शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं।
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे।
भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में-
1. वीरभद्र अवतार
भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था।
जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया।
उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए।
शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।
3- नंदी अवतार
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भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है।
नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है।
इस अवतार की कथा इस प्रकार है- शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे।
वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा।
शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की।
तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।
कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला।
शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा।
भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया।
इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए।
मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।
4- भैरव अवतार
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शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।
एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे।
तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी।
उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो।
अत: मेरी शरण में आओ।
ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया।
उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं।
भीषण होने से भैरव हैं।
भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया।
ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए।
काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।
काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
5- अश्वत्थामा
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महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे।
आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप मेें अवतीर्ण होंगे।
समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया।
ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।
6- शरभावतार
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भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था।
इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था।
लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार-
हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
7- गृहपति अवतार
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भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति।
इसकी कथा इस प्रकार है-
नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की। एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।
8- ऋषि दुर्वासा
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भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया।
उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए।
विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
9- हनुमान अवतार
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भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था।
शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया।
सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया।
समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।
10- वृषभ अवतार
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भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए।
विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।
तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।
11- यतिनाथ अवतार
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भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था।
उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।
धर्म ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दम्पत्ति रहते थे।
एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए।
उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की।
आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा।
इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया।
प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है।
इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए।
तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें।
अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं।
जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।
12- कृष्णदर्शन अवतार
भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है।
इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ।
विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया।
नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए।
पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे।
तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया।
अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए।
उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है।
विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा।
नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं।
यज्ञ में अवशिष्ट वसु उन्हीं की है।
पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।
13- अवधूत अवतार
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भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकर जी के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए।
इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा।
इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया।
यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।
14- भिक्षुवर्य अवतार
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भगवान शंकर देवों के देव हैं।
संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं।
भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला।
उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए।
समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घडिय़ाल ने अपना आहार बना लिया।
तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा।
इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची।
तब शिवजी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है।
यह सब कह कर भिक्षुक रूपधारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया।
शिव के आदेश अनुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया।
बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।
15- सुरेश्वर अवतार
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भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा। इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊँ नम: शिवाय का जप करने लगा। शिवजी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगा। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु को अपने में दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया। उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।
16- किरात अवतार
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किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल-कपट से पाण्डवों का राज्य हड़प लिया व पाण्डवों को वनवास पर जाना पड़ा। वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर( सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा।
अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया।
शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।
17- सुनटनर्तक अवतार
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पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे।
नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया।
इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए।
कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
18- ब्रह्मचारी अवतार
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दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे।
पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा।
यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ।
पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।
यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।
19- यक्ष अवतार
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यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया।
इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं।
देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए।
तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शंकर भगवान हैं।
सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।
2- पिप्पलाद अवतार
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मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है।
शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका ।
कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए?
देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना।
पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए।
उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।
श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे।
देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे।
तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।
शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।
ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव
Many incarnations of Lord Shiva are described in Shiva Mahapuran, but very few people know about these incarnations. According to religious texts, there were 19 incarnations of Lord Shiva. About the 19 incarnations of Lord Shiva-
1. Virbhadra Avatar
This incarnation of Lord Shiva took place when Mother Sati sacrificed her body in a yagya organized by Daksha. When Lord Shiva came to know this, he uprooted a lock of hair from his head in anger and hurled it on top of the mountain. From the eastern part of that Jata, the fearsome Virbhadra appeared. This incarnation of Shiva destroyed Daksha’s yajna and beheaded Daksha by beheading him.
3- Nandi Avatar 〰〰〰〰〰 Lord Shankar represents all living beings. The Nandishwar incarnation of Lord Shankar also follows this and gives the message of love to all living beings. Nandi (bull) is the symbol of Karma, which means Karma is the basic mantra of life. The story of this incarnation is as follows – Shilad Muni was a celibate. Seeing the end of the lineage, his forefathers asked Shilad to produce a child. Shilad did penance to Lord Shiva with the desire of having an ionizing and deathless child. Then Lord Shankar himself gave a boon to Shilad to be born as a son. After some time, while plowing the land, Shilad found a child born from the land. Shilad named him Nandi. Lord Shankar made Nandi his Ganadhyaksha. This is how Nandi became Nandishwar. Nandi was married to Suyasha, the daughter of the Maruts.
4- Bhairav Avatar 〰〰〰〰〰 In Shiv Mahapuran, Bhairav has been described as the complete form of God Shankar. Once influenced by the illusion of Lord Shankar, Brahma and Vishnu started considering themselves superior. Then there appeared a male figure in the midst of the beam of light. Seeing him, Brahmaji said – Chandrasekhar, you are my son. So come to my shelter. Lord Shankar got angry after hearing such words of Brahma. He said to that male figure – Because of being beautiful like Kaal, you are actually Kaalraj. Being fierce is Bhairav. After receiving these boons from Lord Shankar, Kalabhairav cut off the fifth head of Brahma with the nail of his finger. By cutting off the fifth head of Brahma, Bhairav became guilty of the sin of Brahmahatya. In Kashi, Bhairav got freedom from the sin of Brahmahatya. Bhairav’s devotion has been said to be mandatory for the residents of Kashi.
5- Ashwatthama 〰〰〰〰〰 According to the Mahabharata, Ashwatthama, the son of Dronacharya, the Guru of the Pandavas, was an incarnation of Kaal, Krodha, Yama and Lord Shankar. Acharya Drona had done severe penance to get Lord Shankar as his son and Lord Shiva had given him a boon that he would incarnate as his son. When the time came, Savantika Rudra incarnated from his part as Ashwatthama, the mighty son of Drona. It is believed that Ashwatthama is immortal and he still resides on earth. According to Shivmahapuran (Shatrudrasanhita-37), Ashwatthama is still alive and he resides on the banks of the Ganges, but where his residence is, it has not been told. .
6- Sharabhavtar 〰〰〰〰〰 Sharbhavatara is the sixth incarnation of Lord Shankar. Lord Shankar’s form in Sharabhavatar was half of antelope (deer) and the rest of Sharabha bird (an eight-legged animal described in Puranas which was more powerful than a lion). In this incarnation, Lord Shankar pacified the anger of Lord Narasimha. In Lingpuran, there is a story of Shiva’s Sharabhavatar, according to which- To kill Hiranyakashipu, Lord Vishnu took the Narasimha avatar. Even after the killing of Hiranyakashipu, when the anger of Lord Narasimha did not calm down, the deities approached Lord Shiva. Then Lord Shiva took the Sharbhavatar and in this form he approached Lord Narasimha and praised him, but Narasimha’s anger did not calm down. Seeing this, Lord Shiva in the form of Sharabha wrapped Narasimha in his tail and flew away. Then somewhere the anger of Lord Narasimha calmed down. He apologized to Sharbhavatar and praised him in a very humble manner.
7- Grihapati Avatar 〰〰〰〰〰〰 Grihapati is the seventh incarnation of Lord Shankar. Its story is as follows- There was a city named Dharampur on the banks of Narmada. There lived a sage named Vishvanar and his wife Shuchishmati. After remaining childless for a long time, Shuchishmati desired to have a son like Shiva from her husband. Muni Vishwanar came to Kashi to fulfill the desire of his wife. Here he worshiped the Veeresh Linga of Lord Shiva by severe penance. One day Muni saw a child in the middle of Viresh Linga. Muni worshiped Shiva in child form. Pleased with his worship, Lord Shankar gave him the boon of taking incarnation from the womb of Shuchishmati. Later Shuchishmati became pregnant and Lord Shankar appeared in the form of a son from Shuchishmati’s womb. It is said that the grandfather Brahma had named that child Grihapati.
8- Sage Durvasa 〰〰〰〰〰 Among the various incarnations of Lord Shankar, the incarnation of sage Durvasa is also prominent. According to religious scriptures, Maharishi Atri, the husband of Sati Anusuiya, performed severe penance with his wife on the Rikshakul mountain with the desire of having a son, as per the instructions of Brahma. Pleased with his penance, Brahma, Vishnu and Mahesh all three came to his ashram. He said – You will have three sons from our part, who will be famous in Triloki and will increase the fame of the parents. When the time came, the moons were born from the part of Brahmaji. From the part of Vishnu, Dattatreya, who popularized the best retirement method, was born and from the part of Rudra, Munivar Durvasa was born.
9- Hanuman Avatar 〰〰〰〰〰〰 The Hanuman avatar of Lord Shiva is considered the best among all avatars. In this incarnation Lord Shankar took the form of a monkey. According to Shivmahapuran, seeing the Mohini form of Vishnu ji while distributing nectar to the gods and demons, Shiv ji got ejaculated out of lust. The Saptarishis stored that semen in some leaves. When the time came, the Saptarishis installed Lord Shiva’s semen in the womb of Anjani, the wife of Vanaraja Kesari, through the ear, from which very bright and powerful Shri Hanumanji was born.
10- Taurus Avatar 〰〰〰〰〰〰 Lord Shankar had taken the Vrishabha avatar under special circumstances. Lord Shankar killed the sons of Vishnu in this incarnation. According to religious texts, when Lord Vishnu went to Patal Lok to kill the demons, he saw many moon-faced women there. Vishnu begot many sons by having fun with him. These sons of Vishnu created a big nuisance from Patal to the earth. Frightened by them, Brahmaji went to Shivji with the sages and started praying for protection. Then Lord Shankar took the form of a bull and killed the sons of Vishnu.
11- Yatinath Avatar 〰〰〰〰〰〰〰 Lord Shankar had rendered the importance of the guest by taking Yatinath avatar. In this incarnation, he took the test of the Bhil couple as a guest, due to which the Bhil couple had to lose their lives. According to religious scriptures, the Bhil couple Ahuk-Ahuka, devotees of Shiva, lived near the Arbudachal mountain. Once Lord Shankar came to his house in the guise of Yatinath. He expressed his desire to spend the night at the Bhil couple’s house. Ahuka, reminding her husband of the dignity of a householder, herself proposed to spend the night outside with a bow and arrow and let Yeti rest in the house. In this way Ahuk went out with the bow and arrow. In the morning, Ahuka and Yeti saw that the wild animals had killed Ahuka. Yatinath was very sad on this. Then Ahuka pacified him and said that you should not grieve. Immersion of life in guest service is religion and we are blessed by following it. When Ahuka started burning in the funeral pyre of her husband, Lord Shiva appeared to her and blessed her to meet her husband again in the next life.
12- Krishna Darshan Avatar Lord Shiva in this incarnation has told the importance of religious works like Yagya etc. In this way, this incarnation is completely a symbol of religion. According to religious texts, King Nabhag was born in the ninth generation of Ikshvaku dynasty Shraddhadev. When Nabhag went to Gurukul for studies, when he did not return for many days, his brothers divided the kingdom among themselves. When Nabhag came to know about this, he went to his father. The father told Nabhag that he should get the wealth of the Brahmins by completing their yagya by removing the fascination of the Brahmins. Then Nabhag reached the Yagya Bhoomi and performed the Yagya by clearly pronouncing the Vaishya Dev Sukta. Angarik Brahmin went to heaven by giving the remaining money of Yagya to Nabhag. At the same time Shivji appeared in the form of Krishna Darshan and said that he has the right over the remaining money of the yagya. When there was a dispute, Shivji in the form of Krishna Darshan asked him to take a decision from his own father. On Nabhag’s question, Shraddhadev said – That man is Lord Shankar. The residual Vasu in Yagya belongs to him only. Following his father’s words, Nabhag praised Lord Shiva.
13- Avdhoot Avatar 〰〰〰〰〰〰〰 Lord Shankar had shattered the ego of Indra by taking the Avdhoot avatar. According to the religious texts, once upon a time, Indra went to Mount Kailash for the darshan of Lord Shankar along with Brihaspati and other deities. In order to test Indra, Shankarji took the form of an avadhoot and blocked his way. Indra defiantly asked the man repeatedly about his introduction, even then he remained silent. Enraged at this, as soon as Indra wanted to release the thunderbolt to strike the Avadhoot, his hand became paralyzed. Seeing this, Brihaspati recognized Shiva and praised Avadhoot in many ways, pleased with which Shiva forgave Indra.
14- Bhikshuvarya Avatar 〰〰〰〰〰〰 Lord Shankar is the God of Gods. He is also the protector of the life of every living being born in the world. The Bhikshuvarya incarnation of Lord Shankar gives this message. According to religious texts, Vidarbha King Satyaratha was killed by enemies. His pregnant wife saved her life by hiding from the enemies. In due course she gave birth to a son. When the queen went to the lake to drink water, the crocodile made her its food. Then that child started suffering from hunger and thirst. Meanwhile, a beggar reached there with the inspiration of Lord Shiva. Then Shivji introduced the child to that beggar in the form of a beggar and instructed him to nurture and also said that this child is the son of Vidarbha King Satyaratha. By saying all this, Shiva in the form of a beggar showed his real form to that beggar. As per the order of Shiva, the beggar brought up that child. Growing up, that child got his kingdom again after defeating his enemies by the grace of Lord Shiva.
15- Sureshwar Avatar 〰〰〰〰〰〰 Sureshwar (Indra) incarnation of Lord Shankar shows his love towards the devotee. In this incarnation, Lord Shankar, being pleased with the devotion of a small child Upamanyu, gave him the boon of his supreme devotion and immortality. According to religious texts, Upamanyu, the son of Vyaghrapada, used to grow up in his maternal uncle’s house. He was always disturbed by the desire of milk. His mother asked him to go to the shelter of Lord Shiva to fulfill his wish. On this, Upamanyu went to the forest and started chanting Om Namah Shivay. Shivji appeared to him in the form of Sureshwar (Indra) and started condemning Shivji in many ways. Enraged at this, Upamanyu stood up to kill Indra. Seeing Upamanyu’s strong strength and unshakable faith in himself, Shivji showed him his real form and provided him with an immortal ocean like Kshirsagar. On his request, the merciful Lord Shiva also gave him the post of supreme devotion.
16- Kirat Avatar 〰〰〰〰〰〰 In Kirat Avatar, Lord Shankar had tested the bravery of Pandu’s son Arjuna. According to the Mahabharata, the Kauravas usurped the kingdom of the Pandavas by treachery and the Pandavas had to go into exile. During the exile, when Arjuna was doing penance to please Lord Shankar, then a demon named Mud sent by Duryodhana arrived in the form of a pig to kill Arjuna. Arjuna hit the boar with his arrow, at the same time Lord Shankar also shot an arrow at the same boar dressed as Kirat. Due to the illusion of Shiva, Arjun could not recognize him and started saying that the boar was killed by his arrow. There was a dispute between the two on this. Arjun fought with Shiva dressed as Kirat. Lord Shiva was pleased to see Arjuna’s bravery and appeared in his true form and blessed Arjuna with victory over the Kauravas.
17- Suntan Dancer Avatar 〰〰〰〰〰〰〰 To ask for the hand of Parvati’s daughter from Himachal, Parvati’s father, Shivji had dressed as a sun dancer. With Damru in hand, Shivji reached Himachal’s house in the form of a nut and started dancing. Nataraja Shivji danced so beautifully and gracefully that everyone became happy. When Himachal asked Nataraja to beg for alms, Nataraja Shiva asked for Parvati in alms. Himachalraj became very angry on this. After some time, Nataraj disguised Shivji went away himself after showing his form to Parvati. On his departure Maina and Himachal got divine knowledge and they decided to give Parvati to Shivji.
18- Brahmachari Avatar 〰〰〰〰〰〰 After sacrificing her life in Daksha’s Yagya, when Sati was born in the Himalayas, she did great penance to get Lord Shiva as her husband. In order to test Parvati, Shivji disguised himself as a celibate and reached her. Parvati saw the brahmachari and duly worshiped him. When Brahmachari asked Parvati the purpose of her penance and on knowing, started condemning Shiva and also called him cremation dweller and Kapalik. Parvati got very angry after hearing this. Seeing the devotion and love of Parvati, Shiva showed her his real form. Parvati was overjoyed to see this.
19- Yaksha Avatar 〰〰〰〰〰 The Yaksha avatar was assumed by Lord Shiva to remove the undue and false pride of the gods. According to the religious texts, when a terrible poison came out during the churning of the ocean by gods and demons, Lord Shankar took that poison and stopped it in his throat. After this the pot of nectar came out. Not only did all the gods become immortal by drinking nectar, but they also became proud that they are the most powerful. To break this pride of the deities, Shivji took the form of a Yaksha and placed a straw in front of the deities and asked them to cut it. The gods could not cut that straw even after applying all their might. That’s why it was said in the sky that this Yaksha is Lord Shankar, the destroyer of all pride. All the gods praised Lord Shankar and apologized for their crime.
2- Pippalad Avatar 〰〰〰〰〰〰 The Pippalad incarnation of Lord Shiva has great importance in human life. Redressal of Shani’s pain was possible only by the grace of Pippalad. Legend has it that Pippalad asked the deities – what is the reason that my father Dadhichi left me before my birth? The deities told that such a bad yoga was created because of the sight of Shanigraha. Pippalad got very angry after hearing this. He cursed Shani to fall from the constellation. Due to the effect of the curse, Shani started falling from the sky at the same time. On the prayer of the deities, Pippalad forgave Shani on the condition that Shani would not trouble anyone from birth till the age of 16 years. Since then only by remembering Pippalad, Shani’s pain goes away. According to Shiva Mahapurana, this incarnation of Shiva was named by Brahma himself.
Om Namah Parvatipataye Har Har Mahadev