“भाव के भूखे प्रभु”

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           भगवान् ने गोपियों का अपने हाथ से श्रृंगार किया। अत: गोपियों को भी अभिमान हो गया, कि कृष्ण ने हमारी सुंदरता के कारण हमें स्वीकार किया क्योंकि हम बहुत सुंदर हैं। भगवान् अभिमान तो किसी का नहीं रहने देते, गोपियाँ तो उनकी प्रेयसी हैं। भगवान् ने यदि हमें कभी स्वीकार किया, तो यह समझना चाहिए कि यह हमारी योग्यता नहीं, उनकी करूणा है। अत: वह गोपियों को उसी अवस्था में छोड़कर अंतर्धान हो गए। विरह ही अभिमान को निवृत्त करता है।
            गोपियाँ भगवान् के वियोग में बहुत व्याकुल हो गईं और पश्चाताप करने लगीं। गोपियों ने ‘तुलसी’ से पूछा, कि तुम तो गोविंद की ‘चरणप्रिया’ हो, क्या तुमने हमारे कान्हा को कहीं देखा है ? पीपल वृक्ष से पूछा कि सभी वृक्षों में से पीपल का वृक्ष भगवान् का रूप है। अत: तुमने हमारे कृष्ण को देखा है ? प्रेम की उत्कृष्टता में जड़ और चेतन का भेद खत्म हो जाता है, अर्थात जड़ में भी चैतन्य दिखाई देता है। गोपियां तो कृष्णमयी थीं, उन्हें तो कण-कण में भगवान् दिखाई देते थे।
            गोपियों ने रेत में चार चरण चिन्ह देखे और वे उन्हीं चरण चिन्हों का पीछा करते हुए सोचने लगीं कि ये चार चरण चिन्ह हैं। अत: कृष्ण राधा को साथ लेकर गए होंगे। विरह करती गोपियां चरणों का पीछा करते हुए आगे पहुँचीं, तो देखा कि अब दो ही चरण चिन्ह हैं और राधा भी कृष्ण विरह में व्याकुल हो रही हैं। राधा ने बताया कि यहाँ आकर ठाकुर ने राधा के पसीने को पोंछा तो राधा ने कहा कि मैं थक गई, अब मैं नहीं चल सकती। मुझे अपने कंधे पर बिठा लो। जैसे ही मैंने कंधे पर बैठने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो कृष्ण अंतर्धान हो गए। गोपियों ने देखा कि राधा दोनों हाथ आगे करके कृष्ण विरह में व्याकुल हो उठी।
              गोपियों का रुदन सुनकर भगवान तुरन्त हाथ में पीताम्बर लेकर उपस्थित हो गए। भगवान का प्यार ही आँसुओं का उपहार है। रुदन में बहुत बल है यदि भगवान के लिए दो बूँद अश्रु गिर जायें तो वे अश्रु ही आश्रय बन जाते हैं। गोपियों के शरीर में तो प्राण आ गए। भगवान ने गोपियों से कहा कि यदि मुझे ब्रह्मा की आयु भी मिले, तो मैं तुम्हारे इस ऋण से उऋण नहीं  हो सकता।
                      

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