दीपावली क्यों है सबसे खास?

download

दीपावली के बारे में वो सबकुछ जो आपको जानना_चाहिए

आइये आज जानते हैं दीपावली का महत्त्व और उसकी विशेषता जो उसे सभी पर्वों से अलग करती है ।

“दीपानाम् आवली: दीपावली:” यहाँ षष्ठी-तत्पुरुष समास है, जिसका अर्थ है दीपों का समूह। इस दिन पूरा देश दीपों की जगमगाहट से चमकता रहता है । यह पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है । जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुरु होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक चलता है ।
१. धनत्रयोदशी (धनतेरस ) ।
२. नरक चतुर्दशी (नरक चौदश) ।
३. दीपावली ।
४.गोवर्धन पूजा ।
५. यम द्वितीया (भैया दूज) ।

आइये क्रमश: इनके बारे में जानते हैं और इनके महत्त्व को समझते हैं………।

१. #धनत्रयोदशी(धनतेरस) :- यहाँ जो धन शब्द आया है उसे भ्रम के कारण लोग रुपया-पैसा-समृद्धि समझ लेते हैं। लेकिन वास्तव में यह शब्द आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरी के लिए आया है। पुराणों के अनुसार समुद्र-मंथन के समय 14 रत्नों में से एक 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश लिए हुवे भगवान धन्वन्तरी का प्रादुर्भाव हुआ था। यह धनत्रयोदशी पर्व उनकी ही जयंती के रूप में आदिकाल से मनाया जाता रहा है। शास्त्रों में कहा गया है “शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्” अर्थात सर्वप्रथम शरीर की ही रक्षा की जानी चाहिए। इसलिए तो आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरी के पुजन के साथ हमारा प्रकाश पर्व प्रारंभ होता है।
इस दिन अकालमृत्यु के नाश के लिए घर के मुख्य द्वार पर आटे का दीपक जलाकर यम हेेतु दीपदान किया जाता है ।
#पद्मपुराण में कहा गया है :-
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।।

दीपदान करते समय निर्णय-सिन्धु में उल्लेखित निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए –
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतां मम ।।

साथ ही इस दिन औषधीय वृक्षों जैसे तुलसी, नीम, पीपल, बेल आदि के समक्ष दीप भी जलाया जाता है । आयुर्वेद के जानकर वैद्य-जन आज के दिन औषधि निर्माण और संरक्षण का कार्य भी करते हैं ।
भगवान धन्वन्तरी के प्राकट्य के समय उनके हाथ में स्वर्ण-कलश था इसलिए आज के दिन सोने-चाँदी के बर्तन आदि की खरीदारी की प्रथा भी चल पड़ी।
आज के दिन कुबेर पूजन भी किया जाता है और उनसे व्यापार वृद्धि की प्रार्थना की जाती है। आज के दिन से ही व्यापारी लोग अपना हिसाब खाता अर्थात बही-खाता लिखना शुरू करते हैं।

२. #नरक_चतुर्दशी(नरक चौदस) :- आज के दिन की महिमा बहुत है।
आज के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार कर उसके कैद से १६००० स्त्रियों को मुक्त कराया था।
सतयुग के राजा रन्तिदेव ने नरक यातना से बचने के लिए घोर तपस्या की थी और आज के ही दिन यमराज उसकी तपस्या से प्रसन्न हुवे थे।
कुरुक्षेत्र में भीष्म-पितामह ने आज के ही दिन बाणों की शैया ग्रहण की थी।

स्कन्दपुराण में अकाल मृत्यु से बचने के लिए आज के दिन यमराज को तिल तेल का दीपदान करने का विधान किया गया है। आज के दिन यमराज के निमित्त घर के बाहर 16 छोटे दीपों के साथ एक बड़ी चौमुखी दीप जलाई जाती है। दीपकों को जलाने से पहले उनका पूजन भी कर लेना चाहिए। चौमुखी दीपक घर के बाहर यम के लिए दीपदान करना चाहिए और बाकि 16 दीपक घर के विभिन्न भागों में पितरों के स्वागत में जलाकर रखनी चाहिए। इस दिन मंदिरों में जाकर भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लिए दीपदान करना चाहिए ऐसा निर्णय-सिन्धु में बताया है। निर्णय सिन्धु में नरक निवारण चतुर्दशी के दिन तैलाभ्यङ्ग स्नान करने तथा यमतर्पण करने का निर्देश और विधान भी प्राप्त होता है।

३. #दीपावली :- कार्तिक कृष्ण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। इसके बारे में पुराणों में बहुत सी कथा मिलती है । विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र-मंथन के समय आज के ही दिन लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था।
जनमानस में 14 वर्ष के बनवास के बाद राम जी के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में यह पर्व मानाने की परंपरा है।
आज के ही दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था।
सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी दीपावली के ही दिन हुआ था।

आज के दिन धूमधाम से भगवती लक्ष्मी व भगवान गणेश जी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिठाई बांटी जाती है। व्यापारी वर्ग इस दिन विशेष पूजन करते हैं । #सिंह लग्न में भगवती का पूजन करना बहुत ही प्रभावशाली और समृद्धिदायक होता है क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान सिंह लग्न में ही भगवती लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था।
इस दिन पुरे घर को साफ और पवित्र कर के दीपक जलाया जाता है। नए वस्त्र पहने जाते हैं, घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।
आज की दिन महानिशा पूजन अर्थात् काली पूजन करने का भी विधान है इनका पूजन मध्यरात्रि से शुरू किया जाता है।
आज का दिन साधकों के लिए वरदान साबित होता है। आज के दिन की गई साधना सिद्धी प्रदान करने वाली होती है। दीपावली पर्व अभिचार कर्म के लिए भी सबसे ज्यादा उपयुक्त है।

४. #गोवर्धन_पूजा :- यह पर्व दीपावली के दुसरे दिन मनाया जाता है। इस पर्व को पुराणों में अन्नकूट भी कहा गया है। आज के दिन ही भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर गाय और ग्वालों की रक्षा की थी। आज के दिन मुख्यरूप से गौ आदि पशुओं का पूजन करने और उनको मक्के का पाखर (मक्के को उबाल कर बनाया गया पशु आहार) खिलाने का विधान है। आज के दिन के सम्बन्ध में अलग अलग जगहों पर कई लोकाचार प्रचलित हैं। जिनके अनुसार लोग अपने अपने तरीकों से इस पर्व को पुरे हर्षोल्लास के साथ मानते हैं।

५. #यम_द्वितीया(भैया दूज) :- यह पर्व मुख्य रूप से भैया दूज के नाम से प्रचलित है। आज के दिन बहनें अपने भाई के शत्रुओं के नाश की कामना से और जीवन भर मधुर सम्बन्ध बने रहने की कामना से गाय के गोबर से एक पूजन मंडल तैयार करती हैं और उसमे चना कुटती हैं। वह चना अपने भाइयों को खिलाती हैं उन्हें अपने लोक परंपरा के अनुसार गलियां देती हैं उन्हें उनके कमियों से अवगत कराती हैं और फिर गाली देने के पश्चाताप स्वरुप बेर के कांटे अपने जीभ में चुभाती हैं। भाई आज के दिन फल, फूल, मिठाई और दक्षिणा देकर पैर छूकर अपने बहन का आशीर्वाद लेता है जीवन भर स्नेह बनाये रखने का भरोसा दिलाता है। यह पर्व भाई बहन के स्नेह का बहुत महान पर्व है।



Everything you need to know about Diwali

Let us know today the importance of Deepawali and its specialty which separates it from all the festivals.

“Deepanam Avali: Deepavali:” Here is the sashti-tatpurush samasa, which means group of lamps. On this day the whole country keeps shining with the twinkle of lamps. This festival is celebrated for five days. Which starts from Kartik Krishna Trayodashi and continues till Kartik Shukla Dwitiya. 1. Dhantrayodashi (Dhanteras) 2. Naraka Chaturdashi (Narak Chaudash). 3. Diwali. 4. Govardhan Puja. 5. Yama Dwitiya (Bhai Dooj)

Let us know about them respectively and understand their importance……….

1. #Dhantrayodashi(Dhanteras):- Due to confusion the word money which has come here is misunderstood by people as money-money-prosperity. But actually this word has come for Lord Dhanvantari, the father of Ayurveda. According to the Puranas, Lord Dhanvantari had appeared in the form of a nectar urn in the form of the 14th gem out of the 14 gems at the time of churning the ocean. This Dhantrayodashi festival has been celebrated since time immemorial as his birth anniversary. It is said in the scriptures “Sharimadyam Khalu Dharmasadhanam” which means that the body should be protected first. That is why our festival of lights begins with the worship of Lord Dhanvantari, the god of health. On this day, a lamp of flour is lit at the main door of the house and a lamp is donated for Yama for the destruction of premature death. In Padma Purana it is said:- Karthikasyasite pakse trayodashyan tu pavke. Yamadipam Bahirdadyadpamrityurvinashyati.

While offering lamps, one should recite the following mantra mentioned in the Nirnaya-Sindhu – Death with the ropes and rods of time with the darkness. May the sun-god be pleased with me by giving lamps on the thirteenth day

Along with this, a lamp is also lit in front of medicinal trees like Tulsi, Neem, Peepal, Bel etc. on this day. Knowing Ayurveda, Vaidyas also do the work of preparation and protection of medicines on this day. At the time of the appearance of Lord Dhanvantari, he had a gold-urn in his hand, so on this day the practice of buying gold-silver utensils etc. also started. Kuber Puja is also done on this day and he is prayed for business growth. From today itself, business people start writing their account, that is, ledger accounts.

2. #Hell_Chaturdashi(Narak Chaudas):- There is a lot of glory of this day. On this day Lord Krishna killed Narakasura and freed 16000 women from his captivity. King Rantideva of Satyuga had done severe penance to escape the torture of hell and on this day Yamraj was pleased with his penance. In Kurukshetra, Bhishma-Pitamah took the bed of arrows on this day.

In Skanda Purana, to avoid premature death, a law has been made to donate sesame oil to Yamraj on this day. On this day, a big four-faced lamp with 16 small lamps is lit outside the house for the purpose of Yamraj. Before lighting the lamps, they should also be worshiped. Four-faced lamp should be donated outside the house for Yama and the remaining 16 lamps should be lit in different parts of the house to welcome the ancestors. On this day, even going to the temples, one should donate lamps for Brahma, Vishnu and Mahesh, such a decision has been told in the Indus. In Sindhu, instructions and legislation are also received on the day of Narak Nivaran Chaturdashi, to take bath in Tailabhyang and to perform Yamatarpan.

3. #Deepawali: – This festival is celebrated on Kartik Krishna Amavasya. There are many stories about this in the Puranas. According to Vishnu Purana, Lakshmi ji appeared on this day at the time of churning the ocean. There is a tradition in the public to celebrate this festival in the happiness of Ram ji’s return to Ayodhya after 14 years of exile. On this day, Dharmaraja Yudhishthira performed the Rajasuya Yagya. The coronation of Emperor Vikramaditya also took place on the day of Deepawali.

On this day, Shodashopachar puja is performed to Bhagwati Lakshmi and Lord Ganesha with great pomp and sweets are distributed. The merchant class performs special worship on this day. Worshiping Bhagwati in Leo Ascendant is very effective and prosperous because during the churning of the ocean, Bhagwati Lakshmi was born in the Lion Lagna itself. On this day the entire house is cleaned and sanctified and lamps are lit. New clothes are put on, the blessings of the elders of the house are taken. On this day, there is also a law to perform Mahanisha Puja i.e. Kali Puja, their worship is started from midnight. Today proves to be a boon for the seekers. The sadhna done on this day is considered to give siddhi. Deepawali festival is also most suitable for Abhichar Karma.

4. #Govardhan_Puja :- This festival is celebrated on the second day of Deepawali. This festival is also called Annakoot in the Puranas. It was on this day that Lord Krishna lifted the Govardhan mountain and protected the cows and the cowherds. On this day, there is a law to mainly worship animals like cows and feed them Maize ka Pakhar (animal food made by boiling maize). There are many ethos prevalent in different places regarding this day. According to which people celebrate this festival with full enthusiasm in their own ways.

5. #Yam_Dwitiya (Bhai Dooj) :- This festival is mainly popular by the name of Bhaiya Dooj. On this day, sisters prepare a worship mandala with cow dung and grind gram in it, wishing to destroy their brother’s enemies and to maintain a cordial relationship throughout their lives. She feeds gram to her brothers, gives them streets according to their folk tradition, informs them of their shortcomings and then as a repentance of abusing, pricks thorns of plum in her tongue. Brother takes the blessings of his sister by touching her feet by giving fruits, flowers, sweets and dakshina on this day and assures to maintain affection throughout life. This festival is a very great festival of brother and sister’s affection.

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *