एक सन्यासी ने देखा एक छोटा बच्चा घुटने टेक कर चलता था, धूप निकली थी, बच्चे की छाया आगे पड़ रही थी, बच्चा छाया में अपने सिर को पकड़ने के लिए हाथ ले जाता लेकिन जब हाथ पहुँचता तो छाया आगे बढ़ जाती।
बच्चा रोने लगा, माँ उसे समझाने लगी पर बच्चे कब समझ सकते हैं।सन्यासी ने कहा, बेटे रो मत, छाया पकड़नी है?
सन्यासी ने बच्चे का हाथ पकड़ा और उसके सिर पर रख दिया, हाथ सिर पर गया, उधर छाया के ऊपर भी सिर पर हाथ गया।
सन्यासी ने कहा, देख, पकड़ ली तूने छाया। छाया कोई सीधा पकड़ेगा तो नहीं पकड़ सकेगा लेकिन अपने को पकड़ लेगा तो छाया पकड़ में आ जाती है।
मनुष्य दूसरो को सुधारने की सोचता है,किंतु कभी स्वयं को सुधारने की नही सोचता।वह नही जानता कि सारी दुनिया के विकार मुझ में भरे पड़े है।तो क्यों नही मै पहले इन विकारों को पकड़ कर दूर करूं।
व्यक्ति काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार को पकड़ने को लिए दौड़ता है वह इनको कभी नहीं पकड़ पाता, यह मात्र छाया हैं लेकिन जो आत्मा को पकड़ लेता है, विकार उसकी पकड़ में आ जाते हैं
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।