क्या इन्हीं को श्रद्धालु कहते हैं
क्या यही भाव है ठाकुर जी के प्रति
आजकल वृंदावन में ऐसे ही लोग आ रहे हैं
शर्म आनी चाहिए
हमें ब्रज में पर्यटक नहीं श्रद्धालु चाहिए
पर्यटक भगाओ ब्रज बचाओ संस्कृति बचाओ
भक्ति का मतलव क्या है ?
भगवान को यहीं पाना अपने इसी जीवन में। मरने के बाद पाना ईश्वर को समझौता है। पता नहीं भगवान मिले न मिले।
मीरा ने इसलिए भजन नहीं किया कि जब उसका शरीर छूट जाए तब द्वारिकाधीश मिलें। गोपालभट्ट गोस्वामी जी कि साधना ऐसी नहीं है कि भजन के बाद उन्हें गोलोक में प्रवेश मिले। भक्ति वो नहीं है जहाँ तुमको वहाँ जाना पड़े, भक्ति वो है जब वो तुम्हारे दरवाजे पर प्रगट हो जाय।
राधारमण को गोपालभट्ट गोस्वामी जी के द्वार पर आना पड़ा। इसी समय जीवन होते हुए।
आज के समय में ये बहुत बड़ी नासमझी फैल रही है कि भगवान को देखने के बाद व्यक्ति पागल हो जाता है। नहीं नहीं बल्कि होश में आ जाता है।आदमी के अन्दर से जगत निकल जाता है।वह मनुष्य जीवन की सत्यता से अवगत होता है। वह जान जाता हैं यह सम्राज्य ईश्वर का है। सबकुछ ईश्वर है ये बेहोशी की जगह नहीं है ये गहरे होश कि जगह है। भगवान को देखने के बाद व्यक्ति बावड़ा हो गया, वहाँ तो थोड़ा रसाभास हो गया थोड़ी गड़बड़ी हो गयी। सूरदास के सामने कृष्ण निकल जाते हैं क्या वो बावड़े हो गए? अरे अन्धे होने के बाद भी सूरदास के पास वो दृष्टि है जो बड़ी बड़ी दूरबीन लगाने के बाद भी नहीं हो सकती।