एक सखी कहती हैं। अन्य बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। वे बहुत अच्छे हैं।
तब दुसरी सखी कहती हैं परायों को अपना बनाना आसान है ढलना नही पङता है। बाहर के सम्बन्ध दिखावे के है। वे सत्यता से बहुत दूर है। अपनो को अपना बना लो सभी साधना पुरण हो जाएगी।अपनो को जानने की कोशिश करेंगे तब जीवन की खुशी हमारे पास होगी उनके अनुसार कार्य करना। अपने मन को समझाना देख सबमें भगवान बैठे हैं उनमें बहुत अच्छाई हैं हम पढ नहीं पाते हैं।
पहली सखी बिल्कुल सही बात है आपकी पर कभी कभी जितना मर्जी अपनो के लिए उनकी इच्छा अनुसार करलो पर वो फिर भी खुश नही होते हैं।
तब क्या करें।
दुसरी सखी बाहर से मिली हुई बहुत मान बढाई हमारे अंहम को जाग्रत करती है।हम जल्दी अग्रेसिव हो जाते हैं।
हमे शांत मन से उनको अपने साथ रखना चाहिए। उनसे मिठे बोलकर अपने काम में सहायक बनाए। उनके सामने नाराज न होए। प्रेम से सभी पिघल जाते हैं। जंहा कर्म कमजोर पङता है वहाँ विवेक को जागृत करना चाहिए नहीं मै जो कार्य कर रही हूँ यह मेरा कर्तव्य है जब कर्तव्य जागृत होता है तब सब विचार शांत हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे कर्म अपने आप हो रहा है। हम जिस दिन बाहर की सैर कम करते हैं। तब अपने घर के सदस्य में अपनत्व की झलक मिलेगी। आप बाहर से बहुत प्राप्त कर चुके होते हैं तब आप अपनो को महत्व नहीं देते हैं। यहीं कारण है आज सम्बन्ध बिखरे हुए दिखते हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग