“अमृत रूपी वाणी में…….. भागवत पुष्प”

“नानक नाम चढदी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला”……!

आनंद-कंद (नाम-सिमरन) जब रथ पर थे, तब तो आनंद-धाम था, रथ आनंद-कंद के निकलते ही रह गया न किसी काम का रथ…..!

आनंद-कंद (नाम-सिमरन) जब तक इस शरीर रूपी रथ पर सवार है, तब तक हर व्यक्ति, पद, पदार्थ, वस्तु में हर चीज में आनंद है, इसके बैगर सब मट्टी……!

इसलिए ये रथ अनमोल है, इसी रथ पर सवार होकर ही हम उस आनंद-कंद (नाम-सिमरन) से मिल सकते हैं…..!

अगर इस रथ (नाम-सिमरन) के रहते हम ने परमार्थ नहीं किया, तो अनर्थ हो जाएगा फिर ये जीवन अकारथ गया…..!

यहां मनुष्य इस शरीर रूपी रथ (नाम-सिमरन) पर बैठकर अपने मनोरथ पूरा करने की कोशिश में लगा रहता है, हर व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा रहता है…..!

पर अपने स्व में स्थित होने की कोशिश नहीं करता, ये वो रथ (नाम-सिमरन) है जो सीधे परमधाम परमार्थ तक पहुंचा देता है….!

ये (नाम-सिमरन) रथ ही एक मात्र रथ है जो सीधे परमात्मा तक पहुंचने की सीढ़ी है……!

परमात्मा तक पहुंचने का और कोई साधन नहीं,यही (नाम-सिमरन) साधन है आर या पार, आर यहां है पार परमात्मा है…….!

सतनाम श्री वाहेगुरु



“Nanak Naam Chaddi Kala, Tere Bhaane Sarbat Da Bhala”……!

When Anand-Kand (name-Simran) were on the chariot, then it was Anand-Dham, the chariot remained of no use as soon as Anand-Kand left…..!

As long as Anand-Kand (Naam-Simran) is riding on this chariot like body, till then there is joy in every person, position, substance, object, everything is soil without it……!

That’s why this chariot is priceless, we can meet that Anand-kand (name-Simran) only by riding on this chariot…..!

If we do not do charity while in this Chariot (Naam-Simran), then there will be disaster, then this life will be wasted…..!

Here man sits on this chariot like body (Naam-Simran) and tries to fulfill his desires, every person is busy in fulfilling his selfishness…..!

But does not try to be situated in his self, this is the Chariot (Naam-Simran) which directly takes the Supreme Abode to the Supreme…..!

This (Name-Simran) Chariot is the only Chariot which is the ladder to reach the God directly……!

There is no other way to reach the divine, this (name-simran) is the only means, or the other, here is the other, God is….!

Satnam Shri Waheguru

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