एवमस्तु कहि रघुकुलनायक। बोले बचन परम सुखदायक॥
सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना॥॥
एवमस्तु’ (ऐसा ही हो) कहकर रघुवंश के स्वामी परम सुख देने वाले वचन बोले- हे काक! सुन, तू स्वभाव से ही बुद्धिमान् है। ऐसा वरदान कैसे न मांगता?॥॥
सब सुख खानि भगति तैं मागी। नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी॥
जो मुनि कोटि जतन नहिं लहहीं। जे जप जोग अनल तन दहहीं॥॥
भावार्थ:-तूने सब सुखों की खान भक्ति माँग ली, जगत् में तेरे समान बड़भागी कोई नहीं है। वे मुनि जो जप और योग की अग्नि से शरीर जलाते रहते हैं, करोड़ों यत्न करके भी जिसको जिस भक्ति को नहीं पाते॥॥
रीझेउं देखि तोरि चतुराई। मागेहु भगति मोहि अति भाई॥
सुनु बिहंग प्रसाद अब मोरें। सब सुभ गुन बसिहहिं उर तोरें॥॥
वही भक्ति तूने मांगी। तेरी चतुरता देखकर मैं रीझ गया। यह चतुरता मुझे बहुत ही अच्छी लगी। हे पक्षी! सुन, मेरी कृपा से अब समस्त शुभ गुण तेरे हृदय में बसेंगे॥॥
भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। जोग चरित्र रहस्य बिभागा॥
जानब तैं सबही कर भेदा। मम प्रसाद नहिं साधन खेदा॥॥
भक्ति, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य, योग, मेरी लीलाएँ और उनके रहस्य तथा विभाग- इन सबके भेद को तू मेरी कृपा से ही जान जाएगा। तुझे साधन का कष्ट नहीं होगा॥॥
माया संभव भ्रम सब अब न ब्यापिहहिं तोहि।
जानेसु ब्रह्म अनादि अज अगुन गुनाकर मोहि॥॥
माया से उत्पन्न सब भ्रम अब तुझको नहीं व्यापेंगे। मुझे अनादि, अजन्मा, अगुण प्रकृति के गुणों से रहित और गुणातीत दिव्य गुणों की खान ब्रह्म जानना॥॥
मोहि भगत प्रिय संतत अस बिचारि सुनु काग।
कायँ बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग॥
हे काक! सुन, मुझे भक्त निरंतर प्रिय हैं, ऐसा विचार कर शरीर, वचन और मन से मेरे चरणों में अटल प्रेम करना॥॥ जय जय सिया राम
And somewhere Raghukulnayak. The words said are extremely soothing. Listen Bias, you are easily matured. Why should I not ask for this boon? Saying ‘Evamastu’ (May it be so), the lord of Raghuvansh spoke words that give ultimate happiness – Hey Kak! Listen, you are intelligent by nature. How could one not ask for such a boon? Devotee asked to enjoy all the happiness. No one in the world has the same luck. The sage who doesn’t make any effort. Je japa jog anal tan dahihin ॥॥ Meaning: You have asked for devotion as the source of all happiness, there is no one in the world as fortunate as you. Those sages who keep burning their body with the fire of chanting and yoga, do not attain devotion even after making millions of efforts. Please see, you are clever. I am asking for devotion, great brother. Listen to Bihang Prasad now. All good qualities reside in your hearts. You asked for the same devotion. I was impressed by your cleverness. I liked this cleverness very much. Hey bird! Listen, with my grace now all the good qualities will reside in your heart. Bhagti Gyan Bigyan Biraga. Jog Charitra Rahasya Bibhaga॥ Sir, you have penetrated everything. Maam, not Prasad, but the means, Kheda.
Devotion, knowledge, science, renunciation, yoga, my pastimes and their secrets and divisions – you will know the secrets of all these only by my grace. You will not have any problem regarding resources. Maya is a possible illusion, now everything is not married. Jaanesu Brahma Aadi Aaj Agun Gunakar Mohi॥
All the illusions created by Maya will no longer engulf you. Know me as Brahma, the mine of eternal, unborn, un-gunable nature and the mine of transcendental divine qualities. Mohi Bhagat, dear saint, listen to this poor person. Why should I speak in my mind, I should say ‘Achal Anurag’.
Hey Kak! Listen, the devotee is always dear to me, thinking this, have unwavering love at my feet with body, speech and mind. Hail hail Sita Ram