कोई गोपी उद्धव पर व्यंग्य करती है। मथुरा के लोगों का कौन विश्वास करे? उनके तो मुख में कुछ और मन में कुछ और है। तभी तो एक ओर हमें स्नेहिल पत्र लिख कर बना रहे हैं दूसरी ओर उद्धव को जोग के संदेश लेके भेज रहे हैं। जिस तरह से कोयल के बच्चे को कौआ प्रेमभाव से भोजन करा के पालता है और बसंत रितु आने पर जब कोयलें कूकती हैं तब वह भी अपनी बिरादरी में जा मिलता है और कूकने लगता है। जिस प्रकार भंवरा कमल के पराग को चखने के बाद उसे पूछता तक नहीं। ये सारे काले शरीर वाले एक से हैं, इनसे सम्बंध बनाने से क्या लाभ? निरगुन कौन देस को वासी।
अब गोपियों ने तर्क किया हाँ तो उद्धव यह बताओ कि तुम्हारा यह निर्गुण किस देश का रहने वाला है? सच सौगंध देकर पूछते हैं, हंसी की बात नहीं है। इसके माता-पिता, नारी-दासी आखिर कौन हैं? कैसा है इस निरगुण का रंग-रूप और भेष? किस रस में उसकी रुचि है? यदि तुमने हमसे छल किया तो तुम पाप और दंड के भागी होगे। सूरदास कहते हैं कि गोपियों के इस तर्क के आगे उद्धव की बुद्धि कुंद हो गई। और वे चुप हो गए। लेकिन गोपियों के व्यंग्य खत्म न हुए वे कहती रहीं –
हे उद्धव ये तुम्हारी जोग की ठगविद्या, यहाँ ब्रज में नहीं बिकने की। भला मूली के पत्तों के बदले माणक मोती तुम्हें कौन देगा? यह तुम्हारा व्यापार ऐसे ही धरा रह जाएगा। जहाँ से ये जोग की विद्या लाए हो उन्हें ही वापस सिखा दो, यह उन्हीं के लिये उचित है। यहाँ तो कोई ऐसा बेवकूफ नहीं कि किशमिश छोड क़र कडवी निंबौली खाए! हमने तो कृष्ण पर मोहित होकर प्रेम किया है अब तुम्हारे इस निरगुण का निर्वाह हमारे बस का नहीं।
गोपियां चिढ क़र पूछती हैं कि कहीं तुम्हें कुबजा ने तो नहीं भेजा? जो तुम स्नेह का सीधा साधा रास्ता रोक रहे हो। और राजमार्ग को निगुर्ण के कांटे से अवरुध्द कर रहे हो! वेद-पुरान, स्मृति आदि ग्रंथ सब छान मारो क्या कहीं भी युवतियों के जोग लेने की बात कही गई है? तुम जरूर कुब्जा के भेजे हुए हो। अब उसे क्या कहें जिसे दूध और छाछ में ही अंतर न पता हो। सूरदास कहते हैं कि मूल तो अक्रूर जी ले गए अब क्या गोपियों से ब्याज लेने उद्धव आए हैं?
अब थक हार कर गोपियाँ व्यंग्य करना बंद कर उद्धव को अपने तन मन की दशा कहती हैं। उद्धव हतप्रभ हैं, भक्ति के इस अद्भुत स्वरूप से। हे उद्धव हमारे मन दस बीस तो हैं नहीं, एक था वह भी श्याम के साथ चला गया। अब किस मन से ईश्वर की अराधना करें? उनके बिना हमारी इंद्रियां शिथिल हैं, शरीर मानो बिना सिर का हो गया है, बस उनके दरशन की क्षीण सी आशा हमें करोडों वर्ष जीवित रखेगी। तुम तो कान्ह के सखा हो, योग के पूर्ण ज्ञाता हो। तुम कृष्ण के बिना भी योग के सहारे अपना उध्दार कर लोगे। हमारा तो नंद कुमार कृष्ण के सिवा कोई ईश्वर नहीं है।
गोपी उद्धव संवाद के ऐसे कई कई पद हैं जो कटाक्षों, विरह दशाओं, राधा के विरह और निरगुण का परिहास और तर्क-कुतर्क व्यक्त करते हैं। सभी एक से एक उत्तम हैं पर यहाँ सीमा है लेख की।
गोपियाँ राधा के विरह की दशा बताती हैं, ब्रज के हाल बताती हैं। अंतत: उद्धव का निरगुण गोपियों के प्रेममय सगुण पर हावी हो जाता है और उद्धव कहते हैं –
कृष्ण के प्रति गोपियों के अनन्य प्रेम को देख कर उद्धव भाव विभोर होकर कहते र्हैं मेरा मन आश्चर्यचकित है कि मैं आया तो निर्गुण ब्रह्म का उपदेश लेकर था और प्रेममय सगुण का उपासक बन कर जा रहा हूँ। मैं तुम्हें गीता का उपदेश देता रहा, जो तुम्हें छू तक न गया। अपनी अज्ञानता पर लज्जित हूँ कि किसे उपदेश देता रहा जो स्वयं लीलामय हैं। अब समझा कि हरि ने मुझे यहाँ मेरी अज्ञानता का अंत करने भेजा था। तुम लोगों ने मुझे जो स्नेह दिया उसका आभारी हूँ। सूरदास कहते हैं कि उद्धव अपने योग के बेडे क़ो गोपियों के प्रेम सागर में डुबो के, स्वयं प्रेममार्ग अपना मथुरा लौट गए।
“भ्रमर गीत पोस्ट – 02

- Tags: estrangement, God worship, hope alive, love-like sagun dominates तन मन की दशा, Nanda Kumar Krishna is not God Gopi Uddhav dialogues, perfect knower of yoga, Radha, sarcasm, senses relaxed, separation, The state of body and mind, Uddhava bewildered, vision, wonderful forms of devotion, इंद्रियां शिथिल, ईश्वर अराधना, उद्धव हतप्रभ, दरशन आशा जीवित, नंद कुमार कृष्ण ईश्वर नहीं गोपी उद्धव संवाद कटाक्षों, प्रेममय सगुण हावी, भक्ति के अद्भुत स्वरूप, योग के पूर्ण ज्ञाता, राधा विरह, विरह दशाओं
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on pinterest
Share on reddit
Share on vk
Share on tumblr
Share on mix
Share on pocket
Share on telegram
Share on whatsapp
Share on email