प्रेमैव गोपरामाणां काम इत्यगमत्प्रथाम |
गोपियों का काम-काम नहीं था | उसका नाम काम था, पर वहाँ काम-गन्ध-लेश भी नहीं है | वह दिव्य प्रेम है |
जो आह्लादिनी शक्ति है, वह श्रीकृष्ण को आह्लादित है और ‘आह्लाद्नीर सार अंश प्रेम तार नाम’ जो उसका सार अंश है, उसका नाम प्रेम है; वह प्रेम आनन्द-चिन्मयरस है और इस प्रेम का जो परम सार है, वह है महाभाव इसी महाभाव की मूर्तिमती प्रतिमा, महाभावरूपा ये राधारानीजी है एक मूर्तिमती प्रेम-देवी है कहते हैं कि यह प्रेम का जो सार है, वह राधा बन गया है ये श्रीकृष्ण की परमोत्कृष्ट प्रेयसी है श्रीकृष्ण वांछा पूर्ण करना ही इनके जीवन का कार्य है इनमे काम-क्रोध, बंध-मोक्ष, भुक्ति-मुक्ति-कुछ भी नहीं है श्रीकृष्ण की इच्छा को पूर्ण करना – यही उनका स्वरूप भाव है यह बड़ी भारी अनोखी चीज है | भगवान् इच्छारहित हैं यह प्रेम का ही जादू है, यह गोपी-प्रेम का जादू है कि जो सर्वथा इच्छारहित हैं, वे इच्छावाले बन जाते हैं जिनको किसी वस्तु का अभाव नहीं, वे अभावग्रस्त बन जाते हैं वे इस रस के लिये मतवाले बन जाते हैं। ये महाभाववाली गोपी श्रीराधा हैं ललितादि सखियाँ इनकी कायव्यूहरूपा हैं।। श्रीकृष्ण-स्नेह ही इनका सुगन्धित उबटन है। कारुण्यामृत, तारुण्यामृत और लावण्यामृत की धारा से ये स्नान करती हैं निज लज्जा ही इनका श्याम-परिधान है स्त्री को लज्जा ढकने के लिये वस्त्र चाहिये श्यामसुन्दर ही इनके श्याम-वस्त्र हैं। कृष्णानुरागरूपी वस्त्र ही इनकी कुसूँबी – लाल ओढ़नी है | ये नील पट पहने हैं और उस पर इनकी लाल ओढ़नी फहराती है। प्रणय, मान, स्नेह इत्यादि भाव ही इनके वक्ष:स्थल का अच्छादन करने वाली इनकी कंचुकी हैं सखी-प्रणय चन्दन-कुंकुम है स्मितकान्तिरूपी कर्पूर ही अंग-विलेपन है
Premaiva Goparamanam Kama Ityagamatpratham | The gopis had no business. His name was Kama, but there is no Kama-Gandha-Lesh. That is divine love. The ecstatic power, which is pleasing to Shri Krishna, and ‘Ahladnir saar ansh prem tar naam’ which is his essence part, his name is love; That love is Ananda-Chinmayras and the ultimate essence of this love is that Mahabhava, the idol of this Mahabhav, this is Radharaniji. Shri Krishna’s greatest beloved is Shri Krishna’s desire, it is the work of his life, there is nothing in it, there is nothing like sex-anger, bond-moksha, Bhukti-mukti. | The Lord is desireless, it is the magic of love, it is the magic of love, that those who are completely desireless, they become desireless, they lack nothing, they become lacking, they become intoxicated for this rasa. These great gopis are Shri Radha. Their fragrant udder is Sri Krishna’s love. She bathes with the streams of Karunyamrit, Tarunyamrit and Lavanyamrita, her own shame is her black dress, a woman needs clothes to cover her shame, Shyamsundar is her black dress. The only dress in the form of Krishna’s grace is the red veil. He is wearing a blue patt and his red veil flutters over it. Love, respect, affection, etc., are their corms that make their chest area happy. Friendship is sandalwood-kumkum.
One Response
Good post. I absolutely appreciate this website. Thanks!