“मुझसे मिलने आओगे”

IMG 20220912 WA0030

आप हम और सभी भक्त भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन पाना चाहते हैं उनसे मिलना चाहते हैं पर कभी हमने सोचा हम उन्हें पहचानते कितना हैं ? जितना एक चित्रकार ने अपनी कल्पनाओं के अनुसार हमें एक चित्र बना कर दे दिया या जितना एक मूर्तिकार ने अपनी कला के अनुरूप एक उनकी मूर्ति बनाकर दिखा दी। यदि वे देखने में वैसे ना हुए तो! वे हमारे समाने भी होंगे तो हम उन्हें देखकर भी नहीं पहचान पायेंगे जैसे –

सन्त तुलसीदासजी जब भिक्षाटन के लिये जा रहे थे तो उन्हें धनुष बाण लिये सफेद घोड़े पर सवार दो सुन्दर राजकुमार जाते दिखाई दिये किन्तु वे उन्हें पहचान नहीं पाये तब स्वयं हनुमानजी ने आकर उन्हें बताया कि वे प्रभु श्रीराम और लक्ष्मणजी थे।

ये जानकर तुलसीदासजी को बहुत दुःख हुआ कि मेरे प्रभु मेरे आगे से निकल गये पर मैं मूर्ख उन्हें पहचान नहीं सका। उन्हें दुखी देखकर हनुमानजी ने उन्हें बताया कि कल प्रातःकाल उन्हें पुनः प्रभु के दर्शन होंगे।

अगले दिन प्रातःकाल तुलसीदासजी जब चित्रकूट के घाट पर बैठे थे तब प्रभु श्रीराम एक बालक का रूप लेकर उनके पास आये और उनसे कहा, “बाबा! हमें चन्दन चाहिये, क्या आप हमें दे सकते हैं?”

हनुमानजी ने विचार किया कि कहीं तुलसीदासजी फिर धोखा ना खा जायें इसलिये उन्होंने तोते का रूप रखकर ये दोहा पढ़ा – चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदासजी यह दोहा सुनकर प्रभु श्रीरामजी की छवि देखने में अपनी सुधबुध ही भूल गये, तब प्रभु ने स्वयं उनके हाथ से चन्दन लेकर तुलसीदासजी के तिलक किया और अन्तर्ध्यान हो गये।

कथा कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि हम तो तुलसीदासजी जितने भाग्यशाली नहीं हैं जो स्वयं हनुमानजी आकर हमारी प्रभु से मुलाकात करायें इसलिये अपने मन में उठते सभी प्रश्न आज ठाकुरजी (श्रीकृष्ण) के समक्ष ही रखकर उनसे समाधान पूछ लेते हैं कुछ इस प्रकार से

राधे राधे🙏

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *