आज मैं अपने मन को दिल को
नैनो राम नाम अमृत रस का
रसपान कराना चाहती हूं।
आत्मा कहती हैं कि हे मन
तु बाहर के स्वाद चखने के लिए
डोला फिरता है। तु इतने जन्म लेकर भी प्यासा ही रहा आजा तु मुझ मे सिमट जा राम नाम के रस से तु सरोबर हो जा। तु बाहर मारा फिरता है। फिर हृदय को कहती हैं कि ए दिल तु अपने अन्तर्मन में श्री हरि को बिठाकर नैन मुदले। श्री हरि तुझे आनंद सागर में डूबकी लगवा देगे। श्री हरि के आगमन पर सच्ची तृप्ति है। अ इन्दीरयो तुम प्राण नाथ प्यारे की सेवा में लीन हो जाओ। परम प्रभु की सेवा में जो आनंद वह बाहरी संसार में नहीं है।अ वाणी तु परम पिता परमात्मा की स्तुति का गान कर। मेरे प्रभु प्राण नाथ का ऐसा गान कर समा ऐसा बंधे कि पृथ्वी का नर नारी झुमे मेघ गरजे काली घटाओ के साथ। आत्मा कहती हैं कि आज मैं तुम्हें पुरण तृप्त करना चाहती हूं ।जय श्री राम
अनीता गर्ग
Today I want to make my heart drink the nectar of Naino Ram. The soul says that O mind, you wander to taste the outside. You remained thirsty even after taking so many births, come, be confined to me, and you will be engrossed in the juice of Ram’s name. You hit outside. Then she tells the heart that, O heart, you can sit in your heart with Shri Hari and take Nain Mudle. Shri Hari will get you immersed in the ocean of joy. There is true satisfaction at the arrival of Shri Hari. O senses, you get absorbed in the service of Pran Nath Pyare. The joy that is in the service of the Supreme Lord is not in the outside world. By singing such a song of my lord Pran Nath, the man and woman of the earth are bound together with the thunder of the clouds. The soul says that today I want to satisfy you completely. Jai Shri Ram
Anita Garg