।। श्री: कृपा ।।
🌿 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सफलता की प्राप्ति के लिए ज्ञान, पुरुषार्थ के अतिरिक्त सही योजना और उनका समय पर क्रियान्वयन आवश्यक है। अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों के प्रति सचेत और एकनिष्ठ रहना उत्तम साधक के स्वाभाविक गुण हैं ..! आध्यात्मिक लक्ष्य की पूर्ति किसी के लिए भी कठिन नहीं है, अपना भीतर सुधार करने पर वे सब साधन सहज ही जुट जाते हैं जिनके आधार पर स्वर्गानुभूति, जीवनमुक्ति, शान्ति, सद्गति, सिद्धि एवं ईश्वर प्राप्ति की विभूतियाँ उपलब्ध हो सकें। देर तक कठोर शारीरिक तपश्चर्याएँ करने पर भी बहुत पूजा उपासना करते रहने पर भी जब आत्मिक प्रगति नहीं देख पड़ती तो उसका एक मात्र कारण यही होता है कि अन्तःकरण के विकास का प्रयत्न नहीं किया गया, केवल पूजा तक ही साधना को एकांगी एवं सीमित रखा गया। साधना को औषधि कहा जाये तो सदाचार को पथ्य मानना पड़ेगा। परहेज बिगाड़ते रहने वाला, कुपथ्य करने वाला रोगी, अच्छी औषधि खाते रहने पर भी कुछ लाभ प्राप्त न कर सकेगा। पर यदि पथ्य पूर्वक रहा जाये तो मामूली औषधि से भी रोग दूर हो सकता है। भजन के साथ परमार्थ प्रियता भी आवश्यक है। भावनाओं की उत्कृष्ट स्थिति और चरित्र में आदर्शवाद की प्रक्रिया यदि परिपूर्ण रहे तो फिर साधना के असफल होने का कोई कारण नहीं हो सकता। इतिहास, पुराणों में ऐसी अगणित कथाएँ आती हैं जिनसे प्रतीत होता है कि सदाचारी, श्रेष्ठ आचरणों वाले और उत्कृष्ट भावना सम्पन्न साधारण श्रेणी के साधारण साधना करने वाले व्यक्तियों को योगी, यती, तपस्वी और ब्रह्मज्ञानी लोगों की भाँति ही ईश्वर अनुकम्पा एवं अनुभूति का अनुभव हुआ है। कारण स्पष्ट है कि योग साधना का उद्देश्य केवल इतना ही है कि आन्तरिक दुष्प्रवृत्तियों का शमन और संयम किया जाये। चित्त वृत्तियों के निरोध को ही महर्षि पतंजलि ने ‘योग’ कह कर पुकारा है। यह कार्य व्यवहार के जीवन में सत्यनिष्ठा और परमार्थ बुद्धि को स्थान देने से भी सम्भव हो सकता है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – स्वर्ग किसी स्थान का नाम नहीं, भावना की उत्कृष्ट भूमिका को ही स्वर्ग कहते हैं। ऊँची भावनाएँ जिस अन्तःकरण में प्रवेश पा चुकी हैं उसके लिए हर पदार्थ, हर प्राणी, हर अवसर स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति प्रस्तुत करेगा। मुक्ति का अर्थ है – वासनाओं और तृष्णाओं के बन्धनों से छुटकारा पाना और पशुता से दूर होना। स्वार्थ और संकीर्णता को जिसने ठुकरा दिया वह जीवन मुक्त हो गया। मुक्ति का आनन्द शरीर रहते हुए भी प्राप्त किया जा सकता है, सद्गति के रूप में वह मरने के बाद भी प्राप्त होता है। जीव को जो बन्धन बाँधे हुए हैं वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर के ही तो हैं। उन्हें तोड़ते हुए मनोभूमि को उदार, विशाल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बना लेना मुक्ति साधन है। जिस किसी को भी मुक्ति मिली है उसे आत्म-शोधन भी करना पड़ा है। ईश्वर सर्वव्यापी है, विश्व के कण-कण में वह समाया हुआ है उसे देखने या प्राप्त करने के लिए कहीं दूर देश में जाना नहीं पड़ता। जो मलीनताएँ जीव और ईश्वर के बीच में दीवार बन कर खड़ी हैं यदि उन्हें गिरा दिया जाये तो अत्यन्त निकट निवास करने वाले परमात्मा का दर्शन तत्काल हो सकता है। विवेक की आँखों से हम उसे हर वस्तु में श्रेष्ठता, जीवन एवं सौन्दर्य रूप में निहार सकते हैं। सत्-चित-आनन्द स्वरूप परमात्मा सत्य, शिव और सुन्दर अनुभूतियों में सहज ही हमें परिलक्षित हो सकता है। इसके लिए हमें अपना ही अज्ञान हटाना और अपना ही ज्ञान जागृत करना है। मलीनताओं के हटते ही अपना इष्टदेव अपने चारों ओर थिरकता हुआ परमानन्द की नित्य अनुभूतियों के साथ हमारे सामने आ उपस्थित होता है उसे बाहर ढूँढ़ने जाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती …।
, Shri: Please. 🌿 Respected “Sadgurudev” ji said – Apart from knowledge, effort, right planning and their timely implementation is necessary to achieve success. To be conscious and dedicated towards one’s spiritual goals are the natural qualities of a good seeker..! Fulfillment of spiritual goal is not difficult for anyone, by improving oneself, all those means are easily gathered, on the basis of which heavenly experience, liberation-in-life, peace, salvation, accomplishment and God-attainment can be attained. When there is no spiritual progress in spite of doing hard physical austerities for a long time, even after doing a lot of worship, then the only reason for this is that no effort was made to develop the inner self, the practice was kept solitary and limited only till worship. . If spiritual practice is called medicine, then virtue has to be considered as diet. The patient who spoils the abstinence, does bad food, will not be able to get any benefit even after taking good medicine. But if the diet is followed, then even minor medicines can cure the disease. Spiritual love is also necessary along with hymns. If the process of idealism is perfect in the excellent state of emotions and character, then there can be no reason for the failure of Sadhana. There are innumerable stories in history, Puranas, from which it appears that people with good conduct, noble conduct and performing ordinary spiritual practices of ordinary class with excellent spirit experienced God’s grace and feeling just like Yogis, Yatis, ascetics and Brahmagyanis. Is. The reason is clear that the only purpose of yoga practice is to suppress and control the internal bad tendencies. Maharishi Patanjali has called the control of mind’s instincts as ‘Yoga’. This can also be possible by giving place to truthfulness and altruistic intelligence in the life of work.
Respected “Acharyashree” ji said – Heaven is not the name of any place, only the excellent role of the spirit is called heaven. Every object, every creature, every occasion will present the feeling of heavenly joy for the soul in which high feelings have entered. The meaning of liberation is to get rid of the bonds of lust and craving and to get away from animalism. The one who rejected selfishness and narrow-mindedness, that life became free. The joy of liberation can be attained even while the body is alive, in the form of salvation it is attained even after death. The bonds that bind the living being are of lust, anger, greed, attachment, pride and jealousy only. Breaking them and making the mental land liberal, vast, holy and excellent is the means of liberation. Anyone who has attained liberation has also had to do self-purification. God is omnipresent, He is contained in every particle of the world, one does not have to go to a far away country to see or receive Him. If the impurities that stand as a wall between the soul and God are dropped, then the vision of the Supreme Soul, who resides very close, can be seen immediately. With the eyes of conscience we can see it as excellence, life and beauty in everything. God in the form of Sat-Chit-Anand can easily be reflected to us in truth, Shiva and beautiful experiences. For this we have to remove our own ignorance and awaken our own knowledge. As soon as the defilements are removed, our presiding deity comes and appears in front of us with constant experiences of ecstasy, there is no need to go in search of him outside….