परमात्मा से प्रेम करोगे तो वे तुम्हारे होंगे। सबका प्यारा किन्तु किसी का भी न होने वाला वह सबसे न्यारा है। वह तो “सबसे उँची प्रेम सगाई” का सिद्धांत मानते है।
भीष्माचार्य का प्रेम दिव्य था। कृष्ण कहते है-मे कोई सगाई-संबंध को नहीं मानता। मै तो प्रेम सगाई को ही मानता हूँ। मै तो अपने भीष्म के लिए ही वापस आया हूँ। मेरा भीष्म मुझे याद कर रहा है,पुकार रहा है।
भीष्मपिता उस समय बाणशैया पर सोये हुए है। उनका मरण सुधारने के लिए भगवान वापस आये है।
महात्माओं की मृत्यु मंगलमय होती है। संतो का जन्म अपनी तरह सामान्य होता है।
अतः संतो की जन्मतिथि पर उत्सव नहीं मनाया जाता।
किन्तु संतो की मृत्यु मंगलमय होती है, अतः उनकी पुण्यतिथि (मृत्युतिथि) मनाई जाती है।
भीष्मपिता की मृत्यु किस प्रकार होगी उसे देखने के लिए बड़े-बड़े सन्त और ऋषि-मुनि वहाँ पधारे है। प्रभु ने धर्मराज को उपदेश दिया।
फिर भी,जब उन्हें सांत्वना नहीं मिली -तो-उन्हें भीष्मपिता के पास जाने के लिए भगवान कहते है। बाणगंगा के किनारे जहाँ भीष्म सोये हुए है उस स्थान पर सब आये।
भीष्मपिता सोचते है कि उत्तरावस्था में उत्तरायण में मुझे मरना है। भीष्मपितामह ने काल से कहा कि मै तेरा नौकर नहीं थे। मै तो अपने श्रीकृष्ण का सेवक हूँ।
मुझे भगवान ने वचन दिया है कि अंतिम समय में मै अवश्य आऊँगा”और “मै उनके दर्शन करता हुआ प्राण त्याग करू ” ऐसा ही भीष्म सोच रहे थे ,
उसी समय भगवान श्रीकृष्ण -धर्मराजा के साथ वहाँ आते है।
धर्मराज से भीष्म कहते है- श्रीकृष्ण तो साक्षात् परमात्मा है। वे तेरा शोकका निमित्त करके मेरे लिए आए है। मेरे मृत्यु सुधारने आये है। भगवान को भीष्म ने वचनबध्द किया था।
कौरव-पांडव युध्ध के समय दुर्योधन भीष्मपितामह से कहते है-दादाजी,आठ दिन हो गए,फिर भी आप किसी पांडव को मार नहीं सके है। आप ठीक तरह से लड़ते नहीं है।
भीष्म आवेश में आ गए और आवेशावस्था में उन्होंने दुर्योधन से कहा कि –
रात को बारह बजे जब मै ध्यान में बैठूँ तो अपनी रानी को आशीर्वाद लेने के लिए भेजना।
मे अखंड सौभाग्यवती का वरदान दूँगा।
श्रीकृष्ण को यह जानकार चिंता हुई। दुर्योधन की पत्नी भानुमति से वे मिले और उससे कहा कि दादाजी तो घर के ही है। उनसे मिलने की इतनी जल्दी क्यों है?
उनके दर्शन के लिया कल जाना। भानुमति मान गई और न गयी।
महात्मा कहते है -उसी समय कृष्ण ने द्रौपदी को जगाया।
एक स्वरुप से द्रौपदी को लेकर वे भीष्मपितामह के पास गए और
दूसरे स्वरुप से वे द्रौपदी बनकर अर्जुन की शैया पर सो गए।
श्रीकृष्ण रूप रहित होते हुए भी अनेक रूपों वाले है।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।,(साभार:भगवद रहस्य)