ध्यान आवश्यक है

monk 1782432 6403771402060412584991

ईश्वर क्या है, यह तुम अभी जानोगे नहीं; ईश्वर-प्राप्ति से क्या लाभ होगा, यह भी तुम नहीं समझ सकोगे। हाँ, यह शब्दों में बताया ही जा सकता है कि उससे अनन्त लाभ होगा, जीवन पूर्ण सफलता को प्राप्त हो जायेगा, परन्तु प्रथम तुम उसे जानोगे तब। आगे और भी यह कि जब तक तुम ईश्वर के लिए सोचते रहोगे, जब तक नाम लेते रहोगे, और जब तक उस पर लिखते रहोगे, तब तक शान्ति नहीं मिलेगी। जैसे निद्रा जीवन में एक शान्ति है, परन्तु यदि तुम सोचते रहे, निद्रा की बात करते रहे, उस पर लेख लिखते रहे, तो निद्रा का आनन्द किसी भी प्रकार नहीं ले पाओगे।

इसका यह अर्थ नहीं की ईश्वर पर सोचें विचारे नहीं उसकी बात नहीं करें, न उस पर कुछ लिखें। यदि तुम्हारा विचार उधर जावेगा ही नहीं तो उधर चलोगे कैसे ? उसका स्मरण नहीं करोगे, तो पाओगे कैसे? पर यह समझ लो स्मरण करने और पाने में बहुत बड़ा अन्तर है। इस वास्ते केवल स्मरण करके ही मत रह जाओ, कीर्तन करके ही मत छोड़ दो, उनकी अर्चना पूजा करके ही संतुष्ट न हो जाओ, कुछ देर उनके ध्यान में भी अवश्य जाओ। ध्यान के अर्थ हैं सब कुछ त्याग के उनकी और बढ़ना। जैसे आप किसी प्रश्न को ध्यान से करते हो, तब सब ओर से मन हटा उस ओर पिरो देते हो, तो कुछ देर में उसको हल कर देते हो। ठीक ऐसे ही भगवान के ध्यान में भी गहरे जाओ, मन को सब ओर से हटा उनके चरणों में डाल दो। निद्रा में जाना चाहते हो तो सब विचार त्याग दो। एक विचार के रहते हुए भी निद्रा नहीं आयेगी , इसी निद्रा में पहुंच कर तुम निद्रा को भी भूल जाओगे। इसी प्रकार ईश्वर के लिए ईश्वर का नाम लो, आगे ध्यान में जाओ, और उससे भी आगे ऐसे गहरे ध्यान में जहाँ तुम ईश्वर से मुक्त हो जाओ क्योंकि किसी का ध्यान उसका मिलना नहीं है। निश्चय है कि किसी के मिल जाने पर उसका ध्यान छूट जाएगा। प्रभु का ध्यान उसके मिलने का मार्ग है।

यह निश्यच समझो कि जब तक तुम्हें प्रभु-मिलन की उत्कृष्ट इच्छा नहीं है, ध्यान भी काम नहीं देगा। ईश्वर दर्शन की इच्छा न रखने वाले के सामने नित्य ईश्वर आवे परन्तु उससे उसे क्या ? इसलिए साधक को प्रथम उसकी प्राप्ति की इच्छा अर्थात जिज्ञासा अपने अन्दर लानी होगी। कारण कि जब तक प्यास नहीं, गंगा-जल भी बेकार है। हाँ यह अवश्य है कि जैसे दिन में एक बार छुधा लगती ही है, भोजन की चाहना होती ही है, ऐसे ही जीवन में एक दिन ऐसा आवेगा अवश्य, सब मनुष्यो को प्रभु-मिलन की इच्छा प्रबल हो उठेगी, वह अवश्य तलाश करेगा और ऐसी तलाश करने पर पावेगा भी अवश्य। जीवन की यात्रा में प्रभु का पाना ही जीव का लक्ष्य है। ऐसा सोचने समझने से जिज्ञासा जाग जाती है। संतो के दर्शन और उनके उपदेश से स्मरण हो जाता है। भूली हुई बात फिर याद आती है तथा हम उसके लिए सजग हो जाते हैं।



You will not know what God is now; You will not be able to understand what will be the benefit of attaining God. Yes, it can be told in words that there will be eternal benefit from it, life will be achieved with complete success, but first you will know it then. Further more, that as long as you keep thinking of God, as long as you keep taking his name, and as long as you keep writing on him, you will not get peace. Just like sleep is a peace in life, but if you keep thinking, talking about sleep, writing articles on it, then you will not be able to enjoy sleep in any way.

It does not mean that do not think about God, do not talk about him, do not write anything on him. If your thoughts will not go there, then how will you go there? If you don’t remember him, how will you get it? But understand this, there is a big difference between remembering and getting. That’s why don’t stay just by remembering him, don’t leave him just by doing kirtan, don’t be satisfied just by worshiping him, do meditate on him for some time. The meaning of meditation is to leave everything and move towards them. Like when you do a question carefully, then you remove your mind from all other directions and then you solve it in some time. In the same way, go deep in the meditation of God, remove your mind from all sides and put it at His feet. If you want to go to sleep, leave all thoughts. Sleep will not come even if there is one thought, reaching this sleep you will forget sleep too. Similarly chant the name of God for God, go further into meditation, and further into such deep meditation where you are free from God because one’s attention is not to meet Him. It is sure that on meeting someone, his attention will be lost. Meditation on the Lord is the way to meet Him.

Understand this for sure that unless you have a great desire to meet God, even meditation will not work. God may come in front of the one who does not wish to see God everyday, but what does that do to him? That’s why the seeker has to first bring the desire to get it, that is, curiosity. The reason is that unless there is thirst, even the water of the Ganges is useless. Yes, it is definitely that like a pimple appears once in a day, there is a desire for food, in the same way, such a day will definitely come in the life, all human beings will have a strong desire to meet God, they will definitely search and such a day will come. You will definitely find it if you search. The goal of the soul is to attain the Lord in the journey of life. Thinking like this awakens curiosity. One remembers by seeing saints and their teachings. The forgotten thing comes to our mind again and we become aware of it.

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *