अन्तःकरण मे ज्ञान की ज्योति जगा कर देख

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा कर देख।

भीतर है सखा तेरा,

जरा मन लगा के देख

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा के देख

है इन्द्रियों की वृत्तियां,

बाहर की ओर जो।

बाहर की ओर से उन्हें

भीतर को मोङ दो।

कर द्वार सकल बन्द,

समाधि लगा के देख।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा के देख

शुद्धात्मा से उसकी,

तू रचना का ध्यान कर।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा के देख

निश्चय ही झूम जाएगा,

महीमा का गान कर।

उसके पवित्र भक्त सा,

जीवन बना कर देख।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा के देख,

साथी पवित्र ईश्वर,

फिर बिगड़ी बने न क्यो।

जीवन यह तेरा,

भक्ति के रस में सने न क्यो

श्रद्धा की देवी रूठी है

उसे मना कर देख ले।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा कर देख।

बन सत्य आत्मरूप,

तु उपकार यज्ञ कर

दुखते दिलो के घाव पर,

शीतल जल छङक के देख।

नीज पुण्य रुप कर्म से,

प्रभु को रिझा कर देख।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा कर देख।

मिलता है सखा वह तो,

बस इसी उपाय से।

मिलता नहीं है वह

कहीं अन्यत्र जाय के।

प्रभु की पवित्र वेदवाणी।

अजमा कर देख।

अन्तःकरण मे ज्ञान की

ज्योति जगा कर देख।

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