एक गाँव में भोला केवट रहता था। वह भोला ही था इसी से उसका नाम भोला पड़ गया था। कोई कुछ भी पूछता, वह एक ही उत्तर देता, “मैं तो कुछ नहीं जानता, रघुनाथ जी जानें।” कहना न होगा कि वह रघुनाथ जी का भक्त था।
पुत्री विवाह योग्य हुई तो भोला ने साहूकार से ॠण लेकर, उसका विवाह किया और घर छोड़कर गाँव के ही रघुनाथ जी के मंदिर में ही रहने लगा।
कुछ समय में पुत्र के कमाए धन को लेकर भोला पुनः साहूकार के पास पहुँचा और ब्याज सहित मूल चुका दिया। साहूकार ने रसीद बनाई, भोला को दी, कहा कि पढ़ लो। भोला बोला- मैं तो कुछ नहीं जानता, रघुनाथ जी जानें।
साहूकार समझ गया कि भोला पढ़ना नहीं जानता। उसने रसीद वापस लेकर छिपा दी, और एक कागज पर यूँही कुछ लिखकर दे दिया। भोला के जाते ही तो साहूकार ने न्यायालय का रुख किया।
भोला को बुलाया गया। जज साहब ने पूछा- तुमने इनसे ॠण लिया था, चुका दिया?
भोला ने हाँ में सिर हिला दिया।
जज साहब ने पूछा- कोई रसीद है?
भोला ने वह कागज दिखाया।
जज ने कहा- यह तो कोई रसीद नहीं है।
भोला बोला- मैं तो कुछ नहीं जानता, रघुनाथ जी जानें।
जज साहब ने पूछा- जब तुमने ॠण चुकाया तब तुम्हारे और साहूकार के अलावा वहाँ कोई और था?
भोला अपने स्वभाव के अनुसार बोला- हाँ! वहाँ रघुनाथ जी थे।
जज साहब समझे कि रघुनाथ जी किन्हीं सज्जन का नाम होगा, उन्होंने रघुनाथ जी के नाम का सम्मन जारी किया और अगली तारीख दे दी।
चपरासी सम्मन लेकर गाँव भर में घूम गया पर कोई होता तो मिलता। आखिर किसी से उसे रघुनाथ जी के मंदिर की जानकारी मिली। चपरासी मंदिर में ही सम्मन रख गया।
तारीख आई, तो सब न्यायालय पहुँचे। रघुनाथ जी के नाम की आवाज लगी कि एक बूढ़ा आदमी, धीरे धीरे चलता हुआ, गवाह के कटघरे में आ खड़ा हुआ।
जज साहब ने पूछा- आप रघुनाथ जी हैं?
उन्होंने कहा- हाँ। जज साहब ने पूछा- जब भोला ने पैसे दिए तब आप वहाँ थे?
उन्होंने फिर कहा- हाँ। जज साहब ने पूछा- कोई प्रमाण है?
उन्होंने कहा- साहूकार की अल्मारी में, चार नं बही में, रसीद पड़ी है। आप मंगवा लें।
साहूकार सन्न रह गया। चपरासी गया, रसीद ले आया। भोला बरी हुआ, साहूकार को दण्ड मिला। गवाह चला गया।
अब जज साहब ने भोला को अलग से बुला कर पूछा- ये रघुनाथ जी तुम्हारे गाँव में रहते हैं? मैंने बहुत से गवाह देखे, पर जैसा रोमांच मुझे इन्हें देख कर हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ।
भोला बोला- रघुनाथ जी वो हैं जिनका हमारे गाँव में मंदिर है।
जज साहब- इन्होंने मंदिर बनवाया है?
भोला बोला- साहब ये वो हैं जो मंदिर में विराजते हैं।
जज साहब रोने लगे। बोले- आज मुझसे बड़ी भूल हो गई। भगवान खड़े रहे, मैं बैठा रहा। जज साहब को वैराग्य हो गया, पद त्याग कर वृन्दावन आ बसे।
Bhola Kewat lived in a village. He was naive, that’s why he got the name Bhola. Whoever asked anything, he would give only one answer, “I don’t know anything, Raghunathji knows.” Needless to say that he was a devotee of Raghunathji. When the daughter was eligible for marriage, Bhola took a loan from the moneylender, married her and left the house and started living in the temple of Raghunath ji in the village itself. After some time, Bhola again reached the moneylender with the money earned by his son and paid the principal along with interest. The moneylender made a receipt, gave it to Bhola, told him to read. Bhola said – I do not know anything, Raghunath ji should know. The moneylender understood that Bhola does not know how to read. He took back the receipt, hid it, and gave it by writing something on a paper. As soon as Bhola left, the moneylender approached the court. Bhola was called. The judge asked- You had taken loan from them, paid it? Bhola nodded his head yes. The judge asked – is there any receipt? Bhola showed the paper. The judge said – this is not a receipt. Bhola said – I do not know anything, Raghunath ji should know. The judge asked- When you repaid the loan, was there anyone other than you and the moneylender? Bhola said according to his nature – yes! Raghunathji was there. The judge understood that Raghunath ji would be the name of some gentleman, he issued a summon in the name of Raghunath ji and gave the next date. The peon went around the village with the summons, but if someone had been there, he would have got it. After all, he got information about Raghunath ji’s temple from someone. The peon was summoned in the temple itself. When the date came, everyone reached the court. Raghunath ji’s name sounded that an old man, walking slowly, stood in the witness box. The judge asked – are you Raghunath ji? he said yes. The judge asked- You were there when Bhola gave the money? He said again – yes. The judge asked- is there any proof? He said- In the moneylender’s cupboard, in number four, there is a receipt. You get it. The moneylender was stunned. The peon went, brought the receipt. Bhola was acquitted, the moneylender got the punishment. The witness left. Now the judge called Bhola separately and asked – does this Raghunath ji live in your village? I saw many witnesses, but I never felt as thrilled as I was seeing them. Bhola said – Raghunath ji is the one who has a temple in our village. Judge sahib- has he got the temple built? Bhola said – Sir, these are the ones who sit in the temple. The judge started crying. Said – Today I have made a big mistake. God stood, I sat. The judge became disinterested, relinquishing his post and settled in Vrindavan.