आज अधिकांश लोग यह दावा करते मिल जाते हैं कि मैं भगवान का बहुत बड़ा भक्त हूं या फला देव से मुझे वर्षों से अटूट प्रेम व लगाव है।
वह यह भी बोल जाते हैं कि मैं भगवान की इतनु भक्ति करता हूं किंतु न मेरी समस्याएं हल हो पा रही हैं ना ही मुझे कोई दैवी अनुभूति ही हो रही है।
प्रेम व भक्ति का दावा करना जितना सरल है वास्तविक प्रेम व भक्ति कर पाना उतना ही कठिन है।
पानी से प्रेम करने का दावा मछली भी करती है और मेढक भी लेकिन पानी से आत्मिक प्रेम मात्र मछली करती है मेढक सिर्फ प्रदर्शन करता है। कहीं भगवान के प्रति हमारा तुम्हारा प्रेम भी मेढक जैसा तो नहीं
मछली पानी के बिना जीवित नहीं रह पाती किन्तु मेढक पानी के अभाव में महीनों व वर्षों भी जीवित रह सकता है।
जब तक प्रभु को प्राप्त करने का प्रेम तुम्हारे हृदय में इस हद तक ना पैदा हो जाए कि तुम्हारा जीना मुहाल हो जाए तब तक तुम्हारा प्रभु भक्ति और प्रेम का दावा खोखला है।
प्रेम ही प्रभु का विधान है वा प्रेम ही भक्ति है। तुम जीते हो ताकि तुम प्रेम करना सीख लो। तुम प्रेम करते हो ताकि तुम जीना सीख लो।
जब तक ऐसा अखण्ड प्रेम तुम्हारे अंदर पैदा नहीं होगा तुम प्रभु के भक्त या प्रेमी हो ही नहीं सकते।
प्रेम एक दीवानगी है , प्रेम एक सम्मोहन है , प्रेम वह अमृत है जिसे पीने के लिए प्रभु भी अपने भक्त के दीवाने हो उसके आगे पीछे घूमते हैं,
जिस दिन से तुम्हारे दिल में ऐसा प्रेम पैदा हो जाएगा उसी दिन से तुम्हारे जीवन में ना कोई समस्या बचेगी ना ही कोई शिकायत।
ना तुम्हे ये बताने की जरूरत रह जाएगी कि मैं भगवान का बहुत बड़ा भक्त हूं। प्रेम भक्त और भगवान के बीच का अन्तर समाप्त कर दोनों को एकाकार कर देता है।
Today, most of the people are found claiming that I am a great devotee of God or that I have unwavering love and affection for a particular God for years.
He also says that I worship God so much but neither my problems are being solved nor I am getting any divine experience.
As easy as it is to claim love and devotion, it is equally difficult to practice real love and devotion. Fish and frog also claim to love water, but only the fish have spiritual love for water, the frog only demonstrates. Is our love for God also like that of a frog?
Fish cannot survive without water but frog can survive for months and even years in the absence of water.
Unless the love of attaining God develops in your heart to such an extent that it becomes difficult for you to live, your claim of devotion and love for God is hollow.
Love is the law of God or love is devotion. You live so that you can learn to love. You love so that you learn to live.
Unless such undivided love is born within you, you cannot be a devotee or lover of God.
Love is a madness, love is a hypnosis, love is that nectar to drink which even the Lord is crazy about his devotee and moves around him.
The day such love is born in your heart, there will be no problem or complaint left in your life.
There will be no need to tell you that I am a great devotee of God. Love eliminates the difference between the devotee and God and unites both.