शिव हरे शिव राम सखे प्रभो, त्रिविधतापनिवारण हे विभो।
अज जनेश्वर यादव पाहि मां, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।१।।
हे शिव ! हे हरे, हे शिव, हे राम, हे सखे ! हे प्रभो, हे त्रिविध तापनिवारण विभो! हे अज, हे जगन्नाथ, हे यादव! मेरी रक्षा करो; हे शिव! हे हरे! मेरी कल्याणमय विजय करो।
कमललोचन राम दयानिधे, हर गुरो गजरक्षक गोपते।
शिवतनो भव शङ्कर पाहि मां, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।२।।
हे कमललोचन दयानिधे राम ! हे हर ! हे गुरो ! हे गजरक्षक ! हे गोपते ! हे कल्याणरूपधारी भव ! हे शंकर ! मेरी रक्षा करो; हे शिव ! हे हरे ! मेरा उत्तम विजय-साधन करो।
सुजनरञ्जन मङ्गलमन्दिरं, भजति ते पुरुषः परमं पदम्।
भवति तस्य सुखं परमद्भुतं, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।३।।
हे सज्जन-मनरंजन ! जो पुरुष तुम्हारे मंगलमन्दिर (शिव और विष्णुरूप) परमपद का आश्रय लेते हैं, उन्हें परम दिव्य सुख प्राप्त होता है; अतएव हे शिव ! हे हरे ! मेरा वर विजय-साधन करो।
जय युधिष्ठिरवल्लभ भूपते, जय जयार्जितपुण्यपयोनिधे।
जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तु ते, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।४।।
हे युधिष्ठिर के प्रियतम ! हे भूपते ! आप विजयी हों ! हे पुण्य-महासागरके उपार्जन करनेवाले ! आपकी जय हो, जय हो; हे दयामय कृष्ण ! आपकी जय हो, आपको नमस्कार है; हे शिव ! हे हरे ! आप मेरी कल्याणमय विजय करें।
भवविमोचन माधव मापते, सुकवि मानसहंस शिवारते।
जनकजारत राघव रक्ष मां, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।५।।
हे भवभयहारी माधव ! हे लक्ष्मीपते ! हे सुकवि-मानस-हंस ! हे पार्वतीप्रिय ! हे जानकीजीवन राघव ! मेरी रक्षा करो, हे शिव !
हे हरे ! मेरा वर विजयसम्पादन करो।
अवनिमण्डलमङ्गल मापते, जलदसुन्दर राम रमापते।
निगमकीर्तिगुणार्णव गोपते, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।६।।
हे भूमिमण्डल के मंगलस्वरूप ! हे श्रीपते ! हे घनश्याम सुन्दर ! हे राम ! हे रमापते ! हे वेदवर्णित गुण-सागर ! हे गोपते ! हे शिव !
हे हरे ! मेरी कल्याणमय विजय करो।
पतितपावन नाममयी लता, तव यशो विमलं परिगीयते।
तदपि माधव मां किमुपेक्षसे, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।७।।
हे पतितपावन! तुम्हारा नाम कल्पलता है, तुम्हारा यश नित्य सर्वत्र गाया जाता है तथापि हे माधव ! तुम मेरी उपेक्षा क्यों कर रहे हो? हे शिव ! हे हरे ! मेरा शुभ विजय-साधन करो।
अमरतापरदेव रमापते, विजयतस्तव नामधनोपमा।
मयि कथं करुणार्णव जायते, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।८।।
हे देवों में श्रेष्ठ देव ! हे दयासागर रमापते ! सर्वत्र विजय पानेवाले तुझ परमेश्वरके नाम रूपी धन का आदर्श कोष मेरे पास किस प्रकार संचित हो जायगा ? हे शिव ! हे हरे ! मेरा परम विजय-साधन करो।
हनुमतः प्रिय चापकर प्रभो, सुरसरिद्धृतशेखर हे गुरो।
मम विभो किमु विस्मरणं कृतं, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।९।।
हे हनुमत्प्रिय ! हे चापधारी प्रभो ! हे शीशपर गंगाजीको धारण करनेवाले गुरुदेव ! हे विभो ! तुम मुझे क्यों भूल गये ? हे शिव ! हे हरे ! मेरा परम जय-साधन करो।
अहरहर्जनरञ्जनसुन्दरं, पठति यः शिवरामकृतं स्तवम्।
विशति रामरमाचरणाम्बुजे, शिव हरे विजयं कुरु मे वरम्।।१०।।
जो मनुष्य इस लोकप्रिय सुन्दर रामानन्द स्वामी के द्वारा विरचित शिवराम-स्तव का पाठ करता है, वह राम-रमा के चरणकमलों में प्रवेश करने में समर्थ होता है। हे शिव ! हे शिव ! हे हरे ! मेरा श्रेष्ठ विजय-साधन करो।
प्रातरुत्थाय यो भक्त्या, पठेदेकाग्रमानसः।
विजयो जायते तस्य, विष्णुमाराध्यमाप्नुयात्।।११।।
जो प्रातःकाल उठकर एकाग्रचित्त से इस शिवरामस्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सर्वत्र जय होती है और वह अपने आराध्यदेव विष्णु को प्राप्त होता है।
।। इति श्रीरामानन्द स्वामिना विरचितं श्रीशिवरामाष्टकं सम्पूर्णम् ।।