यह स्तोत्र स्वयं सिद्ध अनुभूत तथा अचूक है। अति गोपनीय स्तोत्र का जीवन में प्रयोग करें और अत्यंत चमत्कारिक लाभ उठाएँ।
इस स्तोत्र के पाठ से ही पंचदेव यानी कि ब्रह्मा विष्णु महेश्वर भगवान सूर्य और भगवान गणेश साधक पर प्रसन्न हो जाते हैं। साधक को मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
यह दिव्य स्तोत्र अपनी उर्जा से व्यक्ति की मन, विवेक, आत्मा, तथा अंतरात्मा का परमआह्लाद वर्धन करने वाला है।
यह दिव्य स्तोत्र श्री भगवान गणेश को ध्यान करते हुए या स्मरण करते हुए पाठ किया जाए तो भगवान गणेश अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। यह महान दिव्य स्तोत्र “सर्वद” है मतलब सब कुछ देने वाला है।
जो मन में भक्तिभाव रखते हुए इस महान दिव्य स्तोत्र का पाठ करता है। उसको सरलता से ही धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्त हो जाती है। धर्म यानी आध्यात्मिक उन्नति तथा सभी प्रकार के पापों का नाश, अर्थ का मतलब धन संपदा ऐश्वर्य, रिद्धि सिद्धि तथा सौभाग्य प्राप्ति, काम का मतलब व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कामना करता है वह पूर्ण हो जाता है, और उत्तम प्राण संगिनी की प्राप्ति होती है और पति पत्नी में अतुलनीय प्रेम की वृद्धि होती है। और अंत में मोक्ष यानी साधक परमेश्वर में विलीन हो जाता है।
इस महान स्तोत्र के नित्य पाठ से कुल वृद्धि होती है। साधक के पुत्र पौत्रादि में वर्धन होता है। और लक्ष्मी उसे कभी छोड़कर नहीं जाती है। संसार में “श्रीमान” होकर जीवन यापन करता है। व्यक्ति का हर दिन आनंदमय होता है।
यदि कोई उपासक स्तोत्र का नित्य ७ बार पाठ २१ दिन तक करें तो यदि उसका कोई संबन्धी कारागार में यानी कि जेल में पड़ा है तो मुक्त हो जाता है।
और यदि किसी भी प्रकार का बंधन में पडा हो जैसे कि ग्रह बंधन, व्यवसाय बंधन, भाग्य बंधन यानी दुर्भाग्य, इसी तरह जितना भी बंधन है हो सभी बंधन अपने आप नष्ट हो जाते हैं। याद रहे प्रतिदिन ७ बार २१ दिन तक। चमत्कार आपके सामने होगा।
हमारे एक दिवस में तीन काल होते है। सुबह का समय को प्रातः काल कहते हैं मध्यान्न का समय को मध्यान्न काल कहते हैं और संध्या का समय को संध्याकाल कहते हैं। यह तीन काल को त्रिकाल कहते हैं।यदि कोई उपासक इस महान दिव्य स्तोत्र का एक काल द्विकाल या त्रिकाल में पाठ करता है वह स्वयं देवताओं का वंदनीय हो जाता है।
यदि किसी के ऊपर मारण उच्चाटन विद्वेषण या कोई बड़े तांत्रिक प्रयोग किया गया है तो इस स्तोत्र का नित्य २१ दिन तक प्रतिदिन २१ बार पाठ करना चाहिए। यह दिव्य स्तोत्र सभी प्रकार के मारण विद्वेषण उच्चाटन तथा तांत्रिक क्रिया का सर्वनाश कर देगा यानी कि सभी को नष्ट कर देगा।
इस स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को किसी प्रकार का कोई भी भय नहीं लगता है। वह निर्भय हो जाता है और सुरक्षित हो जाता है।
धनधान्य समृद्धि, संपत्ति में वृद्धि, आरोग्यता यानी कि सभी प्रकार के रोगों से आरोग्य, यान वाहन में वृद्धि, तथा सभी प्रकार की संपन्नता प्राप्ति होती है। “यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्” यानी कि उपासक जो भी मनोकामना अपने मन में चिंतन करता है उसे यह दिव्य स्तोत्र के नित्य पाठ से निश्चित रूप से मिल जाता है।
विधान-
पंचदेव सहित भगवान गणेश का पूजन करते हुए प्रतिदिन स्तोत्र का २१ बार पाठ करें। २१ दिन तक करने के पश्चात ५ बालकों को भोजन करायें।
।। पञ्चदेवैः कृत श्रीगणेश स्तुतिः ।।
श्रीगणेशाय नमः।
पञ्चदेवा ऊचुः
नमस्ते विघ्नराजाय भक्तानां विघ्नहारिणे।
विघ्नकर्त्रे ह्यभक्तानां गणेशाय नमो नमः।।१।।
हेरंबाय नमस्तुभ्यं ढुण्ढिराजाय ते नमः।
विनायकाय देवाय ब्रह्मणां नायकाय च।।२।।
लम्बोदराय सिद्धेश गजाननधराय च।
शूर्पकर्णाय गूढाय चतुर्हस्त नमोऽस्तुते।।३।।
लम्बोष्ठायैकदन्ताय सर्वेशाय गणाधिप।
अनन्तमहिमाधार धरणीधर ते नमः।।४।।
नमो मायामयायैव मायाहीनाय ते नमः।
मोहदाय नमस्तुभ्यं मोहहन्त्रे नमो नमः।।५।।
पञ्चभूतमयायैव पञ्चभूतधराय च।
इन्द्रियाणां चाधिपायेन्द्रियज्ञानप्रकारिणे।।६।।
अध्यात्मनेऽधिभूतायाधिदैवाय च ते नमः।
अन्नायान्नपते तुभ्यमन्नान्नाय नमो नमः।।७।।
प्राणाय प्राणनाथाय प्राणानां प्राणरूपिणे।
चित्ताय चित्तहीनाय चित्तेभ्यश्चित्तदायिने।।८।।
विज्ञानाय च विज्ञानपतये द्वन्द्वधारिणे।
विज्ञानेभ्यः स्वविज्ञानदायिने ते नमो नमः।।९।।
आनन्दाय नमस्तुभ्यमानन्दपतये नमः।
आनन्दानन्ददात्रे च कारणाय नमो नमः।।१०।।
चैतन्याय च यत्नाय चेतनाधारिणे नमः।
चैतन्येभ्यः स्वचैतन्यदायिने नादरूपिणे।।११।।
बिन्दुमात्राय बिन्दूनां पतये प्राकृताय च।
भेदाभेदमयायैव ज्योतीरूपाय ते नमः।।१२।।
सोऽहंमात्राय शून्याय शुन्याधाराय देहिने।
शून्यानां शून्यरूपाय पुरुषाय नमो नमः।।१३।।
ज्ञानाय बोधनाथाय बोधानां बोधकारिणे।
मनोवाणीविहीनाय सर्वात्मक नमो नमः।।१४।।
विदेहाय नमस्तुभ्यं विदेहाधारकाय च।
विदेहानां विदेहाय साङ्ख्यरूपाय ते नमः।।१५।।
नानाभेदधरायैव चैकानेकादिमूर्तये।
असत्स्वानन्दरूपाय शक्तिरूपाय ते नमः।।१६।।
अमृताय सदाखण्डभेदाभेदविवर्जित।
सदात्मरूपिणे सूर्यरूपाधाराय ते नमः।।१७।।
सत्यासत्यविहीनाय समस्वानन्दमूर्तये।
आनन्दानन्दकन्दाय विष्णवे ते नमो नमः।।१८।।
अव्यक्ताय परेशाय नेतिनेतिमयाय च।
शिवाय शाश्वतायैव मोहहीनाय ते नमः।।१९।।
संयोगेन च सर्वत्र समाधौ रूपधारिणे।
स्वानन्दाय नमस्तुभ्यं मौनभावप्रदायिने।।२०।।
अयोगाय नमस्तुभ्यं निरालम्ब स्वरूपिणे।
मायाहीनाय देवाय नमस्ते ह्यसमाधये।।२१।।
शान्तिदाय नमस्तुभ्यं पूर्णशान्तिप्रदाय ते।
योगानां पतये चैव योगरूपाय ते नम:।।२२।।
गणेशाय परेशाय ह्यपारगुणकीर्तये।
योगशान्तिप्रदात्रे च महायोगाय ते नमः।।२३।।
गुणान्तं न ययुर्यस्य वेदाद्या वेदकारकाः।
स कस्य स्तवनीयः स्याद्यथामति तथा स्तुतः।।२४।।
तेन वै भगवान् साक्षाच्चिन्तामणि गजाननः।
प्रसन्नो भवतु त्राताऽस्माकं त्वं परमा गति:।।२५।।
इत्येवमुक्त्वा देवेशास्तूष्णीं भूतास्तथा शिवे।
गणेशोऽपि प्रसन्नात्मा हृष्टः सन् प्रत्युवाच तान्।।२६।।
फलश्रुति-
श्रीगणेश उवाच।
पञ्चदेवा महाभागाः प्रसन्नो भवतां स्तवैः।
तपसा च तथा भक्त्या वाञ्छितं ब्रूत वै वरम्।।२७।।
भवत्कृतमिदं स्तोत्रं परमाह्लादवर्धनम्।
मम प्रीतिकरं भक्त्या सर्वदं प्रभविष्यति।।२८।।
यः पठेद्भावपूर्वं स धर्म कामार्थ मोक्ष भाक्।
पुत्रपौत्रयुतः श्रीमानन्ते स्वानन्दमाप्नुयात्।।२९।।
सप्तवारं पठेन्नित्यमेकविंशतिवासरम्।
कारागृहगतो वाऽपि मुच्यते बन्धनात् स्वयम्।।३०।।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालमपि यः पठेत्।
स वै देवादिकैर्वन्द्यो भविष्यति न संशयः।।३१।।
मारणोच्चाटनादिभ्य एकविंशतिवारतः।
तावद्दिनानि पाठेन तस्य नैव भयं भवेत्।।३२।।
धनधान्यादिकं सर्वमारोग्यं पशुवर्धनम्।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।।३३।।
।। इति पञ्चदेवैः कृत गणेशस्तुतिः समाप्तः ।।
This hymn is self-proven, experienced and infallible. Use the most confidential Stotra in life and get very miraculous benefits.
Panchadev i.e. Brahma Vishnu Maheshwar, Lord Surya and Lord Ganesha become pleased with the seeker only by the recitation of this stotra. The seeker gets the desired fruit.
This divine stotra with its energy is going to increase the supreme joy of a person’s mind, conscience, soul and conscience.
If this divine hymn is recited while meditating or remembering Shri Lord Ganesha, then Lord Ganesha becomes very happy. This great divine hymn is “Sarvad” means the giver of everything.
One who recites this great divine hymn with devotion in mind. He easily gets religion, meaning, work and salvation. Dharma means spiritual progress and destruction of all kinds of sins, Artha means wealth, prosperity, success and good luck, Kama means whatever a person wishes for in his life, he gets the best life partner. And there is an increase of incomparable love between husband and wife. And in the end salvation means the seeker merges with the Supreme Lord.
Regular recitation of this great hymn leads to overall growth. There is growth in the son and grandson of the seeker. And Lakshmi never leaves him. He lives in the world by being a “sir”. Every day of the person is blissful.
If a worshiper recites this Stotra daily 7 times for 21 days, then if any of his relatives are lying in jail, then he becomes free.
And if you are in any type of bondage, such as planetary bondage, business bondage, fortune bondage i.e. misfortune, in the same way all the bondages are automatically destroyed. Remember 7 times daily for 21 days. Miracles will happen in front of you.
There are three periods in our one day. Morning time is called Pratah Kaal, afternoon time is called Madhyan Kaal and evening time is called Sandhya Kaal. These three times are called Trikal. If a worshiper recites this great divine hymn for one time in Dwikal or Trikal, he himself becomes worshipable to the gods.
If Maran Uchchatan Vidveshan or any big tantric experiment has been done on someone, then this stotra should be recited 21 times daily for 21 days. This divine hymn will annihilate all types of Maran, Vidveshan, Exaltation and Tantric Kriya, that is, it will destroy everyone.
The seeker who recites this stotra does not feel any kind of fear. He becomes fearless and becomes secure.
Wealth, prosperity, increase in property, health, that is, health from all kinds of diseases, increase in vehicles, and all kinds of prosperity are attained. “Yam yam chintayate kamam tam tam prapnoti nishchitam” that is, whatever wish the worshiper contemplates in his mind is surely obtained by daily recitation of this divine stotra.
Legislation- Recite this stotra 21 times daily while worshiping Lord Ganesha along with Panchadev. After doing this for 21 days, feed 5 children.
।। This is the praise of Lord Ganesha composed by the five gods.
SHRI GANESHAYA NAMAH. The five gods said Obeisance to you king of obstacles remover of obstacles for your devotees O Lord Ganesha who causes obstacles to the devotees I offer my obeisances to you.
O Heramba, I offer my obeisances to you, O king of the drums. O Vinayaka, the god, and the leader of the Brahmans.
O Lord of the Siddhas, O Lambodara, O Gajananadhara. O four-handed, hidden, with sharp ears, I offer my obeisances to you.
O lord of the hosts to the long-lipped one-toothed Lord of all. O holder of the earth, the basis of infinite glory, I offer my obeisances to you.
Obeisance to thee who is illusory, Obeisance to thee without illusion. O bestower of delusion, I offer my obeisances to you, destroyer of delusion.
and to the five-being-bearer. And to the master of the senses and the manifestation of sense knowledge.
O Adhyatma, the Adhibhuta and the Adhidaiva, I offer my obeisances to Thee. O Lord of food, O food, I offer my obeisances unto Thee.
O life-giver, lord of life, life-form of life-force. To the mind, to the mindless, to the mind-giver of minds.
And to knowledge, the master of knowledge, the bearer of duality. Obeisance to You who bestow Your own knowledge from the knowledges.
O Lord of bliss, I offer my obeisances to You. I offer my obeisances to the cause of bliss and bliss.
O consciousness and effort, consciousness-bearer. To the consciousnesses who give their own consciousness in the form of sound.
To the mere dot, to the lord of the dots, and to the ordinary. O form of light, which is full of differences and differences, I offer my obeisances to You.
That I am only for the emptiness, the empty base, the embodied. Obeisance to the Supreme Person in the form of emptiness among emptiness.
To knowledge, to the Lord of enlightenment, to the enlightener of enlightenments. O all-pervading One devoid of mind and speech, I offer my obeisances to You.
O Videha, I offer my obeisances to you, the holder of Videha. O Videha of the Videhas, O form of Sāṅkhya, I offer my obeisances to You.
and to the form of various differences and others. O form of unreal bliss, O form of power, I offer my obeisances to You.
For the immortal, devoid of eternal differences and differences. O eternal Self-forming Sun-form-supporter, I offer my obeisances to You.
To the idol of equal bliss, devoid of truth and falsehood. O Vishnu, the tuber of bliss and bliss, I offer my obeisances to you.
To the unmanifest, the Supreme Lord, and to the Neti-Neti-Maya. O Shiva, eternal and devoid of delusion, I offer my obeisances to You.
And by union everywhere in Samadhi, to the form-bearer. O self-bliss, I offer my obeisances to you, who bestow the feeling of silence.
O incomparable one, O form without dependence, I offer my obeisances unto Thee. O god devoid of illusion, I offer my obeisances to you.
O bestower of peace, I offer my obeisances unto Thee, O bestower of complete peace. O Lord of the Yogas and in the form of Yoga I offer my obeisances unto Thee.
O Ganesha, the Supreme Lord, of incomparable fame. O great Yoga, bestower of peace in Yoga, I offer my obeisances to You.
The Vedas and other authors of the Vedas did not go to the end of His virtues. Whose praise is he who is praised as he thinks?
That is why Lord Gajanana is directly in the gem of thought. May you be pleased as our savior and supreme refuge.
Having said this the gods and beings became silent, O Siva. Ganesha, too, pleased and delighted, replied to them.
Phalashruti-
Sri Ganesha said. The five most fortunate gods are pleased with your praises. Tell me the best you have desired by austerities and devotion.
This stotra composed by you enhances supreme joy By devotion it will become all-giving and pleasing to Me.
He who recites it before the Bhava attains Dharma, Kama, Artha and Moksha. May the prosperous one with sons and grandsons attain his own bliss at the end.
One should recite it seven times daily for twenty-one days. Even if he is in prison he is freed from bondage on his own.
He who recites it once, twice or even three times. He will undoubtedly be worshiped by the gods and others.
Twenty-one times from killing and tearing. By reciting it for so many days he will have no fear.
Wealth, grain, etc., all health, and the raising of cattle. Whoever desires whatever he thinks of, he certainly attains it.
।। This is the complete Ganesha stuti composed by the five gods.