एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।
उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की।
दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।
इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।
Once upon a time there was a potter in the kingdom of King Harishchandra. He made pottery, but they were left raw. To overcome this problem, on the advice of a priest, he put a small child in the water with earthen pots. That day was Sankashti Chaturthi. The mother of that child was worried for her son. He prayed to Ganesha for his son’s well being. On the next day, when the potter woke up in the morning and saw that his utensils were cooked in the egg, but the child’s hair was not even frizzy. He got scared and went to the king’s court and told the whole incident. After this, the king called for that child and his mother, then the mother described Sankashti Chaturthi, which removes all kinds of obstacles. After this incident, women started fasting for Sankat Chauth for the good fortune of children and family.