निर्बल के प्राण पुकार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे।
श्वासों के स्वर झंकार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे ॥
आकाश हिमालय सागर में,
पृथ्वी पाताल चराचर में।
ये मधुर बोल गुंजार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे ॥
जब दया-दृष्टि हो जाती है,
सूखी खेती लहराती है।
इस आश पै जन उच्चार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे ॥
सुख-दुखों की चिन्ता है ही नहीं
भय है विश्वास न जाये कहीं।
टूटे न लगा यह तार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे |
तुम हो करुणा के धाम सदा,
सेवक है भक्त सदा ।
बस इतना सदा विचार रहे,
जगदीश हरे जगदीश हरे ॥
The souls of the weak are crying out,
Jagdish Hare Jagdish Hare.
The sound of breaths was ringing,
Jagdish Hare Jagdish Hare ॥
sky in the himalayan sea,
Earth in hell pasture.
These sweet words keep humming,
Jagdish Hare Jagdish Hare ॥
When there is compassion,
Dry farming waves.
People should keep chanting this hope,
Jagdish Hare Jagdish Hare ॥
There is no worry about happiness and sorrow
There is a fear that faith may go away.
May this wire not seem broken,
Jagdish Hare Jagdish Hare
You are always the abode of compassion,
The devotee is always a servant.
Just always have this thought,
Jagdish Hare Jagdish Hare ॥