणा जी ने हम सभी को क्यों जहर नहीं पिला दिया? हम आपकी शरण में हैं ! या तो हमें इनका जीवन दान दीजिए अन्यथा हम भी मर जायेंगे।’
मीरा की आँखें भी भर आईं। मीरा ने सबको धीरज रखने को कहा और इकतारा उठाया-
हरि तुम हरो जन की पीर।
द्रौपदी की लाज राखी तुरत बढ़ायो चीर॥
भक्त कारन रूप नरहरि धरयो आप सरीर।
हिरणकस्यप मार लीनो धरयो नाहिन धीर॥
बूढ़तो गजराज राख्यो कियो बाहर नीर।
दासी मीरा लाल गिरधर चरनकमल पर सीर॥
चार घड़ी तक राग का अमृत बरसता रहा। मीरा की बन्द आँखों से आँसू झरते रहे। लोग आपा खोये बैठे रहे। किसी को ज्ञात ही न हुआ कि वैद्यजी कब उठकर बैठ गये और वह भी तन-मन की सुध-भूल कर इस अमृत सागर में डूब गये हैं। भजन पूरा होने पर धीरे धीरे सबको चेतना हुई।माँ बहू और बालकों ने वैद्यजी को बैठा हुआ देखा। उनके मुख से अपने आप हर्ष का अस्पष्ट स्वर फूट पड़ा। उन सभी ने धरती पर सिर टेककर मीरा की और गिरधर गोपाल की वन्दना की। चम्पा ने सबको चरणामृत और प्रसाद दिया। वैद्यजी की पत्नी ने बार बार मीरा के चरण पकड़ लिये। उसके मन के भावों को वाणी नहीं मिल पाई,भाषा ओछी पड़ गई।उन्होंने ने नेत्र जल से मीरा के पाँव धो दियें।
‘आप यह क्या करती हैं? आप ब्राह्मण है। मुझे दोष लगता है इससे। उठिये ! प्रभु ने कृपा करके आपका मनोरथ पूर्ण किया है। इसमें मेरा क्या लगा? आप भगवान का यश गाईये।’
क्रमशः
At first Maharana thought that he was throwing tantrums, but when his neck fell, it came out of his mouth- ‘Hey, what is this? He is really dead.’ He sent news from the guard to Vaidyaji’s house to pick him up.
Radical change in Udaykunwar Baisa…..
Udaykunwar Baisa was standing behind Maharana’s Vikramaditya. Everything passed before her eyes. The bowl filled with poison that did not even make Medtaniji’s hair tremble, Vaidyaji died from the two drops left at the bottom of the same bowl. The glory of Meera’s devotion and Ranaji’s mischief both came in front of Udaykunwar Baisa. ‘Why kill this poor man?’- He thought in his mind- ‘Why didn’t you try feeding a dog or a cat. I have done very bad, kept supporting this mindless person.’ She slowly increased the position towards her palace. After reaching there, he said to the maid, ‘You go and stand at such a place, where no one can see you. When the family members start taking Vaidyaji’s dead body, tell them to take Vaidyaji to Medtaniji’s palace, she will bring him back to life.’ She herself also went towards Meera’s palace. ‘Sister-in-law Mhanra, I am sorry, I have hurt you a lot.’- He put his head on Meera’s lap as soon as he left. ‘Don’t say this, Baisa! Happiness and sorrow are received by a man from his destiny. I didn’t feel any sorrow. If there is time left for the remembrance of the Lord, then the other alabala can come near.” Meera patted her sister-in-law’s head and back. ‘Tell me something too, so that my birth can improve.’- Udaykunwar Baisa said with tears in her eyes. ‘ What do I have Baisa, just the name of God, so you also take it. Have faith in God and consider everyone as God’s form, workmanship or servant and then I don’t know anything. Listen and recite what this Saint Mahatma says. ‘I don’t know anything, my sister-in-law. You are mine and I am your child. Children kick even when they are in the womb. Forgive my crimes and adopt me.’
Meera raised the face of sister-in-law Baisa – ‘Baisa, I did not see anyone’s crime, so how is forgiveness? You take the position of God, He is all-powerful.’ ‘I have never seen God. I only know you.’- Udaykunwar Baisa started crying again. ‘When you got engaged, did you see Jawaisa then?’ ‘Oh,’ – Udaykunwar Baisa shook his head and expressed his disapproval and looked at his brother-in-law with surprise – ‘What kind of thing is this?’ ‘You believed and loved him without seeing him, didn’t you?’ ‘What kind of things have you started talking to my sister-in-law, I am…..’ ‘I am making the same request Baisa’- Meera interrupted and said, ‘Just as there is faith and love on a drop without seeing it, in the same way God is also found on believing.’ ‘But Bind has been seen by many people. He comes and talks. This is why we believe in the point, but who has seen God?’ ‘What if I say I have seen it?’ ‘What if I say I have seen it?’ ‘you you…. Has seen God? How are they? ‘ Yes, I am the only one, many have seen him. The only difference is that only a few recognize him, not all.
Life donation to Vaidyaji…..
While talking like Udaykunwar Baisa, Bhabha was soaking tears in Mhanra’s lap. That’s why the sound of people crying and shouting fell in the ear. Medtani Kurrani Sa’s attention was diverted by the screams and she said – ‘Hey, who are they shouting? Do you see Gomti? ‘Nothing my sister-in-law! Seeing you not dying of poison, Shriji understood that Vaidyaji had betrayed you. He gave two drops of poison left in that cup to Vaidyaji. He is dead. The people of the house must be going with his dead body. ‘ Maharana ji gave poison to Vaidyaji. The family members have come to you with his dead body to request.’- Gomti came and requested. ‘ Oh my Lord! what happened? Brahmin’s death because of me? How many people lost their support? My death was better than this. Meera was thinking that the family members of Vaidyaji should come with his dead body. As soon as Vaidya ji’s mother came, she fell at Meera’s feet – ‘O food giver! Save us orphans. Who will feed us by earning? Why didn’t Maharana ji give poison to all of us? We are at your mercy ! Either give us his life or else we too will die.’ Meera’s eyes also filled with tears. Meera asked everyone to be patient and picked up the Iqtara.
Hari, you lose people’s pain. Draupadi’s shame Rakhi immediately increased the rag ॥ Because of the devotee, you have taken the form of a human body. Hirankasyap will kill you, don’t be patient. Old Gajraj kept water outside. Maid Meera Lal Girdhar’s head on lotus feet.
The nectar of melody kept raining for four hours. Tears kept falling from Meera’s closed eyes. People lost their temper. No one came to know when Vaidyaji got up and sat down and he too has drowned in this ocean of nectar, forgetting the care of body and mind. On completion of the bhajan, slowly everyone regained consciousness. Mother, daughter-in-law and children saw Vaidyaji sitting. Unexpected sounds of joy burst forth from his mouth. All of them worshiped Meera and Girdhar Gopal by bowing their heads on the ground. Champa gave Charanamrit and Prasad to everyone. Vaidyaji’s wife repeatedly held Meera’s feet. The feelings of his mind could not find speech, the language became low. He washed Meera’s feet with tears of his eyes. ‘What do you do? You are a Brahmin. I feel guilty about it. Get up! The Lord has graciously fulfilled your wish. What did I think about it? You sing the praise of God. respectively