आज का प्रभु संकीर्तन।जीवन में सदेव कर्म करते रहना चाहिए। क्योंकि भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को कर्म पर अधिकार रखना चाहिए कि उसके फल पर।कभी कभी अथक प्रयास से हमे उचित फल नही मिल पाता,तो हम निराश होकर पीछे हट जाते है, जबकि कर्म की पूर्ण सफलता तक हमे प्रयास नही छोड़ना चाहिए।पढ़िए
किसी दूर गांव में एक पुजारी रहते थे जो हमेशा धर्म कर्म के कामों में लगे रहते थे। एक दिन किसी काम से गांव के बाहर जा रहे थे तो अचानक उनकी नज़र एक बड़े से पत्थर पर पड़ी !
तभी उनके मन में विचार आया कितना विशाल पत्थर है क्यों ना इस पत्थर से भगवान की एक मूर्ति बनाई जाये। यही सोचकर पुजारी ने वो पत्थर उठवा लिया !
गांव लौटते हुए पुजारी ने वो पत्थर का टुकड़ा एक मूर्तिकार को दे दिया जो बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार था !
अब मूर्तिकार जल्दी ही अपने औजार लेकर पत्थर को काटने में जुट गया। जैसे ही मूर्तिकार ने पहला वार किया उसे एहसास हुआ की पत्थर बहुत ही कठोर है !मूर्तिकार ने एक बार फिर से पूरे जोश के साथ प्रहार किया लेकिन पत्थर टस से मस भी नहीं हुआ ! अब तो मूर्तिकार का पसीना छूट गया वो लगातार हथौड़े से प्रहार करता रहा लेकिन पत्थर नहीं टुटा। उसने लगातार 99 बार प्रयास किए लेकिन पत्थर तोड़ने में नाकाम रहा !
अगले दिन जब पुजारी आए तो मूर्तिकार ने भगवान की मूर्ति बनाने से मना कर दिया और सारी बात बताई !
पुजारी दुखी मन से पत्थर वापस उठाया और गांव के ही एक छोटे मूर्तिकार को वो पत्थर मूर्ति बनाने के लिए दे दिया !
अब मूर्तिकार ने अपने औजार उठाये और पत्थर काटने में जुट गया, जैसे ही उसने पहला हथोड़ा मारा पत्थर टूट गया !
क्योंकि पत्थर पहले मूर्तिकार की चोटों से काफी कमजोर हो गया था। पुजारी यह देखकर बहुत खुश हुआ और देखते ही देखते मूर्तिकार ने भगवान शिव की बहुत सुन्दर मूर्ति बना डाली !
पुजारी मन ही मन पहले मूर्तिकार की दशा सोचकर मुस्कुराए कि उस मूर्तिकार ने 99 प्रहार किए और थक गया !
काश ! उसने एक आखिरी प्रहार भी किया होता तो वो सफल हो जाता !
ऐसे ही दुनिया में बहुत सारे लोग जो ये शिकायत रखते हैं कि वे कठिन प्रयासों के बावजूद सफल नहीं हो पाते !लेकिन सच यही है कि वे आखिरी प्रयास से पहले ही हार मान जाते हैं !
लगातार कोशिशें करते रहिए क्या पता आपका अगला प्रयास ही वो आखिरी प्रयास हो जो आपका जीवन बदल दे !!जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
भगवद गीता में कर्म फल
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