श्री वृंदावन धाम में एक विरक्त संत रहते थे जिनका नाम था पूज्य श्री सेवादास जी महाराज ! श्री सेवादास जी महाराज ने अपने जीवन में किसी भी वस्तु का संग्रह नही किया था एक लंगोटी कमंडल माला और श्री शालिग्राम जी इतना ही साथ रखते थे एक छोटी सी कुटिया बना रखी थी जिसमें एक बड़ा ही सुंदर संदूक रखा हुआ था संत जी बहुत कम ही कुटिया के भीतर बैठकर भजन करते थे अपना अधिकतम समय वृक्ष के नीचे भजन में व्यतीत करते थे यदि कोई संत आ जाये तो कुटिया के भीतर उनका आसान लगा देते थे …
एकदिन वहाँ एक चोर आया और उसकी दृष्टि कुटिया के भीतर रखी उस सुंदर संदुक पर पडी ! उसने सोचा कि अवश्य ही महात्मा को कोई धन प्राप्त हुआ होगा जिसे यहाँ छुपा रखे है …
महात्मा को धन का क्या काम ?… अवसर पाते ही इसे चुरा लूँगा …
एकदिन बाबाजी कुटिया के पीछे भजन कर रहे थे सुअवसर पाकर उस चोर ने कुटिया के भीतर प्रवेश किया और संदुक को तोड़ मरोड़ कर खोला उस संदुक के भीतर एक और छोटी संदुक रखी थी चोर ने उस संदुक को भी खोला तब देखा कि उसके भीतर भी एक और छोटी संदुक रखी है ऐसा करते – करते उसे कई संदुक प्राप्त हुए और अंत में एक छोटी संदुक उसे प्राप्त हुई उसने वह संदुक खोली और देखकर बड़ा दु:खी हो गया उसमे केवल मिट्टी रखी थी …
अत्यंत दु:ख में भरकर वह कुटिया के बाहर निकल ही रहा था की उस समय श्री सेवादास जी वहाँ पर आ गए श्री सेवादास जी ने चोर से कहा- तुम इतने दुखी क्यों हो ?…
चोर ने कहा – बाबाजी ! इनती सुंदर संदुक में कोई क्या मिट्टी भरकर रखता है ? … आप तो बड़े अजीब महात्मा हो !…
श्री सेवादास जी बोले – अत्यंतर श्रेष्ठ मूल्यवान वस्तु को संदुक में ही रखना तो उचित है …
चोर बोला – ये मिट्टी कौन सी मूल्यवान वस्तु है ?…
बाबा बोले – ये कोई साधारण मिट्टी नहीं है यह तो पवित्र श्री वृंदावन रज है यहाँ की रज के प्रताप से अनेक संतो ने भगवान् श्रीकृष्ण को प्राप्त किया है यह रज प्राप्त करने के लिए देवता भी ललचाते है यहाँ की रज को श्रीकृष्ण के चरणकमलों का स्पर्श प्राप्त है श्रीकृष्ण ने तो इस रज को अपनी श्रीमुख में रखा है। नंगे पैर श्रीकृष्ण ने यहां गौ चराये है …
चोर को बाबा की बात कुछ अधिक समझ नहीं आयी और वह कुटिया से बाहर जाने लगा …
बाबाजी ने कहा – सुनो ! इतना कष्ट करके खाली हाथ जा रहे हो, परिश्रम का फल भी तो तुम्हें मिलना चाहिए …
चोर ने कहा – क्यों हँसी मजाक करते है आप के पास देने के लिए कुछ है भी क्या ?…
श्री सेवादास जी कहने लगे – मेरे पास तो देने के लिए कुछ है नहीं, परंतु इस ब्रजरज में सब कुछ प्रदान करने की सामर्थ्य अवश्य है …
चोर बोला – मिट्टी किसी को भला क्या दे सकती है ?…
बाबाजी बोले – विश्वास हो तो यह रज स्वयं प्रभु श्रीकृष्ण से मिला सकती है चोरी करना तो तुम्हारा कामधंदा है और महात्मा के यहाँ से खाली हाथ जाएगा तो यह भी ठीक नही है जाते-जाते यह प्रसाद लेकर जा इतना कहकर श्री सेवादास जी ने थोड़ी से ब्रज रज लेकर उसे चोर के माथे पर लगा दिया माथे पर रज का स्पर्श होते ही वह चोर भाव में भरकर भगवान के पवित्र नामों का उच्चारण करने लगा – श्री राधाकृष्ण केशव, गोविंद-गोविंद ! उसका हृदय निर्मल हो गया और वह महात्मा जी के श्रीचरणों मे गिर गया …
महात्मा जी ने उसे हरिनाम जप और संत सेवा का उपदेश दिया देकर उसका जीवन श्री कृष्णमय बना दिया …
इसीलिए हर ग्रंथ, हर पंथ, हर संत यही कहते है कि –
गुरु चरण कमल बलिहार,
गुरु पर तन, मन, धन वार …
गुरु चरण धुरी सिर धार,
गुरु महिमा अपरंपार …
एक संत ने बहुत ही सुंदर बात कहा है कि – जब भगवान हमें स्मरण करते है तब हम जीव उनको स्मरण करते है … नहीं तो हमलोग केवल चौबीस घंटे केवल भोजन शयन उपभोग में ही जीवन बिताते है … अर्थ यह है कि – हम जब भी कुछ भगवदीय कार्य करते है उस पर भगवान का आशिर्वाद होता है … दृष्टि होता है … वो हमें स्मरण करके उस कार्य को संपूर्ण करने के लिए चयन किये है … वहां हमारा तनिक भी शक्ति नहीं है कि उन प्रभुजी का काम हमलोग कर सके यह तो हरि गुरु का कृपा ही है जो हम वो कार्य कर रहे है … और वो अपने सहस्त्र अदृश्य हस्तों से हमारे सहायता, सहयोग करते रहते है … बस संक्लप हमारे होने चाहिए …
राधे राधे जी …🙏
!! “ब्रजरज” !!
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