घर में भई खटपट चल पड़े बाबा जी के मठ पर माता पिता पत्नी भाई से झगड़ा हुआ कि बस बाबा बनने को तैयार हम तो अब बाबा बनेंगे। देख लिया दुनियादारी का हाल कोई किसी का नही,रास्ते में पोते की याद आ गई वह मेरे बिना कैसे रहेगा। लौट के फिर घर वापस आ गए, इसे कहते हैं मर्कट वैराग्य। मरघट वैराग्य -
कोई पधार गए उनकी ठठरी बांध कर चल दिए—-
“राम नाम सत्य है,राम नाम सत्य है”
पीछे सभी उसी की बातें करते आ रहे हैं अरे ये तो स्वभाव के बहुत अच्छे थे बड़े नेक थे कभी किसी को गाली नहीं दी भगवान भी गजब करता है अच्छे लोगों को पहले उठा लेता है लेकर पहुंचे श्मशान, चिता पर रख दिया।
उस समय सब को महसूस होता है कि मृत्यु क्या है वहीं पर कसम खाते हैं मन में, कि कड़वा सत्य तो केवल एक मृत्यु है संसार में जब तक रहो भैया भजन करो किसी से द्वेष बैर मत रखो यह धन दौलत तो यहीं रह जानी है।
सब अफसोस करते हैं पर चिता जलाकर जैसे ही घर आए सब भूल गए कौन काका जी कौन बाबा जी यही मरघट वैराग्य है।जो मरघट पर आता है और वहीं का रह जाता है।
हरि बोल …
Brothers quarreled in the house, there was a fight with parents, wife and brother at Baba Ji’s Math that we are just ready to become Baba, now we will become Baba. Saw the condition of worldliness of no one, on the way I remembered my grandson, how will he live without me. After returning home, this is called mercantile disinterest. Marghat Vairagya –
Someone came and tied his chin and left. “Ram Naam Satya, Ram Naam Satya”
Everyone has been talking about him behind, he was very good by nature, he was very pious, he never abused anyone. At that time everyone realizes that what is death and swears in the mind, that there is only one death in the bitter truth brother, as long as you live in the world, do bhajan, don’t keep enmity with anyone, this wealth will remain here only. Everyone regrets, but as soon as they come home after lighting the funeral pyre, everyone forgets who is Kakaji, who is Babaji. This is Marghat Vairagya. Hari Bol…