आज का प्रभु संकीर्तन।
हे प्रभु! इस सृष्टि के आदि में भी तुम्हीं थे और सृष्टि का यदि किसी काल में अंत है तो उसमें भी तुम्हीं हो। आदि में जो है, अंत में भी वही है। मध्य का मालिक भी वही है। कोई भी पल ऐसा हो नहीं सकता जिसमें मालिक कोई और हो। फिर तुमसे अलग तो कुछ हो ही नहीं सकता।
मैं तो आदि और अंत के बीच में ही हूं। सो, इसमें कोई शक हो ही नहीं सकता कि मेरे मालिक तुम हो। जब तुम मालिक हुए, मेरे यदि तुम नाथ हुए, तब मुझे मुक्ति दिलाने, मेरा परित्राण करने का दायित्व क्या तुम्हारा नहीं है? निश्चय ही तुम्हारा दायित्व है। अतएव तुम मेरी भलाई के लिए जो उचित समझो करो और मेरी भलाई किस बात में है यह तुम मुझसे कहीं ज्यादा अच्छे से समझते हो। अतः मेरे लिए जो कुछ करणीय है, वह तुम करते हो । तुम मेरी हर क्षण पालन करते हो और मैं तुम्हें बस केवल इतना सुनाए जाऊंगा कि ‘मैं तुम्हारा हूं, अतएव मेरे प्रति तुम्हारा कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी।’ इसे कोई चाहे तो निष्काम कर्म कहे और चाहे तो पूर्ण समर्पण। यह अपनी इच्छा को परम पुरुष की इच्छा में लीन कर देने की एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें साधना के सर्वोच्च लक्ष्यों की ओर ले जाती है।परमात्मा की शरण मे जाने का यह मार्ग अति सुगम और सर्वश्रेष्ठ है।हमारा पूर्ण समर्पण ही हमें परमात्मा से मिला सकता हैं।मैं, मेरा तेरा यह सब बीच से निकल जायेगा।और मैं और परमात्मा शेष रह जायेगा।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
Today’s Lord Sankirtana. Oh God! You were also in the beginning of this world and if there is an end to the creation at some point, then you are in that too. Whatever is in the beginning, is the same in the end. He is also the master of the middle. There cannot be any moment in which the owner is someone else. Then nothing can be apart from you. I am in between the beginning and the end. So, there can be no doubt that you are my master. When you became the master, if you became my abode, then is it not your responsibility to liberate me, save me? Of course you have a responsibility. So do what you think is right for my good and you understand better than me what is in my goodness. So you do whatever is causal to me. You follow me every moment and I will only tell you that ‘I am yours, therefore you have a duty and a right to me’. It is a process of merging one’s desire into the will of the Supreme Personality of Godhead which leads us to the highest goals of spiritual practice. I, mine, all this will come out of the middle. And I and God will remain. Jai Jai Shri Radhe Krishna ji. May Shri Hari bless you.