प्रभु संकीर्तन 13
जब भीआपके हृदय मेंकोई बात उठती है तोआपके जानने से पहले परमात्मा तकपहुंच जाती हैआप अपने हृदय से बहुत दूर
जब भीआपके हृदय मेंकोई बात उठती है तोआपके जानने से पहले परमात्मा तकपहुंच जाती हैआप अपने हृदय से बहुत दूर
“गिलास में पानी और दूध पी सकते हैं..उसी गिलास में जूस या शरबत भी पी सकते हैं..फिर उसी में शराब
आपने ईश्वर के दर्शन के लिए अब तक क्या किया है। ईश्वर दर्शन के लिए हमें हर क्षण ईश्वर का
*सत्संग ही शुद्ध, निर्मल,* *पवित्र, ज्ञान-जल की* *वह धारा है जो अन्तःकरण* *को मल से रहित* *कर शुद्ध, निर्मल, पवित्र*
हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद शब्द से अमूल्य अर्थ है।अर्थ से अमूल्य भावार्थ है।भावार्थ से अमूल्य गूढ़अर्थ,गूढ़ अर्थ से
ईश्वर की बनाई यह सृष्टी बेशकीमती ख़ज़ानों से भरी हुई है और देखिए एक भी चौकीदार नहीं है…!व्यवस्था ऐसी की
*अपने हृदयको सदा टटोलते रहना ही साधक का कर्त्तव्य है।ताकि उसमें घृणा, द्वेष, हिंसा, वैर, मान-अहंकार ,कामना आदि,अपना डेरा न
जय श्री राम जी हम मन्दिर में जाते हैं कथा कीर्तन करते भगवान का भोग लगाते मन्दिर की फेरी करते
माया जीव को सदैव भ्रम में रखती है। जो अपना है नहीं उसे अपना समझना ही तो भ्रम कहलाता है।