भगवान बुद्ध के एक शिष्य तिस्य को किसी ने एक मोटे सूत की चादर भेट की लेकिन चादर काफी भारी थी इस लिए तिस्य को पसंद नहीं आई उन्होंने वो चादर अपनी बहन को पकड़ा दिया बहन ने उनका भाव समझ लिया और उनसे कहा की आप परेशान न हों मै इसे धुन कर हल्की कर के कल आपको दे दूंगी तिष्य उस चादर की प्रतीक्षा करने लगे उसके पहने के सपने देख कर आनंदित होने लगे
वो मन ही मन विचार करने लगे की ऐसी चादर पूरे संघ में किसी के पास नही है भगवान बुद्ध के पास भी नहीं मै इस चादर को ओढ़ कर सबसे अलग दिखूंगा ये सब सोच सोच कर वो मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे
साधारण सी चादर के लिए ही एक साधक के मन में वासना जागी और विशाल अहंकार का रूप ले लिया
अगले दिन शाम को तिस्य की बहन ने उस चादर को धुन कर हल्का करके दिया
तिस्य उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए और सुबह उस चादर को पहन कर सबको दिखाने की प्रतीक्षा करने लगे रात भर वो उसी चादर के विषय में सोचते रहे की ये चादर ओढ़ कर मैं कैसा लगूंगा इसी सोच विचार मे वो रात भर ठीक से सो भी नहीं सके सोने पर भी वो नींद में भी चादर का ही स्वप्न देखते रहे
संयोग से उसी रात तिस्य की मृत्यु हो गई और चादर की कामना के कारण उन्होंने उसी क्षण कपड़े के कीड़े “चिलर” के रूप में उस चादर में जन्म लिया
इधर उनके मृत शरीर को जलाने के बाद आश्रम के नियम के अनुसार उनकी वस्तुएं अन्य साधकों मे बाटी जाने लगी
प्रश्न उठा चादर को कैसे बांटा जाए सबने निर्णय लिया कि चादर को काट कर बांट लेते हैं
जब उस चादर को काट कर बांटने की बात चली तो चादर में “चिलर” के रूप में टहलते तिस्य रोने चीखने लगे की हाय मेरी इतनी प्यारी चादर ये सब फाड़ कर बांट लेंगे नही नही ऐसा मत करो दुष्टों
लेकिन उनकी चीख पुकार कोई नहीं सुन रहा था “चिलर” की आवाज भला कोई कैसे सुन पाता
केवल भगवान बुद्ध ने तिस्य की आवाज सुनी
भगवान बुद्ध से ये सब छिपा न रह सका वो “चिलर” के रूप में तिस्य को पहचान गए और सूक्ष्म दृष्टि से सारी घटना का कारण भी जान लिया और तब भगवान बुद्ध ने उस चादर को बांटने से मना कर दिया
एक सप्ताह बाद जब वो चिलर मर गया तब बुद्ध ने उस चादर का बटवारा किया
शिष्यों ने जब इसका कारण पूछा तो भगवान बुद्ध ने सारी बात बताई
कहने का आशय ये है कि छोटी से छोटी कामना और वासना के कारण भी हम कई बार जन्म लेते और मरते हैं
बुद्धम शरणं गच्छामि
ॐ नमो बुद्धाय