किशोरी, मोहि देहु वृन्दावन वास ।
कर करवा हरवा गुंजन के, कुंजन माँझ निवास ॥
नित्यबिहार निरखि निसि वासर, छिन छिन चित्त हुलास ।
प्रेम छकनि सौं छक्यौ रहौं नित, लखि दम्पति सुखरास ॥
देह-गेह सुधि-बुधि सब बिसरौं चरण-शरण की आस ।
बृजवासिन के मंदिर, घर-घर, रुचि कैं पाऊँ गास ॥
कुंजगली रसरली भली विधि, गाऊँ गुननि प्रकास ।
निज दासन सौं अंग-संग मिलि, करौं विनोद विलास ॥
आन धर्म व्रत नेम न ठानौं, चातृक चौंप पियास ।
‘किशोरीअली’ माँगत कर जोरैं राखौ रसिकन पास ॥
हे किशोरी जू, मुझे वृन्दावन का वास प्रदान कीजिये, जहाँ मैं हाथ में करुवा लेकर एवं गले में प्रसादी गूंजा माला धारण कर कुञ्ज में निवास प्राप्त करूँ ।
श्री वृन्दावन में रात-दिन नित्य विहार का दर्शन कर मेरा चित्त क्षण-क्षण में उल्लसित होगा । श्री श्यामाश्याम की प्रेममयी क्रीड़ा को देख मैं नित्य ही प्रेम रस में डूबा रहूँगा ।
आपके चरण कमलों की शरण की आशा से स्वतः ही घर-संसार एवं देह की सुधि को भूला दूँगा । मंदिर के समान ब्रजवासियों के घर-घर जाकर मैं मधुकरी प्राप्त कर प्रेम से ग्रहण करूँगा ।
कुंजगली में भली प्रकार से रससिक्त होकर मैं युगल किशोर के गुणों का गान करूँगा । श्री श्यामाश्याम के निज-दासों का अंग-संग कर उनसे प्रेम-रस की चर्चा करूँगा ।
श्री किशोरी अलि जी कहते हैं कि “हे श्यामा जू, अन्य धर्म, व्रत, नेम, आदि का त्याग कर चातक की भाँती केवल आपकी कृपा-वृष्टि की आशा करूँगा, मैं आपसे हाथ जोड़कर माँगता हूँ कि मुझे सदैव रसिकों का संग प्रदान कीजिये ।”