अयोध्या नगरी की महिमा ।।

भगवान राम अयोध्या नगरी की महीमा

का बखान अपने श्री मुख से करते हैं

श्री राम जय राम जय जय राम

सुनु कपीस अंगद लंकेसा।
पावन पुरी रुचिर यह देसा।।

जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदितजगु जाना।।

अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनी।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।

जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा।
मम समीप नर पावहिं बासा।।

अति पिरय मोहि इहां के बासी।
मम धामदा पुरी सुख रासी।।

भावार्थ-
श्रीराम कहते है- हे सुग्रीव ! हे अंगद ! हे लंकापति विभीषण ! सुनो ! यह पुरी पवित्र है और यह देश सुन्दर है।

श्री राम जय राम जय जय राम

यद्यपि सबने वैकुण्ठ की बड़ाई की है- यह वेद पुराणों में प्रसिद्ध है और जगत् जानता है, परन्तु अवधपुरी के समान मुझे वह भी प्रिय नहीं है। यह बात (भेद) कोई-कोई (विरले ही) जानते हैं।

श्री राम जय राम जय जय राम

यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। उसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करनेवाली सरयू नदी बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना ही परिश्रम मेरे समीप निवास (सामीप्य मुक्ति) पा जाते हैं।

श्री राम जय राम जय जय राम

यहां के निवासी मुझे बहुत ही प्रिय हैं। यह पुरी सुख की राशि और मेरे परमधाम को देनेवाली है।

श्री राम जय राम जय जय राम

।। जय भगवान श्रीराम ।।

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