साधु संग से हृदय परिवर्तन

दुर्जन को सज्जन बनाने की कला क्या ❓
शत्रु को मित्र बनाने की कला ❓
*पापी को पुण्य आत्मा बनाने की कला

क्या जादू है तेरे प्यार में!

किसी गाँव में एक चोर रहता था। एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला, जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये ।

अब वह मरता क्या न करता, रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया। वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं, अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा, ‘खाने-पीने को ही कुछ मिल जायेगा तो एक-दो दिन का गुजारा चल जायेगा।’ जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहा था, संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले ।

चोर से उनका सामना हो गया । साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है।

उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया !

साधु ने बड़े प्रेम से पूछा : “कहो
बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ?” *चोर बोला : "महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूँ।"* साधु : "ठीक है, आओ बैठो । मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ।*

तुम्हारा पेट भर जायेगा। शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते । पेट का क्या है बेटा।

अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमे ही मनुष्य खुश रह सकता है। ‘यथा लाभ संतोष’ यही तो है।” साधु ने दीपक जलाया । चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिये। फिर पास में बैठकर उसे इस तरह खिलाया, *जैसे कोई माँ अपने बच्चे को खिलाती है। साधु बाबा के सद्व्यवहार से चोर निहाल हो गया,*

सोचने लगा, ‘एक मैं हूँ और एक ये बाबा हैं। मैं चोरी करने आया और ये इतने प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूँ। यह भी सच कहा है : आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर । मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूँ।’ मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं, जो समय पाकर जाग उठती हैं। जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही

संत का संग पाकर मनुष्य की सवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं |

चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गये। उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृतवर्षी दृष्टि का लाभ मिला। एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध। तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध ।। उन ब्रह्मनिष्ठ साधुपुरुष के आधे घंटे के समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये । साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा। फिर उसे लगा कि 'साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नीयत से आया था तो उनकी नजर मे मेरी क्या इज्जत रह जायेगी !

क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !’ लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित्त करूँगा।

इतने दयालु महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे।’ संत के सामने प्रायश्चित्त करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं। उसका भोजन पूरा होने के बाद *साधु ने कहा: "बेटा !* अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे, मेरे पास एक चटाई है, इसे ले लो और आराम से यहीं सो जाओ। सुबह चले जाना।" नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूटकर रोने लगा। *साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा : ! क्या हुआ?"* रोते-रोते चोर का गला रुंध गया। उसने बड़ी कठिनाई से अपने को *सँभालकर कहा : "महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूँ।"साधु बोले : "बेटा ! भगवान तो सबके अपराध क्षमा करनेवाले हैं। उनकी शरण में जाने से वे हमारे बड़े-से-बड़े अपराध क्षमा कर देते हैं। तू उन्हींकी शरण में जा।" चोर : "महाराज ! मेरे जैसे पापी का उद्धार नहीं हो सकता।" साधु : "अरे पगले ! भगवान ने कहा यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है।""नहीं महाराज ! मैंने बड़ी-बड़ी चोरियाँ की हैं। आज भी मैं भूख से व्याकुल होकर आपके यहाँ चोरी करने आया था लेकिन आपके सद्व्यवहार ने तो मेरा जीवन ही पलट दिया। आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूंगा, किसी जीव को नहीं सताऊँगा। आप मुझे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लीजिये।"

साधु के प्यार के जादू ने चोर को साधु बना दिया । उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के लिए समर्पित करके अमूल्य मानव- जीवन को अमूल्य-से-अमूल्य परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।महापुरुषों की सीख है कि "आप सबसे आत्मवत् व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए विशुद्ध निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है। संसार इसीकी भूख से मर रहा है, अतः प्रेम का वितरण करो । अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो। उदारता के साथ उसे बाँटो, जगत का बहुत-सा दुःख दूर जायेगा।



What is the art of making an evil person a gentleman? The art of making an enemy a friend * The art of converting a sinner into a virtuous soul

What a magic in your love!

A thief lived in a village. Once, he did not get the opportunity to steal for several days, due to which food was left in his house.

Now what if he dies, he entered the hut of a monk built outside the village at around twelve o’clock in the night. He knew that the sages are great renunciates, they do not keep anything with them, yet they thought, ‘If only we get something to eat and drink, then we will be able to survive for a day or two.’ Coincidentally, when the thief was entering the hut, at the same time Sadhu Baba got up from his meditation and came out for the sake of doubt.

He came face to face with the thief. The sadhus recognized him after seeing him because they had seen him many times before, but the sadhus did not know that he was a thief.

They wondered why it came here in the middle of the night!

The monk asked with great love: “Say Boy ! How did you suffer in the middle of the night? Is there any work?” * The thief said: ′′ Maharaj! I am hungry for the whole day.”* Sadhu: “Okay, come sit. I had put some sweet potatoes in the dhuni in the evening, they must have been roasted, I remove them.*

Your stomach will be full. Had he come in the evening, we would have eaten whatever was available together. What’s wrong with the stomach, son?

If there is satisfaction in the mind, then a man can be happy in whatever he gets. That’s it.” The hermit lit the lamp. He gave the thief a seat to sit on, gave him water and placed roasted sweet potatoes on a leaf. Then, sitting nearby, fed him like a mother feeding her children. The thief was relieved by the good behavior of Sadhu Baba.

Started thinking, ‘ One is me and one is this Baba. I came to steal and they are feeding with so much love! These are human beings and I am also. This is also true: Difference between man and man, some diamond some pebble. I am worse than a pebble in front of them.’ Along with bad, there are also good instincts in a human being, which wake up after getting time. Just as a seed grows when it receives proper manure and water, so

After getting the company of a saint, the instincts of a human being get uplifted.

All the bad habits of the thief’s mind have vanished. He got the benefit of the darshan, company and vision of the saint. One clock half a clock, half again in half. Tulsi Sangat Sadh’s, Green crores of crimes. Half an hour’s association with that Brahminishtha sage destroyed so many dirty rituals of the thief. His mind was eager to confess his crime in front of the monk. Then he felt that ‘Sadhu Baba will come to know that I had come with the intention of stealing, then what will be my respect in his eyes!

What kind of degenerate creature would Baba think, who came to my saint’s place to steal!’ But then thought, ‘Whatever the saints think in their mind, I will make atonement by accepting my crime in front of them.

Such a kind great man, he will definitely forgive my crime. By doing penance in front of a saint, all the sins are burnt to ashes. After his meal was over * the monk said: “Son! * Now where will you go in this night, I have a mat, take it and sleep comfortably here. Leave in the morning.” The thief was being suppressed by the beating of goodness. He fell at the feet of the monk and started crying bitterly. * Sadhus could not understand what happened! The monk lifted him up lovingly, patting his head with love asked: What happened?”* The thief’s throat got choked while crying. I am a big criminal.” The monk said: “Son! God is the one who forgives everyone’s sins. By taking refuge in him, he forgives our biggest sins. You go to his refuge.” Thief: “Maharaj! A sinner like me cannot be saved.” Sage: “You fool! God said, if even a very miscreant worships me with a special feeling, then he is worthy of being considered a saint. “” No Maharaj! I have committed big thefts. Even today, I came to your place to steal due to hunger, but your good behavior turned my life around. Today I swear in front of you that I will never steal again, I will not torture any living being. You take me under your shelter and make me your disciple.”

The magic of the sage’s love made the thief a sage. He dedicated his whole life forever at the feet of that saint and put the priceless human life on the way to get the priceless-to-priceless God. The lesson of the great men is that “You should behave with the self because for a happy life pure selfless Love is the real food. The world is starving for it, so spread the love. Do not keep the spiritual love of your heart hidden in your heart. Share it generously, much of the world’s sorrow will go away.

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