भगवान् ने सृष्टि-रचना की तो कहीं से मसाला मंगवाया ? वे खुद ही संसार बन गये –
‘एकोअह्म बहु: स्याम’ ।’ आदि और अन्त में बीज रहता है । ऐसे ही सृष्टि के आदि और अन्त में भगवान ही है, तो फिर बीच में दूसरा कहाँ से आया ?
एक ही जल भाप, कोहरा, वर्षा, ओले, बर्फ आदि अनेक रूपों से हो जाता है, ऐसे ही एक परमात्मा अनेक रूपों से हो रहे हैं । सोने से बने अनेक गहनों में सोने के सिवाय क्या है ?
परमात्मा से बने संसार में सब कुछ परमात्मा ही हैं । सोने से बनी विष्णु की मूर्ति हो या कुत्ते की, सोने में क्या फर्क है ? ऐसे ही संसार में कोई महात्मा है, कोई दुष्ट, पर परमात्मतत्व सब में एक ही है ।
‘वासुदेव: सर्वम्’ होते हुए भी अविनाशी-विनाशी का भेद कहाँ से आया ? आपके यहाँ से आया । यह भेद मनुष्य ने पैदा किया है और वही इसे मिटा सकता है ।
God created the universe, so from where did he get the spices? He himself became the world –
‘Ekoahm Bahu: Syam’. The seed remains in the beginning and in the end. Similarly, there is only God in the beginning and end of the universe, then where did the other one come from in the middle?
The same water becomes steam, fog, rain, hail, snow etc. in many forms, similarly one God is taking many forms. What is there except gold in many ornaments made of gold?
Everything in the world made of God is God only. Whether it is an idol of Vishnu made of gold or of a dog, what is the difference between gold? Similarly, in the world some are great, some are wicked, but the divine is the same in all.
Despite being ‘Vasudev: Sarvam’, where did the difference between imperishable and perishable come from? came from your place Man has created this distinction and only he can remove it.