🛕जय श्री राम🙏
किसी के पास धन बहुत है तो यह कोई विशेष भगवत्कृपा की बात नहीं है। ये धन आदि वस्तुएँ तो पापी को भी मिल जाती हैं—‘सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी होय।’ इनके मिलने में कोई विलक्षण बात नहीं है। एक राजा थे। उस राजा की साधु-वेशमें बड़ी निष्ठा थी।
यह निष्ठा किसी-किसी में ही होती है। वह राजा साधु-सन्तों को देखकर बहुत राजी होता। साधु-वेश में कोई आ जाय, कैसा भी आ जाय, उसका बड़ा आदर करता, बहुत सेवा करता। कहीं सुन लेता कि अमुक तरफ से सन्त आ रहे हैं तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलों में रखता और खूब सेवा करता। साधु जो माँगे, वही दे देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी।
पड़ोस-देश में एक दूसरा राजा था, उसने यह बात सुन रखी थी। उसके मन में ऐसा विचार आया कि यह राजा बड़ा मूर्ख है,इसको साधु बनकर कोई भी ठग ले। उसने एक बहुरुपिये को बुलाकर कहा कि तुम उस राजा के यहाँ साधु बनकर जाओ। वह तुम्हारे साथ जो-जो बर्ताव करे,वह आकर मेरे से कहना। बहुरुपिया भी बहुत चतुर था।
वह साधु बनकर वहाँ गया। वहाँ के राजा ने जब यह सुना कि अमुक रास्ते से एक साधु आ रहा है तो वह उसके सामने गया और उसको बड़े आदर-सत्कार से अपने महल में ले आया, अपने हाथों से उसकी खूब सेवा की।
एक दिन राजा ने उस साधु से कहा कि ‘महाराज, कुछ सुनाओ।’ साधु ने कहा कि ‘राजन्! आप तो बड़े भाग्यशाली हो कि आपको इतना बड़ा राज्य मिला है, धन मिला है। आपके पास इतनी बड़ी फौज है।
आपकी स्त्री, पुत्र, नौकर आदि सभी आपके अनुकूल हैं। इसलिये भगवान की आप पर बड़ी कृपा है!’ इस प्रकार उस साधु ने कई बातें कहीं। राजा ने चुप करके सुन लीं। दो-तीन दिन रहने के बाद वह साधु (बहुरुपिया) बोला कि ‘राजन्! अब तो हम जायँगे।’ राजा बोला—‘अच्छा महाराज, जैसी आपकी मर्जी।’ राजा ने उसके आगे खजाना खोल दिया और कहा कि इसमें से आपको जो सोना-चाँदी, माणिक-मोती, रुपये-पैसे चाहिये, खूब ले लीजिये।
उस साधु ने वहाँ से अच्छा-अच्छा माल ले लिया और ऊँट पर लाद दिया। जब वह रवाना होने लगा तब राजा ने कहा कि ‘महाराज, यह तो आपने अपनी तरफ से लिया है। एक चाँदी का बक्सा है, वह मैं अपनी तरफ से देता हूँ।’
राजा ने एक चाँदी के बक्से को एक रेशमी जरीदार कपड़े में लपेटकर उसको दे दिया और कहा कि ‘यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।’ उस साधु ने वह बक्सा ले लिया और वहाँ से चल दिया।
वह साधु (बहुरुपिया) अपने राजा के पास पहुँचा। राजाने पूछा कि ‘क्या-क्या लाये?’ उसने सब बता दिया कि ‘लाखों-करोड़ों का धन ले आया हूँ।’ राजा ने समझा कि यह पड़ोस का राजा महान् मूर्ख ही है; क्योंकि इसको साधु की पहचान ही नहीं है कि कैसा साधु है!
यह तो बड़ा बेसमझ है! वह बहुरुपिया बोला कि ‘एक बक्सा मुझे उस राजा ने अपनी तरफ से दिया है कि यह मेरी तरफ से भेंट है।’ राजा ने कहा कि ‘ठीक है, बक्सा लाओ, उसको मैं देखूँगा।’ उसने वह बक्सा राजा के पास रख दिया और उसकी चाबी दे दी।
राजा ने खोलकर देखा कि चाँदी का एक बक्सा है, उसके भीतर एक और चाँदी का बक्सा है, फिर उसके भीतर एक और चाँदी का छोटा बक्सा है। तीनों बक्सों को खोलकर देखा तो भीतर के छोटे बक्से में एक फूटी कौड़ी पड़ी मिली। राजा ने सोचा कि क्या मतलब है इसका! तो वह समझ गया कि यह राजा मूर्ख नहीं है, बड़ा बुद्धिमान् है।
साधु-वेश में इसकी निष्ठा आदरणीय है। राजा ने बहुरुपिये से पूछा कि ‘तुमसे क्या बात हुई, सारी बात बताओ।’ उसने कहा कि ‘एक दिन उस राजाने मेरेसे कहा कि महाराज,कुछ सुनाओ। मैंने कहा कि तुम तो बड़े भाग्यशाली हो। तुम्हारे पास राज्य है,धन-सम्पत्ति है,अनुकूल स्त्री-पुत्र आदि हैं, तुम्हारे पर भगवान की बड़ी कृपा है।’
यह सुनकर राजा सारी बात समझ गया। तीन बक्से होने का मतलब था—स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। इनके भीतर क्या है! भीतर तो फूटी कौड़ी है,कुछ नहीं है। बाहर से वेश-भूषा बड़ी अच्छी है, बाहर से बड़े अच्छे लगते हैं पर भीतर कुछ नहीं है।
आप पर भगवान की बड़ी कृपा है—यह जो बात कही, यह फूटी कौड़ी है। यह कोई कृपा हुआ करती है? कृपा तो यह होती है कि भगवान का भजन करे, भगवान् में लग जाय।
🛕Jai Shri Ram🙏
If someone has a lot of money then it is not a matter of special grace of God. Even a sinner gets these things like money etc. – ‘Sut Dara Aru Lakshmi is also there for the sinner.’ There is nothing strange in getting these things. There was a king. That king, disguised as a saint, had great devotion.
Only a few have this loyalty. That king would have been very pleased after seeing the sages and saints. No matter who comes in the guise of a saint, he would respect him a lot and serve him a lot. If I heard somewhere that saints were coming from a certain direction, I would go on foot and bring them, keep them in palaces and serve them a lot. The sage would give whatever he asked for. He became so famous.
There was another king in the neighboring country, he had heard this. A thought came to his mind that this king is a big fool, anyone can cheat him by pretending to be a saint. He called an impersonator and asked him to go to the king’s house as a saint. Whatever he does to you, come and tell me. The impersonator was also very clever.
He went there as a monk. When the king there heard that a saint was coming from a certain way, he went to meet him and brought him to his palace with great respect and served him well with his own hands.
One day the king said to the sage, ‘Maharaj, tell me something.’ The sage said, ‘King! You are very lucky that you have got such a big kingdom and wealth. You have such a big army.
Your wife, son, servants etc. are all favorable to you. That is why God has great blessings on you!’ In this way the saint said many things. The king listened silently. After staying for two-three days, the monk (disguised) said, ‘King! Now we will go.’ The king said – ‘Okay Maharaj, as per your wish.’ The king opened the treasury in front of him and said, take as much gold, silver, rubies, pearls, rupees and money as you want from it.
That saint took good goods from there and loaded it on the camel. When he started leaving, the king said, ‘Maharaja, you have taken this on your own behalf. There is a silver box, I am giving it from my side.’
The king wrapped a silver box in a silk brocade cloth and gave it to him and said, ‘This is my gift to you.’ The sage took the box and left from there.
That sage (disguised person) reached his king. The king asked, ‘What did he bring?’ He told everything, ‘I have brought money worth lakhs and crores.’ The king thought that this neighboring king was a great fool; Because he doesn’t even know what kind of a saint he is!
This is very foolish! The impersonator said, ‘The king has given me a box as a gift from me.’ The king said, ‘Okay, bring the box, I will see it.’ He placed the box near the king and Gave him the key.
The king opened it and saw that there was a silver box, inside it was another silver box, then inside it was another small silver box. When I opened all three boxes, I found a penny lying in the smaller box inside. The king wondered what this meant! So he understood that this king is not a fool, he is very intelligent.
His devotion in the guise of a saint is respectable. The king asked the impersonator, ‘What happened to you, tell me the whole thing.’ He said, ‘One day the king said to me, Maharaj, tell me something. I said that you are very lucky. You have a kingdom, wealth, favorable wife, sons etc., God has greatly blessed you.’
Hearing this the king understood the whole thing. It meant having three boxes – the gross body, the subtle body and the causal body. What’s inside them? There is only a penny inside, there is nothing. The attire is very good from outside, looks very good from outside but there is nothing inside.
God has blessed you greatly – whatever he said is a mere penny. Is this some kind of grace? The only grace is to worship God and get absorbed in God.