भक्तवत्सल भगवान

               
कान्हा नामका एक भंगी था  वह नाली साफ करनेका काम किया करता था | वह भगवान् श्रीकृष्णसे बहुत प्रेम करता था | उसने अपने मनको श्रीश्यामसुन्दरके प्रेमरसमें बिलकुल मिला दिया था | वह दूरसे खड़े होकर श्री श्रीनाथजीको टकटकी लगाकर देखा करता था | जब मंदिरके अधिकारियों एवं पुजारियोंने उसे ऐसा करते देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा | उन लोगोंने श्रीगोसाईंजीसे कहकर मंदिरके द्वारके सामने दीवार उठवा दी जिससे श्री श्रीनाथजीको कान्हाकी दृष्टिसे बचाया जा सके |

उसी रात श्री श्रीनाथजीने कान्हासे स्वप्नमें कहा कि ये नई दीवार मुझे बहुत कष्ट दे रही है,प्रभुने कान्हाको आज्ञा दी कि वो श्रीगोकुलनाथजी से कहकर उस दीवारको हटवा दे | प्रभुने कहा कि वो विलछू कुण्डकी शोभाको देखना चाहते हैं । इतना सब कहनेके बाद प्रभुने कान्हासे ये भी कहा कि उन्हें कान्हाके कष्टका ख्याल है |

कान्हाने स्वप्नमें प्रभुके दर्शन किये और उनकी आज्ञा भी पायी पर उस में अभी भी श्रीगोसाईंजीके पास जानेका साहस नहीं हुआ | तब प्रभुने रोज़ उसे स्वप्नमें नित ही यही कहना शुरू कर दिया | तीन दिन बाद कान्हा हिम्मत करके श्रीगोसाईंजीके द्वारपर पहुँचा और द्वारपालोंसे कहा कि उसे श्रीगोसाईंजीसे कुछ बात करनी है, इसे सुनकर द्वारपाल नाराज़ हो गये और उसे वहाँसे चले जानेको कहा |

श्रीगोसाईंजीको किसीने बता दिया कि कान्हा उनसे कुछ बात करने आया है, वह द्वार पर खड़ा है, द्वारपाल उसको आपसे मिलनेकी अनुमति नहीं दे रहे | श्रीगोसाईंजीने तुरंत कान्हाको अन्दर बुलानेका आदेश दिया | द्वारपाल कान्हाको श्रीगोसाईंजीके पास ले आये | श्रीगोसाईंजीने प्रेमपूर्वक कान्हासे पूछा, बोलो क्यों मिलना चाहते हो? कान्हाने श्रीगोंसाईजीको सब बात बतायी और श्रीगोसाईंजीने उसकी बात सुनी । बात सुनते ही श्रीगोसाईंजी प्रेममें मग्न हो गये । उन्हें इस बातसे बहुत आनन्द हुआ कि प्रभुने उन्हें अपना मानकर उनके लिये सन्देश भिजवाया है |

श्रीगोसाईंजी बार-बार इस बातको सोचकर हर्षित होते थे कि प्रभुने उनका नाम लेकर उन्हें आज्ञाकी है | श्रीगोसाईंजी कान्हासे बहुत प्रेम से मिले और कहा कि जैसा प्रभुने कहा है वैसा ही होगा | श्रीगोसाईं जी ने दीवार गिरवा दी और कान्हाको श्रीनाथजीका अनन्य सखा जानकर भोजन देनेका आदेश किया |

सबसे बड़ा नाता भक्तिका होता है | भक्तिके आगे किसी चीज़का कोई महत्त्व नहीं होता | प्रभु तो केवल एक प्रेमका ही नाता मानते हैं प्रभुसे भी अपने भक्तका वियोग सहन नहीं होता है | प्रभु अपने भक्तसे दूर नहीं रह सकते | प्रभु की लीला अपरम्पार है |

                            जय जय श्री हरिः शरणं ….



There was a Bhangi named Kanha who used to work as a drain cleaner. He loved Lord Krishna very much. She had completely merged her heart into the love of Shri Shyamsundar. He used to stand from a distance and gaze at Shri Shrinathji. When the temple officials and priests saw him doing this, they did not like it. They asked Shri Gosainji to get the wall raised in front of the temple gate so that Shri Shrinathji could be protected from the eyes of Kanha.

The same night Shri Shrinathji told Kanha in his dream that this new wall is giving me a lot of trouble, the Lord ordered Kanha to ask Shri Gokulnathji to get that wall removed. The Lord said that he wanted to see the beauty of Vilchu Kundaki. After saying all this, Lord also told Kanha that He was concerned about Kanha’s suffering.

Kanha saw the Lord in his dream and also received His permission but he still did not have the courage to go to Shri Gosaiji. Then the Lord started telling him this every day in his dreams. After three days, Kanha gathered courage and reached the door of Shri Gosainji and told the gatekeepers that he had to talk to Shri Gosainji about something. Hearing this, the gatekeepers got angry and asked him to leave from there.

Someone told Shri Gosainji that Kanha has come to talk to him about something, he is standing at the door, the gatekeeper is not allowing him to meet you. Shri Gosaiji immediately ordered to call Kanha inside. The gatekeeper brought Kanhako to Shri Gosaiji. Shri Gosaiji lovingly asked Kanha, tell me why do you want to meet? Kanha told everything to Shri Gosaiji and Shri Gosaiji listened to him. As soon as he heard this, Shri Gosaiji became engrossed in love. He felt very happy that the Lord had accepted him as his own and sent a message for him.

Shri Gosaiji used to feel happy again and again thinking that the Lord has obeyed him by taking his name. Shri Gosaiji met Kanha very lovingly and said that it will happen as the Lord has said. Shri Gosai ji demolished the wall and ordered Kanha to be given food considering him as Shrinath ji’s special friend.

The biggest relationship is devotion. Nothing has any importance before devotion. God considers only the relationship of one lover, even God cannot bear the separation of his devotee. God cannot stay away from His devotee. The play of God is limitless.

Jai Jai Sri Harih Sharanam.

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