जै-जै-जै-जै कुँवरि किशोरी, श्रीराधा महारानी ।
सुनिये विनय रावरी श्यामा, महाकृपा की खानी ॥
यदपि मैं यहि लायक नहिं तुम, सब लायक ठकुरानी ।
मैं हूँ पतित पतितपावन तुम, कहत वेद इम बानी ॥
कुंज महल की टहल दीजिये, शरणागत मोहिं जानी ।
तुम बिन कौन सुनैगो स्वामिनि, ‘रामसखी’ मनमानी ॥
कुँवरी किशोरी श्री राधा महारानी की जय हो जय हो जय हो । हे रावरी, आप महाकृपा की खानी हो, कृपा कर मुझ दीन की विनय भी सुनिए ।
यदपि मैं इस लायक़ नहीं हूँ कि आपकी कृपा प्राप्त कर सकूँ परंतु आप सब प्रकार से लायक़ हो ठकुरानी। वेद तो यही कहता है कि मेरे जैसे पतितों को पावन करने हेतु ही आपको पतित पावन नाम से जाना जाता है ।
चाहे मैं जैसा भी हूँ, मैं आपकी शरण में हूँ, अत: मुझे आप अपने कुंज महल की टहल (सेवा) प्रदान कीजिए । हे राधा रानी (स्वामिनी), यदि आप मेरी नहीं सुनोगी तो और मैं किसे सुनाऊँगा (अर्थात् किसे अपनी मनमानी कहूँगा) ।