एक संत महाराज एक बार वृन्दावन गए
वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए..जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
संत ने पेड़े ख़रीदे और मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी ।अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी.
संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है..चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
संत ने हाथ पैर धोया और पेड़ा खाने के लिए डिब्बा खोला..उन्होंने देखा पेड़े में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो पेड़ा खा लिए बाकी बचे पेड़ा का प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना बेचारे को पेड़ो से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था,अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया…नहीं मुझे वापस जाना होगा..और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
दूकानदार ने देखा तो आया..महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी .इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया इधर दुकानदार रो रहा था… उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!
बात भाव की है.. बात उस निर्मल मन की है.. बात ब्रज की है.. बात मेरे वृन्दावन की है..बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है.. बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है।बूझो तो बहुत कुछ है.. नहीं तो बस पागलपन है.. !
श्रीनिताईगौरहरि बोल
A saint Maharaj once went to Vrindavan Wandered there for a few days and had darshan.. When I felt like coming back, I thought I should take some prasad after offering it to God.. The saint bought trees and went to the temple.. offered prasad and slept in the ashram.. Had to catch the train in the morning. Next day left. The saint thought.. Now it will take three to four hours to reach Patna.. Feeling hungry.. The train stops in Mughalsarai for half an hour.. Let’s wash our hands and feet and get something by doing Sandhya Vandana.. The saint washed his hands and feet and opened the box to eat the peda.. He saw the ants were in the peda.. He removed the ants and ate a couple of pedas and left thinking that I would distribute the prasad of the remaining peda.
But it is said that saint Hriday Navneet Samana started worrying about those ants more than the trees.. started thinking.. These ants have come from Vrindavan in this sweet box. They were born in Vrindavan, now I don’t know how many days or how many births it will take for them to reach back. committed sin.. got them rid of Vrindavan…no I have to go back..and the saint carefully put those ants back in the same sweet box..and caught the train to Vrindavan. I went to the same sweet shop and put the box on the earth.. and with folded hands it is not in my destiny to stay in your Braj, so I have no right to remove the dust of Braj in whose fate is written. When the shopkeeper saw him, he came. .! When the shopkeeper came to know about the whole thing, he sat near the feet of that saint.. got emotional here the shopkeeper was crying… there the saint’s eyes were getting wet!! It is about feeling.. It is about that pure mind.. It is about Braj.. It is about my Vrindavan.. It is about my Natwar Nagar and his Radharani.. It is about my Krishna’s capital. No.. otherwise it’s just madness..!
srinitaigourhari bol