दुख में जो निखर गया वह बन जाता है

प्रभु श्रीराम के जीवन का यदि सहस्रान्श भी हमने जीवन में उतार लिया तो इस छोटे से जीवन की नैय्या बड़ी ही सरलता से अपने ठिकाने पर लग जाएगी

उन्होंने दर्शन दिखाया कि दुःख पुरुषार्थ को जगाकर जीवन को गति प्रदान करता है दुःखों में अधीर होने की आवश्यकता नहीं है

राम को सदा दुःख ही भोग लगे फिर भी उन्होंने बिना विचलित हुए अपने दुःखों को भूलकर हमेशा दूसरों के दुःख के निर्मूलन के लिए जीवन जिया

यह जानते हुए भी कि समय परिवर्तन शील है हम जीवन में आई अस्थायी विपत्तियों से बिखरकर अनेकानेक त्रुटिपूर्ण व द्वेषपूर्ण निर्णय लेकर भविष्य का प्रारूप और भी विकृत बना लेते हैं

राम ने अपने हर दुःख में सुख की किरण ढूंढ़कर उसे अमृत समझ ही जीवन जीने का संदेश दिया है

आज अपने जीवन के हर निर्णय काल में प्रभु श्रीराम के मार्ग का अनुसरण कर पाने की अलौकिक प्रार्थना के साथ शुभरात्रि

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