सासु माँ कब जाएँगी..


“ बेटा सुन आज आते वक्त मेरा एक काम कर देगा?” दमयंती जी ने सोमेश से पूछा
“ हाँ माँ बोलो ना क्या काम है?” सोमेश ने कहा
उधर रसोई में काम करती रचिता मन ही मन बुदबुदा रही थी.. जब से आई है जरा पल भर का सुकून नहीं है… कभी चाय कभी पानी तो कभी दवा बस अपने आगे पीछे लट्टू की तरह घुमाए रखती हैं… कल मेरा जन्मदिन है वो भी इनकी सेवा में बीत जाना.. कितना मन था सुबह मंदिर जाकर पूजा करूँगी फिर शाम को सोमेश के साथ किसी मॉल में शॉपिंग और डिनर कर घर आते …पर ये है ना महारानी जी इनके रहते हम बाहर कैसे जा सकते ….बाहर का खाना तो इन्हें हज़म नहीं होगा …पहले पकाओ फिर कही जाओ.. कितना अच्छा था ये उधर अपने घर में ही रहती थी…।
उधर दमयंती जी से बात कर सोमेश ऑफिस चला गया पूरे दिन रचिता मन ही मन सास को जली कटी सुनाती रही …ना अच्छे से बात की ना दो घड़ी उनके पास बैठी…. सोमेश ही माँ को ज़िद्द कर साथ ले आया था जब इस बार घर गए थे अब तो सास यही रहेंगी… सारी आज़ादी ख़त्म … सोच सोच कर रचिता को कोफ़्त हो रही थी ।
रात सोमेश जब घर आया तो पहले माँ से मिलने गया फिर चाय नाश्ता किया ।।
रात को खाने के बाद जब सब सोने जा रहे थे दमयंती जी ने रचिता को कमरे में बुलाया
“ बहू कल तुम्हारा जन्मदिन है ना… ये लो सलवार सूट… सोमेश से कहा था तुम्हारी पसंद का ही लाए… कल सुबह तुम उठ कर मंदिर चली जाना… नाश्ते खाने की चिंता ना करना वो मैं देख लूँगी… कल सोमेश की तो छुट्टी है नहीं पर जब वो ऑफिस से आ जाए तुम उसके साथ बाहर घूम आना।” दमयंती जी एक पैकेट रचिता को देती हुई बोली
“ पर माँ आपको कैसे पता मैं मंदिर जाती हूँ नए कपड़े पहन कर?” आश्चर्य से रचिता ने पूछा
“ बहू तुम हर बार मंदिर से निकल कर ही तो फ़ोन कर आशीर्वाद लेती हो तो कैसे याद नहीं रहेगा..।”दमयंती जी ने कहा
रचिता पैकेट लेकर सास को प्रणाम कर जाने लगी तो दमयंती जी बोली,“ बहू तुम जैसे पहले रहती थी वैसे ही रहो..मेरी वजह से परेशान मत हुआ करो.. बस जब से यहाँ आई हूँ तो लगता है घर में कोई तो है… तो बस तुम्हें अपने आसपास रखने को तुमसे कुछ ना कुछ करवाती रहती हूँ…..वहाँ घर पर तो अकेले ही रह रही थी ना।”
“ जी माँ ।” रचिता बस इतना ही कह पाई…
बाहर सोमेश ये सब खड़े होकर सुन रहा था जैसे ही रचिता अपने कमरे में पहुँची सोमेश ने कहा,“ जब से माँ आई है तुम कभी भी उससे ना तो ठीक से बात करती हो ना तुम्हें उसके पास बैठना पसंद है और जब तब जो माँ के लिए जली कटी मुझे सुनाती रहती हो बता नहीं सकता कितनी पीड़ा होती हैं….पर जब माँ ने मुझे कहा कल बहू का जन्मदिन है उसके लिए एक सूट ला देना और मुझे पैसे भी दिए मना करने लगा तो बोली तू अपनी तरफ़ से जो देना दे ….ये मेरी तरफ़ से ला देना…अब बताओ माँ के मन में तुम्हारे लिए क्या है… और तुम्हारे मन में माँ के लिए क्या?”
“ मुझे माफ कर दो सोमेश मैं माँ को समझ ही नहीं पा रही थी वो जब से यहाँ आई मुझे लग रहा था मेरा काम बढ़ गया है पर ये नहीं सोच पाई वो अपने अकेलेपन की वजह से मुझे अपने आसपास रखती थी… कल माँ को भी मॉल लेकर चलेंगे…ठीक है ना?” रचिता ने शर्मिंदा होते हुए कहा
“ चलो जल्दी ही समझ आ गया नहीं तो मैं सोच रहा था मेरी माँ का क्या होगा?” सोमेश रचिता को देखते हुए बोला
“ कुछ नहीं होगा अब माँ अपनी बहू के साथ अच्छे से रहेंगी तुम देख लेना।” रचिता कह कर सो गई
कल की सुबह उसे माँ समान सास से आशीर्वाद भी तो लेना था… इधर सोमेश अब माँ को लेकर थोड़ा बेफ़िक्र हो गया था ।

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on pinterest
Share on reddit
Share on vk
Share on tumblr
Share on mix
Share on pocket
Share on telegram
Share on whatsapp
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *