“पुनः महाभाव के सागर में लहर उठी। ये लहर सब कुछ बहा ले गयी, सब कुछ, अब कुछ पता नही चलता,
मेरे नयन द्वय की तुम्हारे , मैं अद्वितीय की तुम ?
मैं अनेक की तुम ? मैं और तुम फिर ये क्या है ? “
फिर एक उन्मुक्त हंसी तुम निकट मैं निकटतम , यह अचरज की बात नही ।”
अपने प्रिय मित्र कमलनयन जी को खोकर अत्यन्त दुःखी हो उठे थे बालकृष्ण उन्होंने अपनी साधना बढ़ा दी थी, वो दिन भर भजन करते थे, वो किसी से बात नही करते, बस अपने में ही लीन । पर रासलीला का दर्शन करने अवश्य जाते थे,
एक दिन एक महात्मा रास लीला में ही इनको मिल गये ….ये उन्हें जानते नही थे …कभी उन्हें देखा भी नही था …रासलीला वो भी देख रहे थे और बालकृष्ण भी रासलीला का दर्शन कर रहे थे…..पर वो कुछ विचित्र से दीखते थे ….बड़ी बड़ी उनकी आँखें …पर उन आँखों में एक अज़ीब सी बात थी …..अज्ञात रहस्यों को अपने में समेटे वो आँखें ।
रास लीला चल रही थी , प्रसंग था कन्हैया एक गोपी के यहाँ माखन चुराने के लिए जा रहे हैं । दूर बैठे उन महात्मा ने बालकृष्ण को अपने पास बुलाया ….पहले तो वो उठे नही …बैठे ही रहे और उनकी उपेक्षा करते हुये रासलीला ही देखते रहे ।
पर वो महात्मा भी विचित्र थे , उठ गये और बालकृष्ण के पास आकर धीरे से बोले …”ये कन्हैया की प्रसादी मिश्री है …माखन से निकाल कर लाया हूँ मैं ….वो खा रहा था तो मैंने झट् से निकाल लिया ….आधी मैंने खा ली फिर मैंने तुम्हारी ओर देखा तो ….तुम खा लो” उन महात्मा जी ने बालकृष्ण के हाथ में वो मिश्री का टुकड़ा दे दिया …..पहले तो मिश्री न खाने की सोची ….पर वो महात्मा भी वहीं खड़े रहे ….और देख रहे थे खायेगा या नही । अब क्या करते बालकृष्ण ….मिश्री मुख में डाल ली । पर ये क्या हुआ ! जो लीला यहाँ रास में चल रही थी …वो प्रत्यक्ष हो उठा …नन्दगाँव …वही दिव्य नन्दगाँव प्रकट हो गया । मणिमय नन्दभवन ..उससे गौचारण के लिए निकल रहे कन्हैया …ओह ! कन्हैया का वो रूप …सिर में मोर पिच्छ …हाथों में लकुट …फेंट में बाँसुरी …घुंघराली अलकें ..कानों में कपोल को छूती कुण्डलें …..वो मन्द हास्य ….चारों ओर गोप ग्वालों से घिरे …….कितना सुन्दर वन प्रान्त उसी में इनका प्रवेश हो रहा था …चरण अत्यन्त कोमल हैं …..पर कोई पादुका नही है ….चले जा रहे हैं ….बछड़े गौयें आगे आगे चल रही हैं ….
ये दर्शन …..साक्षात दर्शन हुये बालकृष्ण को …..एक घण्टे तक ये दर्शन होते रहे थे …..जब इन्हें अब बाह्य ज्ञान और दृश्य दिखाई देने लगे ….तब ये उठे और पागलों की तरह उन महात्मा को खोजने लगे …..पर वो कहाँ मिलते ….वो तो कृपा बरसा कर चले गये थे ।
अब तो इनकी भावमयी स्थिति ही बनी रहती थी ….ये किसी बृजवासी बालक को देखते तो इन्हें कन्हैया ही दिखाई देता और ये उनके चरण जाकर पकड़ लेते थे ।
एक बार बालकृष्ण लीला का दर्शन कर रहे थे ….तभी रासलीला के स्वामी जी ने “बर्हापीडं नटवर वपु “ इस श्लोक का गान किया और रास लीला में ठाकुर जी बने पात्र माला धारण करके अभिनय कर रहे थे ….बालकृष्ण बहुत दूर बैठ कर लीला का दर्शन करते थे। वो दूर बैठे बैठे ठाकुर जी की माला को ही देख रहे थे और एकाएक इनका भाव उद्दीप्त हो उठा पर ये क्या ! मंच में अभिनय कर रहे ठाकुर जी दौड़े बालकृष्ण की ओर , और अपनी माला उनके गले में पहनाते हुये वापस मंच पर आगये थे ….इसके बाद तो श्रीकृष्ण मिलन की चाह इनकी और तीव्र हो उठी थी ….इन्हें लग रहा था कि अब या तो श्रीकृष्ण दर्शन दें या मैं अपने प्राण ही त्याग दूँ ।
वृन्दावन के प्रसिद्ध सन्त पण्डित श्रीरामकृष्ण दास जी जिन्हें पूरा श्रीवृन्दावन श्रद्धा से देखता था उनसे बालकृष्ण ने जाकर पूछा …क्या कोई विशेष अनुष्ठान है जिससे श्रीकृष्ण के दर्शन हों ?
पण्डित बाबा श्रीरामकृष्ण दास जी ने कहा …नही आप केवल महामन्त्र का जाप कीजिये उससे ही श्रीकृष्ण दर्शन हो जाएँगे …..पण्डित बाबा श्रीरामकृष्ण दास जी की चरण धूल माथे से लगाते हुये ये नन्दगाँव गये ..वहाँ जाकर ललिता कुण्ड के पास ही एक कुटिया में भजन करना इन्होंने प्रारम्भ कर दिया …ये सवा तीन लाख नाम जपते थे उसके बाद ही भिक्षा लेने के लिए जाते थे ।
और रात्रि में केवल एक घण्टे ही सोना ….रात्रि में भी ये नन्दगाँव में घूमते रहते …..
इनकी स्थिति अपूर्व भाव की बन गयी थी …..ये नन्दगाँव के वृक्षों को अपने गले से लगाकर रोते थे …..लताओं को साष्टांग प्रणाम करते उनकी स्तुति करते फिर कहते कहो …मेरे प्राण सर्वस्व श्रीकृष्ण मुझे कब मिलेंगे ? आप लोग आशीर्वाद दो मुझे उनके दर्शन हों …ये श्रीकृष्ण कुण्ड में बैठ जाते ….और वहाँ श्रीकृष्ण का ध्यान करते उनकी लीला चिन्तन करते ….”उद्धव क्वाँरी”में ये जब भी जाते इन्हें ऐसा आभास होता था की हजारों गोपियाँ यहाँ बैठी हैं और सब रो रही हैं श्रीकृष्ण विरह में । ये ध्यान लगाकर बैठ जाते ….उद्धव को गोपियाँ कह रही हैं …क्या कह रही हैं ये सुनते ….और सुनकर ये बहुत रोते ….एक दिन तो ये रात्रि में चिल्ला पड़े थे …नन्दगाँव के लोग भी जाग गये थे …..कि क्या हुआ ?
तू तो मित्र है ना उसका उद्धव , फिर जाकर हाथ पकड़ कर ले आ ना नन्दगाँव …मित्र तो जिद्द भी कर सकता है ना …देख , ये बेचारी गोपियाँ ! दया नही आती तुझे ! देख , राधिका जू को कैसे रो रही हैं बिलख रही हैं …जा और उसे लेकर आ …नही माने तो भी ला …मित्र जिद्द कर सकता है ।
ऐसी भावोन्माद की स्थिति इनकी तीन दिन तक बनी रही थी ।
ये प्रेम सरोवर
बालकृष्ण आज रात्रि में थोड़ा नन्दगाँव से बरसाने की ओर चल दिये थे …तो प्रेम सरोवर में पहुँचे …..वहाँ देखा दो महात्मा हैं …दीया टिमटिमा रहा है …एक महात्मा श्रीकृष्णलीला रस का पान करा रहे हैं …..और दूसरे सुन रहे हैं । बालकृष्ण बहुत प्रसन्न हुये – चलो अपने श्रीकृष्ण की लीला सुनने को मिलेगी ….वो प्रणाम करके जैसे ही बैठे …उन महात्माओं ने उस ग्रन्थ को दुबका लिया ….बालकृष्ण बोले ….आप सुनाइये ना ! मैं अपने प्राण सर्वस्व को सुनने आया हूँ ।
आपका सम्प्रदाय ?
उन महात्माओं ने पूछा ….बालकृष्ण को अजीब लगा …श्रीकृष्ण की लीला सुनने में संप्रदाय कहाँ से आगया ।
बताइये आपका सम्प्रदाय ? फिर पूछा ।
तो बालकृष्ण ने कहा …श्रीरामानुज सम्प्रदाय ।
वो महात्मा लोग बोले …हम गौड़ीय सम्प्रदाय के ग्रन्थ का पाठ कर रहे हैं उसे हम आपको नही सुना सकते । बालकृष्ण बोले …मुझे आपकी सम्प्रदाय की बात नही सुननी है मुझे तो श्रीकृष्ण के विषय में सुनना है ….पर उन्होंने कोई उत्तर नही दिया और वहाँ से उठने लगे …बालकृष्ण बोले …क्षमा करें मुझे ….मैंने आपकी रस धारा को बाधित किया । इतना कहकर दुखी हो वो वहाँ से चले गये ……नयनों से अश्रु बहने शुरू हो गये थे बालकृष्ण के …और हरिनाम ….इन्होंने दिन रात अब नाम जपना शुरू किया …ना भिक्षा न कहीं आना जाना …….सब बन्द , नन्दगाँव में भी जो घूमते थे वो भी बन्द ….दर्शन देना होगा तो वो यहीं देगा …मैं अब कहीं नही जाऊँगा ।
दो दिन हो गये ….ललिता कुण्ड का जल पान और भजन …..
तभी तीसरे दिन वो दोनों गौडिया सम्प्रदाय के महात्मा बालकृष्ण को खोजते हुये आगये थे ।
बालकृष्ण भजन कर रहे थे जैसे ही उन्होंने देखा ये तो प्रेम सरोवर के वही महात्मा हैं …साष्टांग प्रणाम किया इन्होंने पर इनसे पहले वही साष्टांग हो गये थे …..”हमसे अपराध हुआ है ….हमें आप क्षमा करें” …..वो बारम्बार बालकृष्ण के सामने झुक रहे थे …..बालकृष्ण उनसे कह रहे थे आप ऐसा न करें …मुझे अपराध का भागी न बनायें ।
ये मेरे गुरुभाई हैं …कल इनके स्वप्न में श्याम सुन्दर आये और उन्होंने ही कहा कि मेरे प्रिय का तुमने क्यों अनादर किया …जाओ , और रात्रि के अपने लीला चिन्तन में उसे भी सम्मिलित करो ।
स्वप्न में ही इन्होंने पूछा भी कि – प्रभु ! वो कहाँ रहते हैं ?
ललिता कुण्ड नन्दगाँव में । इतना कहकर वो अन्तर्ध्यान हो गये ।
बालकृष्ण के नेत्रों से झरझर अश्रु बहने लगे थे ..ओह ! मुझे स्वीकार कर लिया उसने । हाँ ..आपको कैसे स्वीकार नही करेंगे…वो गौडिया सम्प्रदाय के महात्मा गदगद थे।
बालकृष्ण अत्यधिक आनन्द के कारण उछल पड़े ,
और “जय नन्द लाला की” “जय हो गोपाल की” ..यही बारम्बार कह रहे थे ।
शेष कल –
Hari sharan
“A wave arose again in the ocean of great feelings. This wave has swept away everything, everything, now nothing is known, My eyes are twin of yours, I am unique of you? I am of many and you? Me and you then what is this? ,
Then a free laugh, you are the closest to me, this is not surprising.
Balkrishna was deeply saddened by the loss of his dear friend Kamalnayan ji. He increased his spiritual practice, he used to do bhajans throughout the day, he did not talk to anyone, he was just absorbed in himself. But he would definitely go to see Raasleela.
One day he met a Mahatma in Raas Leela…he did not know him…had never even seen him…he was also watching Raas Leela and Balkrishna was also having darshan of Raas Leela…but he looked a bit strange. They had big eyes…but there was something strange in those eyes…those eyes contained unknown secrets.
Raas Leela was going on, the incident was that Kanhaiya was going to a Gopi’s house to steal butter. That Mahatma sitting at a distance called Balkrishna to him…at first he did not get up…just kept sitting and kept watching the Raasleela, ignoring him. But that Mahatma was also strange, he got up and came to Balkrishna and said softly… “This is Kanhaiya’s Prasad Mishri… I have taken it out from the butter… When he was eating, I quickly took it out… I ate half of it.” Then when I looked at you…you eat” That Mahatma ji gave that piece of sugar candy in the hand of Balkrishna…at first he thought of not eating the sugar candy…but that Mahatma also stood there…and looked. Were wondering whether he would eat or not. What would Balkrishna do now….Put sugar candy in his mouth. But what happened? The leela that was going on here in Raas… became visible… Nandgaon… the same divine Nandgaon appeared. Manimay Nand Bhavan…Kanhaiya coming out of it for cow grazing…oh! That form of Kanhaiya…peacock tail on his head…lakat in his hands…flute in his hand…curly locks…earrings touching the temples…that gentle humor…surrounded by cowherds all around…what a beautiful forest province there is. They were entering… the feet are very soft… but there is no paduka… they are moving… the calves and cows are walking ahead….
These visions….Balkrishna was seen in person….These visions continued for an hour….When he started getting external knowledge and visions….then he got up and started searching for that Mahatma like a mad man…. But where could he be found…he had gone away after showering blessings.
Now his emotional state remained the same… whenever he saw any Brij resident child, he would see only Kanhaiya and he would go and hold his feet.
Once Balakrishna was having darshan of the leela… then Swami ji of Raasleela sang this verse “Barhapidam Natwar Vapu” and in the Raasleela Thakur ji was acting as the character wearing a garland… Balkrishna was sitting far away and watching the leela. Used to visit. He was sitting at a distance and looking at Thakur ji’s garland and suddenly his feeling got excited but what is this? Thakur ji, who was acting on the stage, ran towards Balkrishna and came back on the stage with his garland around his neck. After this, his desire to meet Shri Krishna became more intense. He felt that now either Should Shri Krishna give me darshan or should I give up my life.
Balakrishna went to the famous saint of Vrindavan, Pandit Sri Ramakrishna Das Ji, whom the entire Sri Vrindavan looked up to with reverence and asked… Is there any special ritual by which one can have darshan of Sri Krishna?
Pandit Baba Shri Ramkrishna Das ji said…No, you just chant the Mahamantra and you will see Shri Krishna…Pandit Baba Shri Ramkrishna Das ji went to Nandgaon, applying the dust of the feet of Shri Ramkrishna Das ji on his forehead… After going there, he bought a cottage near Lalita Kund. He started chanting bhajans…he used to chant 3.25 lakh names and only after that he used to go for alms.
And sleeping only for one hour at night…even at night he kept roaming in Nandgaon….
His state had become one of extraordinary emotion…he used to cry while hugging the trees of Nandgaon…he would prostrate before the creepers and praise them and then say, “When will I meet my beloved Shri Krishna?” You all bless me to have his darshan…he would sit in Shri Krishna Kund…and there he would meditate on Shri Krishna and think about his pastimes… Whenever he went to “Uddhav Quarry”, he used to have the feeling that thousands of Gopis were sitting here and Everyone is crying in separation from Shri Krishna. He would sit meditating…listening to what the Gopis were saying to Uddhav…and crying a lot after listening to them…one day he would scream in the night…the people of Nandgaon had also woken up…that What happened ?
You are his friend, Uddhav, then go and bring him to Nandgaon holding your hand…a friend can be stubborn too…look, these poor Gopis! You don’t feel pity! Look, how Radhika is crying and wailing for Ju…go and bring him…bring him even if he doesn’t agree…friend can insist.
His state of such emotional ecstasy continued for three days.
this love lake
Balkrishna had walked a little from Nandgaon towards Barsana in the night… then reached Prem Sarovar… saw there were two Mahatmas… the lamp was flickering… one Mahatma was offering the drink of Shri Krishna Leela… and the other was listening. . Balkrishna was very happy – let’s get to hear the leela of our Shri Krishna… As soon as he sat down after paying obeisance… those mahatmas took hold of that book… Balkrishna said… you tell me! I have come to listen to my life and everything.
Your sect?
Those Mahatmas asked… Balkrishna felt strange…where did the sect come from in listening to the leela of Shri Krishna.
Tell me your sect? Asked again.
So Balakrishna said…Sri Ramanuja sect.
Those Mahatmas said…we are reciting the book of Gaudiya sect, we cannot narrate it to you. Balakrishna said…I don’t want to listen to your sect, I want to hear about Shri Krishna…but he did not answer and started getting up from there…Balakrishna said…I am sorry…I interrupted your flow of juice. Having said this, he became sad and went away from there… Tears had started flowing from the eyes of Balkrishna… and Hari Naam… he started chanting the name day and night… neither alms nor coming and going anywhere… everything was closed, even in Nandgaon. Those who used to roam around have also stopped… If I have to give darshan then he will give it here… I will not go anywhere now.
Two days have passed…drinking water from Lalita Kund and singing bhajans….
Then on the third day, both of them came in search of Mahatma Balkrishna of Gaudiya sect.
Balkrishna was doing bhajan as soon as he saw that it was the same Mahatma of Prem Sarovar…he prostrated himself but before him he had prostrated himself…..“I have committed a crime…please forgive us”….he said again and again. He was bowing before Balkrishna….Balkrishna was telling him not to do this…not to make me a part of the crime.
This is my Gurubhai… Yesterday Shyam Sundar came in his dream and he himself said why did you disrespect my beloved… Go and include him also in your thoughts of the night. In the dream itself he asked – Lord! Where do they live? Lalita Kund in Nandgaon. Saying this he disappeared.
Tears started flowing from Balkrishna’s eyes..oh! He accepted me. Yes..how will they not accept you…that Mahatma of Gaudiya sect was very happy.
Balakrishna jumped with great joy,
And “Jai Nand Lala ki”, “Jai ho Gopal ki”…they were saying this again and again.
The rest of tomorrow –
Sharan day