रास मध्य ललिता जु प्रार्थना जु कीनी।
कर ते सुकुमारी प्यारी वंशी तब दिनी।। एक समय जब नित्य रास परायण श्री श्यामा श्याम महारास में थे तब शुभ अवसर जानकर श्रीप्रिया जु से ललिता सखी कहिने लगी कि भू धाम पर श्री श्याम सुंदर का रस तो भली भांति है लेकिन आपका रस, इन निभृत निकुंज के दिव्य रस से धरा धाम अगोचर है उसको जनता ही नही कोई इसलिये हे राधा रानी आप कृपा करें कि धरती के अधम जीवो को आपके निकुंज का परिचय हो तब श्रीराधा रानी ने श्री श्याम सुंदर की वंशी को ललिता सखी के कर कमल में रखा और कहा ये वंशी मुझसे एवं श्याम सुंदर से एक पल के लिये भी कभी दूर नही हुई, इसीलिए यही हमारे सम्पूर्ण रस को जानती है यही वंशी भू तल पर वंशी अवतार श्रीहित हरिवंश महाप्रभु के रूप में अवतार लेगी ओर तुम हरिदास ( ललिता सखी ) रूप में प्रकट होंगे। महाभारत के पश्चात अर्जुन के पूछने पर भी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गर्ग संहिता में भी कहा है ::----
अहमेव भविष्यामि वंशी रूपेण चार्जुन।
हरिवंशेति विख्यातो प्रेम भक्ति रस प्रद:।। वंशी अवतार गोस्वामी श्रीहित हरिवंश महाप्रभु जी के ५५० वे जन्मोत्सव १ मई २