त्रेतायुग में बना था सिद्धनाथ मंदिर
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कानपुर के जाजमऊ में शिवजी का प्रसिद्ध
मंदिर सिद्धनाथ गंगा के तट पर स्थित है!
5 थनों वाली गाय करती थी शिवलिंग का अभिषेक,छोटी काशी’ बनाने के लिए राजा ने किया था यज्ञ सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में हुआ था। मंदिर का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है। वहा पर के राजा जयाद का राज्य था । गंगा किनारे राजा जयाद का बहुत ही सुंदर महल था। राजा के सौ पुत्र थे, वो भगवान शंकर के बड़े भक्त थे।राजा जयाद के पास बहुत बड़ी गो शाला थी, जिसमें हजारों गाय पली थीं।
राजा के पास एक ऐसी गाय थी जिसके👉 पांच थन थे। राजा उसी गाय का दूध पीता था। राजा के महल से कुछ दूरी पर एक मिट्टी का टीला था। पांच थन वाली गाय अक्सर उस मिट्टी के टीले के पास जाया करती थी। वो गाय अपना दूध उस टील पर गिरा देती थी। जब इसकी जानकारी राजा को हुई उसने टीले की खुदाई शुरू कराई। उस टीले से भगवान शंकर का शिवलिंग निकला। राजा ने शिवलिंग की स्थापना कर भव्य मंदिर बनावाने का फैसला किया। एक बार राजा को सपना आया जिसमें भगवान शिव ने उसे कहा कि यदि शिव लिंग की स्थापना कराना चाहते हो और अपने राज्य को छोटी काशी के नाम से मशहूर कराना चाहते हो तो सौ यज्ञ का अनुष्ठान कराना पड़ेगा।
राजा ने बड़े-बड़े आचार्यों और पंडितों को यज्ञ के लिए बुलाया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ शुरू हुआ था। जब इसकी जानकारी इंद्रदेव को हुई तो उन्हें ये बाद नागवार गुजरी। इंद्र ने यज्ञ को खंडित करने की योजना बनाई। इंद्रदेव नहीं चाहते थे कि दूसरी काशी की स्थापना हो। राजा ने प्रकांड ब्राह्मणों से यज्ञ शुरू कराया। जब 99 यज्ञ का अनुष्ठान पूर्ण हो गया तो इंद्रदेव ने स्वयं कौए के रूप धारण किया और यज्ञ में हड्डी फेंक दी। जिससे यज्ञ खंडित हो गया, ये देखकर राजा बहुत दुखी हो गया।
राजा ने भगवान शिव की अराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। राजा की अराधना से खुश होकर भगवान शिव ने दर्शन दिया। भगवान शिव ने राजा से कहा इस राज्य को छोटी काशी का दर्जा तो नहीं मिल पाएगा, लेकिन जिस स्थान पर शिवलिंग स्थापित होगा वो स्थान सिद्धनाथ के नाम से जाना जाएगा। इस मंदिर की मान्यता है कि गंगा में स्नान करने के बाद नित्य दर्शन करने से बड़ी-बड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं। लोगों की मान्यता है कि जो लोग मुकदमों में फंसे होते हैं, बाबा के दरबार में आने से उन्हें आजादी मिलती है अतः सिद्धनाथ महादेव का पूजन दर्शन जरूर करना चाहिए।
|| सिद्धनाथ महादेव की जय हो ||