संसार में ऐसे लोग बहुत मिल जायेंगे जो त्याग और वैराग्य की बातें करते रहते हैं कि यह संसार असार एवं नश्वर है, इसमें सार तो एकमात्र भगवान ही हैं, परन्तु उनमें से कितने लोग ऐसे हैं जो संसार को असार, असत् एवं मिथ्या जानकर उसका त्याग करते हैं? कोई विरले ही भाग्यवान होते हैं, जिन्हें सत्पुरुषों की संगति के प्रताप से सद्बुद्धि प्राप्त हो जाती है और जिनके दिल में वैराग्य की भावना उत्पन्न होती है।
.कहने को तो वे बेशक कहते रहते हैं कि ब्रह्म सत्य है और जगत मिथ्या है, परन्तु स्थिति उनकी यह है कि वे असत् संसार को सत् समझकर दृढ़ता से पकड़े रहते हैं, उसे छोड़ना नहीं चाहते।पढिये।
एक बार कोई प्रेमी परमसन्त श्री कबीर साहिब जी के दर्शन करने उनके घर पहुंचा।
.उस समय श्री कबीर साहिब घर पर नहीं थे। उस प्रेमी के द्वार खटखटाने पर जब माता लोई ने दरवाज़ा खोला, तो उस प्रेमी ने कहा…
मैं श्री कबीर साहिब जी के दर्शन की अभिलाषा लेकर आया हूँ। माता लोई ने कहा, वे इस समय बाहर गये हुए हैं, थोड़ी देर बाद वापस आयेंगे। आप तब तक बैठिये।
.उस प्रेमी ने कहा, मुझे शीघ्र अपने गाँव वापस जाना है, इसलिए मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता। किन्तु मुझे उनके दर्शन भी अवश्य करने हैं।
.आप मुझे यह बताने की कृपा करें कि वे कहाँ गए हुये हैं, मैं वहीं उनके दर्शन कर लूँगा।
.माता लोई ने उत्तर दिया, आज पड़ौस में एक व्यक्ति शरीर छोड़ गया था वे उसकी अरथी में गए हैं।
.लोग कुछ देर पहले ही अरथी लेकर गए हैं; अभी थोड़ी दूर ही होंगे। प्रेमी बोला, अरथी के साथ तो बहुत से लोग होंगे और मैने श्री कबीर साहिब जी के पहले कभी दर्शन नहीं किये। मैं कैसे पहचानूंगा कि श्री कबीर साहिब कौन हैं? आप मुझे उनका कोई पहचान बतलाइये।
.माता लोई ने कहा, जिसकी टोपी में कलगी चमक रही हो, समझ लेना कि वही श्री कबीर साहिब हैं।
.माता लोई को प्रणाम कर वह व्यक्ति श्मशान भूमि की ओर तीव्रगति से चल दिया। कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि एक अरथी के साथ बहुत से लोग जा रहे हैं, परन्तु सबके सिर पर कलगी है।
.यह देखकर वह बड़ा चकित हुआ। उसकी समझ में न आया कि इनमें से श्री कबीर साहिब कौन हैं।
.वह पुनः श्री कबीर साहिब के घर गया और माता लोई को सम्पूर्ण वृत्तांत सुनाया।
.सुनकर माता लोई ने कहा, यह कलगी वैराग्य की निशानी है। इस समय सभी के दिल में यह भावना है कि यह संसार असार, असत् एवं नाशवन्त है।
.यहाँ की हर वस्तु एक दिन नष्ट हो जानी है। यहाँ सत् एवं शाश्वत तो केवल परमेश्वर का नाम है। वैराग्य की इस भावना के कारण सभी के सिर पर कलगी दिखाई दे रही है।
.अब तुम ऐसा करो कि जब सभी लोग श्मशान भूमि से वापस आने लगें तब देखना कि उनमें से किसके सिर पर कलगी है। उस समय जिसके सिर पर कलगी हो, तो समझ लेना कि वही श्री कबीर साहिब जी हैं।
.उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। जब सब लोग मृत-देह का अन्तिम संस्कार कर वापस लौटे, तो उस व्यक्ति ने देखा कि अब उन सबमें केवल एक व्यक्ति ही ऐसा है जिसके सिर पर कलगी है।
.वह समझ गया कि वही श्री कबीर साहिब जी हैं। वह उनके निकट गया और उन्हें प्रणाम करके सम्पूर्ण घटना कह सुनाई औैर फिर पूछा, अब सबके सिर पर कलगी क्यों नहीं है?
.श्री कबीर साहिब जी ने फरमाया, जब ये लोग अरथी के साथ जा रहे थे तब इन सबके दिल में वैराग्य की भावना थी और ये सब त्याग और वैराग्य की बातें कर रहे थे, परन्तु अब ये लोग कैसी बातें कर रहे हैं, तुम स्वयं ही सुन लो।
.उस व्यक्ति ने जब लोगों की बातें सुनीं तो वास्तविकता उसकी समझ में आ गई।
.वही लोग जो कुछ देर पहले कह रहे थे कि राम-नाम सत् है, यह संसार मिथ्या और नाशवान् है, यहाँ किसी को सदा नहीं रहना है, वही सब लोग अब सांसारिक बातें कर रहे थे। कोई व्यापार सम्बन्धी बातें कर रहा था, कोई परिवार सम्बन्धी। कोई किसी के विवाह की बातें कर रहा था और कोई किसी की निंदा कर रहा था।
श्री कबीर साहिब जी ने फरमाया, ये सब अब भूल गये हैं कि संसार असत् और नाशवान् है। ये अब उसे सत् समझकर उससे चिपक गए हैं।
किन्तु हम इस बात को सदैव याद रखते हैं, एक पल के लिए भी इस बात को नहीं भूलते कि यह संसार असार, असत और नाशवन्त है। सत् एवं अनश्वर तो केवल परमेश्वर की ज़ात और परमेश्वर का नाम है।
आम संसारी लोगों की यही दशा है कि वे असार एवं असत् संसार तथा संसार के पदार्थों को तो सार एवं सत् समझ कर उनमें आसक्त रहते हैं और भगवान का नाम और उनकी भक्ति जो सार एवं सत् है, उसे विस्मृत किये बैठे हैं। जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
कलगी वैराग्य की निशानी
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