भजन रस सार कौ सार रस विपिन कौ,
बिना राज परस कहो कौन पायौ ।
महेस ओर सेस ब्रह्मादिकन अगम अति,
नेति कहि नेति कहि वेद गायौ ॥
प्रेम रस रंग की लहरि जहाँ उठत दिन,
फूल, फल, पात रस रूप छायो ।
प्रान सम जान अलबेली बृंदाबिपिन,
कुंवरि हित करन चित चरन लायो ॥
भजन का सार तत्व रस है और रस का सार तत्व वृंदावन है । बिना इस वृंदावन राज (वनों के राजा) के स्पर्श के किसको अगाध रस की प्राप्ति हो सकती है ?
यह वृंदावन की रज भगवान शिव एवं शेष के लिए भी दुर्गम है जिसको नेति नेति कहकर वेदों ने गान किया है ।
ऐसे वृंदावन में प्रेम रस रंग की लहरें दिन रात उठा करती हैं तथा फूल, फल और पत्तों में भी रूप रस ही छाया हुआ है ।
श्री अलबेली अलि कहते हैं कि श्री राधा महारानी में प्रेम को बढ़ाने एवं अपने चित्त को उनके चरणों में डुबा देने में अति सहकारी यह वृंदाविपिन प्राणों के समान है । (अर्थात् श्री वृंदावन धाम का वास अति दुर्लभ है जो श्री राधा जू के चरणों में निश्चित ही प्रेम प्रदान करता है) ।