रघुनन्दन चरणयुगल वन्दन हित आइ खड़े दशरथ द्वारैं।
कौशल्या सुत दरशन पाइ सकैं निज तन मन धन उन पर वारैं।।
इस दास से तो मुण्डेर भले नितप्रति श्रीराम को देखत हैं।
मुझसे तो दुआरि की धूलि भली प्रभु लोटत हैं मुख मेलत हैं।
आंगन के पुष्प लता तरि गैं जिनसे प्रभु पे नित पुष्प झरैं।
मणिमय आंगन की फर्श भली जहं चरन लिये कन्दुक विचरैं।।
बड़भागी शश खग मोर विहग बगियन शिशु राम से मिलि खेलैं।
अरु काग के भाग के का कहिये प्रभु राम के कर माखन ले लैं।।
रघुवर पद पांव की पैजनियां रुनझुन रुनझुन नित पद परसैं।
मुझसे तो भली कौशल की गली प्रभु तातु की उंगली धरि निकसैं।।
उस काठ के अश्व के भागि जगे जिसपे शिशु प्रभु चढ़ि खेल करैं।
अवधेश के गेह के भागि खुले जहं प्रभु भाइन संग मेल करैं।।
रघुवर के द्वार के श्वान भले रघुनाथ के हाथ से टुक पावैं।
बाछा बाछिन के भाग भले जिनको शिशु प्रभु नित दुलरावैं।।
प्रभु के दरशन अरु परसन हित मोहिं कोटिक कोटि जनम दीजै।
रघुनाथ दुआरि सम्भारि प्रभू मोहे चौखट काठ में मढ़ि दीजै।।
श्री हरि ऊं
रघुनन्दन चरणयुगल वन्दन हित आइ खड़े दशरथ द्वारैं।
![IMG WA](https://bhagvanbhakti.com/wp-content/uploads/2023/03/IMG-20230308-WA0016-1.jpg)
Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email