तुम्हारे भाव के अनुरूप ही प्रभु के दर्शन तुम्हें प्राप्त होंगे। तुम जिस भाव में, जिस रूप में उस प्रभु को भजोगे उसी रुप में वह प्रभु आपको दर्शन दे देंगे।
जब कोई भक्त सच्चे हृदय से अपने प्रभु को बुलाता है तो प्रभु वहाँ अवश्य जाते हैं। जिस प्रकार की जिसकी भावना होगी उस रूप में ही उसे प्रभु दर्शन प्राप्त होंगे।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यही कहा है आप
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
माँ कौशल्या और माँ देवकी ने प्रभु को वात्सल्य भाव से भजा तो उनके लिए प्रभु पुत्र बनकर ही आए और रावण व कंस आदि ने प्रभु को शत्रु भाव से भजा तो उनके लिए वह प्रभु शत्रु बनकर ही आए। प्रभु को ही क्यों इस जगत में भी जैसी हमारी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि हमें नजर आने लगती है।
इसीलिए हमारे शास्त्रों ने आदेश किया कि सही और गलत सृष्टि में नहीं अपितु आपकी दृष्टि में होता है। आप स्वयं में अच्छा बनने का प्रयास तो करें दुनिया भी अच्छी नजर आनी लगेगी।
दुनिया अच्छी है तो केवल उनके लिए जिनके भीतर अच्छाई है और दुनिया बुरी है तो उनके लिए जिनके भीतर बुराई है।