परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ

परमात्मा मेरे है, और मैं परमात्मा का हूँ।यह रिश्‍ता कायम करने और इसे बनाए रखने के लिए पूर्ण समर्पण की जरूरत होती।जिस प्रकार माँ अपने बच्चे के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देती है।उसी प्रकार परमात्मा से रिश्ता बनाने के लिए हमे अपना सर्वस्व प्रेम पूर्वक अर्पित करना होगा।हमे उनके करीब जाना होगा।मन की चेतना को उनके जितना निकट ले जाएंगे,उतना ही हमे अपनत्व अनुभव होगा।इस रिश्ते को और मजबूती देने के लिए हमे परमात्मा की पूजा,सेवा,अर्चना करनी होगी।
जब हम परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पित हो रहे होते है, तो परमात्मा से हमारा रिश्ता और गहरा होता चला जाता है।फिर परमात्मा हमारे संरक्षक हो जाते है।वे हमें हर दुख से बचाते है, कोई गलत निर्णय लेते समय हमें चेताते है। हमे लगने लगता है, कोई है जो पग पग पर मेरी सहायता कर रहा है, कोई है, जिसे मेरी चिंता है। फिर ज़िंदगी भर प्रभु के साथ अपने रिश्‍ते को ही हम अपनी सबसे बड़ी दौलत समझते हैं। हम (परमात्मा)कान्हा को अपना सबसे अच्छा दोस्त मान सकते है, दोस्त की खुशी में हमारा समर्पण और भी जरूरी हो जाता है।समर्पण प्रेम और त्याग का प्रतीक है। परमेश्‍वर के साथ अपने अच्छे रिश्‍ते से हमें खुशी मिलती है और यह खुशी बढ़ती जाती है। हम इस बात के लिए प्रभु के एहसानमंद होते हैं कि उससे हमारी आत्मीयता दिन प्रति दिन बढ़ रही है। वो हमारे विपरीत प्रारब्ध के वेग को कम करता है।कर्मफल तो सभी को भोगने होते है, किन्तु परमात्मा से अपनत्व होने के कारण विपरीत भोगों के भार से वो हमें सदैव बचाते है।अभी से परमात्मा से निकटता जोड़ने का प्रयास शुरू कर दे।आपको मन की संतुष्टि मिलेगी,और जीवन भी सुगम लगने लगेगा।
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।🙏🏻🪷

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *