हमें निरन्तर प्रभु चिंतन पर दृष्टि टिका कर रखनी चाहिए

मनुष्य को निरन्तर प्रभु चिंतन करते रहना चाहिए।प्रभु चिंतन करते रहने से मनुष्य कष्टों से दूर रहता है, उसकी एकाग्रता बढ़ती है और परमात्मा उसे अधिक सहज ,सहिष्णु बना देता है।जिस कारण वह दूसरे लोगो की सेवा भी कर पाता है।

प्रभु का चिंतन करना हमारा काम है और हमारी चिंता करना प्रभु का काम । हमें चिंता के समय भी प्रभु का चिंतन करना चाहिए और प्रभु को हमारी चिंता करने देना चाहिए । पर हम खुद अपनी ही चिंता में मग्‍न हो जाते हैं जिस कारण प्रभु का चिंतन भी हमसे छूट जाता है।

पढिये कथा। एक व्यापारी था वह बहुत सम्पन्न था उसके पास रहने के लिए एक महलनुमा बहुत बड़ा घर था। सभी तरह की सुख सुविधा उसके पास थी।किन्तु फिर भी वह सुख सुविधाओं से दूर बहुत ही साधारण तरीके से जीवन जीता था ।वह सदैव प्रभू का चिंतन करता और गरीबों की सेवा तथा जरूरतमंदों की सहायता करता था।एक रोज एक बहुत बड़े महात्मा व्यापारी से मिलने उसके महलनुमा घर मे आये थे।

उस समय व्यापारी गरीबो से सम्बंधित सहायता की योजना बना रहा था।कि किस प्रकार उपलब्ध साधनों से मै अधिक से अधिक लोगो की सहायता कर सकू।तभी महात्मा व्यापारी से बोले,

सेठ जी आपके पास तमाम सुख सुविधा है, किन्तु फिर भी आप इतनी सादगी से रहकर धन भी कमाते हैं, गरीबो की सेवा भी करते,और प्रभु चरणों मे ध्यान भी लगा लेते हैं।यह सब आप कैसे करते हैं।सेठ बोला, महात्मन आप गलत समय पर आए हैं, मै अभी व्यस्त हूँ।

आप तब तक ऐसा करें कि ये माला लीजिए और और इसको जपते जपते मेरा महलनुमा घर देख आये,परन्तु ध्यान रहे,पूरे महल को देखते देखते,यह माला पूरी होनी चाहिए।थोड़ी देर बाद महात्मा वापस आये उनसे पूछा, महात्मा जी मेरा महल कैसा लगा।

महात्मा बोले सेठ जी महल तो मै देख ही नही पाया,क्योंकि मेरा सारा ध्यान इस माला को जपने में ही लगा रहा,सेठ बोला,महात्मा इसी प्रकार मै सुख सुख सुविधाओं की ओर ध्यान ही नही देता,मेरा तो ध्यान अधिक से अधिक धन अर्जित करके गरीबो की सेवा में लगाना है।

प्रभु का चिंतन तभी संभव होता है जब हमारा ध्‍यान हमारी चिंता से हटता है क्‍योंकि खुद की चिंता और प्रभु का चिंतन एक समय में एक साथ हो ही नहीं सकते । प्रभु का चिंतन करना है तो अपनी चिंता भूलनी होगी । प्रभु का चिंतन करते ही हमारी चिंता का दारोमदार प्रभु पर आ जाता है ।
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।

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