आज का भगवद चिंतन।
हम संसारिक बंधनो में बंधकर रिश्ते नातेदारों से जो प्रेम करते हैं वह कही न कही स्वार्थ से परिपूर्ण होता है।किंतु जो प्रेम स्वार्थरहित हो वही परम् प्रेम होता है और परमात्मा परम-प्रेम से ही वश में होते है। श्रीकृष्ण परम प्रेम का स्वरुप है। प्रेम और परम प्रेम में अंतर है। पुत्र,पत्नी,माता-पिता आदि के साथ जो प्रेम है,वह सामान्य है। परन्तु सर्व जीवों के साथ निस्वार्थ प्रेम करे तो वह परम-प्रेम है। हम स्वार्थ रखकर प्रेम करते है। परमात्मा को कोई अपेक्षा नहीं है फिर भी वो जीव के साथ प्रेम करता है।
जीव बड़ा अयोग्य है,अपात्र है। वह मन से,आँखों से हमेशा पाप करता रहता है। फिर भी ईश्वर उससे प्रेम करते है। ईश्वर जीव से प्रेम करते है और उससे एक प्रेम ही मांगते है,धन या पैसा नहीं मांगते।
परमात्मा तो लक्ष्मीपति है। उनके आगे जब ,शारीरिक बल,द्रव्यबल,ज्ञानबल आदि सब हार जाते है,तब प्रेमबल ही जीतता है। प्रेमबल सर्वश्रेष्ठ है। प्रेमबल परमात्मा को वश में करने का साधन है।
कई लोग पूछते है -परमात्मा से प्रेम किस प्रकार किया जा सकता है? जरा सोचो तो समझोगे कि घर के लोग हमे सुख-सुविधा देते है,अतः हम उनसे प्रेम करते है।
पति मानता है कि पत्नी के कारण वह सुखी हे और पत्नी मानती है कि वह पति के कारण सुखी है। पर अगर कोई ऐसी कल्पना करे कि दोनों एक दूसरे से दुःखी है तो प्रेम नहीं जागेगा।वास्तव में कोई स्त्री या पुरुष सुख नहीं देता। आनंद का दान मात्र परमात्मा करते है। अपनी इच्छा का त्याग करो और भगवान् की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना लो। वैष्णव अपनी इच्छा को भगवान् की इच्छा के साथ एकरूप करके उसमे लीन हो जाता है। महात्मा प्रभु को प्रेम से जीतते है। जीव पूर्णतः प्रेम करने लगे तो भगवान वश में हो जाते है।
यशोदाजी ने प्रेम से परमात्मा को बांधा है।।(साभार:भगवद रहस्य)
जय जय श्री राधेकृष्ण जी।🙏🏻🌹
Today’s Bhagavad meditation.
The love we do with our relatives tied in worldly bonds is full of selfishness somewhere. But the love which is selfless is the supreme love and God is under the control of supreme love only. Shri Krishna is the form of ultimate love. There is a difference between love and ultimate love. The love one has with son, wife, parents etc. is normal. But if one loves selflessly with all living beings, then that is supreme love. We love with selfishness. God has no expectation, yet He loves the living being.
The creature is very unfit, ineligible. He always commits sin through his mind and eyes. Still God loves him. God loves the creature and asks only one love from him, does not ask for wealth or money.
God is Lakshmipati. When in front of them, physical strength, material strength, knowledge etc all are defeated, then only the power of love wins. Love power is the best. Love power is the means to control God.
Many people ask – how can one love God? Just think and you will understand that the people of the house give us comfort and convenience, that’s why we love them.
The husband believes that he is happy because of the wife and the wife believes that she is happy because of the husband. But if someone imagines that both are unhappy with each other, then love will not arise. In reality no man or woman gives happiness. Only God gives the gift of happiness. Give up your will and make God’s will your will. The Vaishnava unites his will with the will of the Lord and merges in Him. Mahatma conquers the Lord with love. When the creature starts loving completely, then God becomes in control.
Yashodaji has bound God with love. (Credits: Bhagavad Rahasya)
Jai Jai Shri Radhekrishna ji.🙏 🏻🌹